क्या JP नड्डा से नाराज़ थे उपराष्ट्रपति धनखड़? जानिए इस्तीफे के पीछे की असली कहानी

देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ का सोमवार रात को आया इस्तीफा जितना अचानक दिखा, उतना ही रणनीतिक भी हो सकता है। हालांकि संवैधानिक दृष्टि से यह एक सामान्य प्रक्रिया प्रतीत हो, लेकिन सियासी गलियारों में इस फैसले के पीछे गहरी राजनीतिक पटकथा की चर्चा तेज हो गई है।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 22 July 2025, 11:40 AM IST
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New Delhi: देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ का सोमवार रात को आया इस्तीफा जितना अचानक दिखा, उतना ही रणनीतिक भी हो सकता है। हालांकि संवैधानिक दृष्टि से यह एक सामान्य प्रक्रिया प्रतीत हो, लेकिन सियासी गलियारों में इस फैसले के पीछे गहरी राजनीतिक पटकथा की चर्चा तेज हो गई है।

राजनीतिक पटकथा की चर्चा तेज

सूत्रों के अनुसार,  धनखड़ 2022 में उपराष्ट्रपति बने थे और उनका कार्यकाल 2027 तक था, लेकिन इससे पहले ही उन्होंने पद छोड़ दिया। वह वीवी गिरी और कृष्णकांत के बाद ऐसे तीसरे उपराष्ट्रपति बन गए हैं जिन्होंने कार्यकाल पूरा नहीं किया। लेकिन इस बार मामला केवल व्यक्तिगत कारणों तक सीमित नहीं लगता।

बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की बैठक

दरअसल, सोमवार को राज्यसभा में बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (BAC) की बैठक के दौरान कुछ असहज घटनाएं सामने आईं। सूत्रों के मुताबिक, BAC की बैठक में सत्ता पक्ष के प्रमुख चेहरे—नेता सदन जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ग़ैरमौजूद रहे। यह वही बैठक थी जिसकी अध्यक्षता खुद धनखड़ ने की थी और जहां सत्ता पक्ष की अनुपस्थिति को उन्होंने सीधे तौर पर 'अवमानना' माना।

बीजेपी ने धनखड़ को लगातार नजरअंदाज किया

कांग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने धनखड़ को लगातार नजरअंदाज किया और उन पर अपनी शर्तें थोपने की कोशिश की। उन्होंने यह भी कहा कि धनखड़ का इस्तीफा दरअसल बिहार चुनाव की रणनीति से जुड़ा है। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश बिहार से आते हैं, और संभव है कि बीजेपी उन्हें उपराष्ट्रपति के रूप में आगे बढ़ाने की तैयारी कर रही हो।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी उठाए सवाल

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी सवाल उठाते हुए कहा कि दोपहर की BAC बैठक में सभी प्रमुख नेता मौजूद थे, लेकिन शाम की बैठक में अचानक सब नदारद हो गए। यह रणनीतिक ‘बॉयकॉट’ था या सत्ता पक्ष द्वारा जानबूझकर उपराष्ट्रपति को किनारे करने की कोशिश?

इन घटनाओं को जोड़ने पर यह साफ संकेत मिलते हैं कि धनखड़ का इस्तीफा महज व्यक्तिगत फैसला नहीं, बल्कि एक सोची-समझी राजनीतिक बिसात का हिस्सा हो सकता है। सवाल यह है कि क्या यह बीजेपी की अंदरूनी असहमति का संकेत है या आगामी चुनावों की चाल? आने वाले दिनों में तस्वीर और साफ होगी।

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