

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा सिर्फ एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं है यह भारतीय राजनीति में एक नए चरण की आहट भी हो सकता है। भले ही उन्होंने अपने इस्तीफे का कारण ‘स्वास्थ्य’ बताया हो, लेकिन सत्ता के गलियारों में कुछ और ही खिचड़ी पक रही है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (सोर्स इंटरनेट)
New Delhi: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक इस्तीफा सिर्फ एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं है यह भारतीय राजनीति में एक नए चरण की आहट भी हो सकता है। भले ही उन्होंने अपने इस्तीफे का कारण 'स्वास्थ्य' बताया हो, लेकिन सत्ता के गलियारों में कुछ और ही खिचड़ी पक रही है। धनखड़ का कार्यकाल अगस्त 2027 तक था, लेकिन उन्होंने ठीक उसी समय इस्तीफा दिया जब संसद में नए सत्र और संभावित सियासी रफ्तार की तैयारी चल रही थी। क्या यह केवल संयोग है?
सूत्रों के अनुसार, धनखड़ का कार्यकाल लगातार विवादों से घिरा रहा। चाहे वो राज्यसभा में विपक्ष के साथ तीखी बहसें हों या सुप्रीम कोर्ट पर की गई तीखी टिप्पणी, उन्होंने कभी भी अपने विचारों को छिपाया नहीं। लेकिन सवाल ये है: क्या उन्होंने वही कहा जो सत्ता पक्ष नहीं सुनना चाहता था? कुछ जानकार मानते हैं कि उनके "संविधान बनाम सनातन" वाले बयानों और न्यायपालिका पर खुले प्रहार से सरकार की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावित हो रही थी। क्या यही कारण था कि ‘स्वास्थ्य’ की आड़ में उन्हें बाहर जाने का विकल्प दिया गया?
धनखड़ न सिर्फ उपराष्ट्रपति थे, बल्कि राज्यसभा के सभापति के रूप में उन्होंने संसदीय प्रक्रियाओं में गहरी छाप छोड़ी। उनके जाने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि नया चेहरा कितना संतुलित और 'सामंजस्यपूर्ण' होगा। राजनीतिक रणनीतिकार मानते हैं कि यह इस्तीफा उस बड़े खेल का हिस्सा हो सकता है जहां 2029 के मिशन की तैयारी शुरू हो चुकी है। संसद में विपक्ष को संभालने के लिए शायद अब एक “कम टकराव वाला” चेहरा लाना सत्ता पक्ष की रणनीति हो।
वरिष्ठ पत्रकारों की राय बंटी हुई है कुछ इसे बीमारी का परिणाम मानते हैं, तो कुछ इसे "शांत विदाई" की स्क्रिप्ट बता रहे हैं। लेकिन इतना तय है कि धनखड़ जैसे स्पष्टवक्ता और असहज सवाल उठाने वाले व्यक्ति का जाना, भारत की राजनीति में आने वाले तूफान से पहले की खामोशी भी हो सकती है। बता दें कि जब से जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा दिया है, राजनीति गलियारों में हलचल तेज हो गई। इस्फीते को लेकर विपक्ष और सत्ता दोनों ही चुप है।