

उत्तराखंड राज्य की स्थाई राजधानी गैरसैंण की मांग जोर पकड़ने लगी है। इस मांग को लेकर रविवार को राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर उत्तराखंड के लोगों ने धरना-प्रदर्शन किया और प्रधानमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया।
स्थायी राजधानी गैरसैंण की मांग को लेकर जंतर मंतर पर प्रदर्शन
New Delhi: राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत नंवबर 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड देश का 27वां राज्य बना था। आगामी 9 नवंबर को उत्तराखंड गठन के 25 साल पूरे होने वाले है लेकिन अब तक राज्य को अपनी स्थायी राजधानी नहीं मिल सकी।
गैंरसैण के भराड़ीसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाने की मांग को रविवार को राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर पर जनसैलाब उमड़ पड़ा। दिल्ली-एनसीआर समेत विभिन्न स्थानों से आये उत्तराखंड के मूल लोगों ने स्थायी राजधानी की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी की। प्रदर्शन में राज्य आंदोलनकारियों ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया।
स्थायी राजधानी गैरसैंण की मांग करते उत्तराखंडवासी
स्थायी राजधानी गैरसैंण समिति के आह्वान पर आयोजित इस प्रदर्शन में उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियों और गणमान्य लोगों ने शिरकत की और स्थायी राजधानी गैरसैंण को लेकर अपने-अपने विचार व्यक्त किये।
समिति के मुख्य संयोजक और उत्तराखंड शासन में सचिव रह चुके रिटायर्ड आईएएस विनोद प्रसाद रतूड़ी ने बतौर मुख्य अतिथि प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि राज्य की स्थायी राजधानी की मांग को लेकर उनका यह आंदोलन आने वाले समय में व्यापक रूप लेगा।
उन्होंने कहा कि पहाड़ के लोगों की यह मांग नई नहीं है, उत्तराखंड आंदोलन के समय और उससे पहले से ही गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग उठती रही है। लेकिन सरकारों की अनदेखी और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण 25 सालों उत्तराखंड को अपनी राजधानी नहीं मिल सकी।
उन्होंने कहा कि आज स्थायी राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ज्ञापन दिया जा रहा है। श्री रतूड़ी ने कहा कि स्थायी राजधानी की मांग को लेकर समिति उत्तराखंड सरकार से विधानसभा का विशेष सत्र आमंत्रित करने की भी मांग करेगी।
उन्होंने कहा कि स्थायी राजधानी की मांग को लेकर यदि सरकार इस दिशा में कोई काम नहीं करती है तो दिल्ली, देहरादून समेत राज्य के अन्य जिलों से गैरसैंण के लिये शांतिपूर्ण तरीके से पैदल मार्च निकाला जायेगा, जिसमें बड़ी संख्या में पहाड़ के लोगों शामिल होंगे। देहरादून और राज्य के अन्य जनपदों में भी धरना-प्रदर्शन किया जायेगी।
उन्होंने कहा कि पहाड़ों की युवा आज गांव छोड़कर शहरों में जैसे-तैसे छोटी-मोटी नौकरी करके अपना गुजारा कर रहे हैं। पहाड़ों में पलायन थमने के बजाए लगातार बढ़ता जा रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी सुविधाओं का अभाव गहराता जा रहा है। यदि गढ़वाल और कुमांऊ के मध्य स्थित गैरसैंण स्थायी राजधानी बनती है तो, इन समस्याओं का समाधान खुद निकल आयेगा।
उत्तराखंड विधानसभा के पूर्व सचिव जगदीश चन्द्रा ने सरकार द्वारा भराड़ीसैंण में विधानसभा, सचिवालय समेत अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर सरकार द्वारा अब तक किये गये खर्चों की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि कौशिक आयोग की रिपोर्ट में साफ किया गया था कि भराड़ीसैंण उत्तराखंड की राजधानी के लिये सबसे उपयुक्त स्थान है।
भराड़ीसैंण का डेमोग्रॉफिकल व जियोग्रॉफिकल लोकेशन इसे राजधानी के रूप में सबसे उपयुक्त बनाता है। इसके साथ ही उन्होंने स्थायी राजधानी की मांग को लेकर इस आंदोलन की सफलता के लिए सभी से एकता बनाये रखने की अपील की।
दिल्ली में गैंरसैण राजधानी ने लेकर प्रदर्शन
कमल ध्यानी ने कहा कि पूर्व आईएएस विनोद प्रसाद रतूड़ी के नेतृत्व में यह जनांदोलन गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने में निर्णायक साबित होगा। उन्होंने उत्तराखंड मूल के सभी लोगों, तमाम संगठनों तथा समाज के सभी वर्गों से आह्वान किया कि वे मिलकर इस जनांदोलन में शामिल होकर इसे आगे बढ़ाएँ।
उन्होंने कहा की दिल्ली से शुरू हुई यह लड़ाई गैरसैंण में स्थायी राजधानी बनने पर ही खत्म होगी। इसके लिये उन्होंने सभी से तन-मन धन से काम करने का आह्वान किया।
कार्यक्रम को वरिष्ठ पत्रकार व लेखक राकेश थपलियाल, समाजसेवी हेमलता रतूड़ी, अधिवक्ता भुवन जुयाल, महावीर फर्सवाण, राकेश नेगी, जगदीश प्रसाद पुरोहित, आशाराम कुमेड़ी, जसपाल रावल, अधिवक्ता सुशील कंडवाल, रमेश थपलियाल, देवेन एस खत्री, सुनील जदली समेत कई लोगों ने संबोधित किया।
उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी रहे उमेश रावत, वरिष्ठ व्योमेश जुगरान, सत्येन्द्र रावत समेत विजय ड्यूंडी, दाताराम चमोली, शंकर पथिक, मायाराम बहुगुणा, द्वारका चमोली, पार्थ रतूड़ी, जेएस गुसांई, रेखा भट्ट, मायाराम बहगुणा, राकेश नेगी समेत बड़ी संख्या में उत्तराखंड के लोगों ने धरना-प्रदर्शन में भाग लिया।