जन आंदोलनों की बढ़ती ताकत: भारत के पड़ोस में उथल-पुथल, इस विश्लेषण में पढ़ें कैसे चार साल में बदला दक्षिण एशिया का नक्शा

नेपाल में हालिया तख्तापलट के बाद पीएम और राष्ट्रपति को इस्तीफा देना पड़ा है। सड़कों पर Gen Z के खतरनाक प्रदर्शन ने सरकार को उखाड़ फेंका, वहीं अफगानिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में भी पिछले चार वर्षों में सत्ता परिवर्तन की घटनाएं घटी हैं। क्या यह ‘आंधी’ पूरे दक्षिण एशिया में और फैलने वाली है?

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 13 September 2025, 12:02 PM IST
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New Delhi: नेपाल में सत्ता का तख्तापलट अब किसी से छिपा नहीं है। सड़कों पर उतरी युवा पीढ़ी, यानी Gen Z, ने हिंसक प्रदर्शन कर नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को इस्तीफे के लिए मजबूर कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने सरकार के खिलाफ भारी नारेबाजी की और पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा सहित अन्य नेताओं और मंत्रियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। प्रधानमंत्री के इस्तीफे के साथ ही नेपाल में सरकार का तख्तापलट हो गया। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन को आग के हवाले कर दिया और वहां रखे कीमती सामान को लूट लिया।

नेपाल में जारी इस राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से पूरी व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई है। यह केवल नेपाल तक सीमित नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया में हो रहे सत्ता परिवर्तन का एक हिस्सा है, जो पहले अफगानिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश में भी देखा जा चुका है। यह घटनाएं दिखाती हैं कि युवा पीढ़ी का गुस्सा अब पूरे दक्षिण एशिया में शासकों के खिलाफ एक आंदोलन के रूप में उभर रहा है।

नेपाल में तख्तापलट

अफगानिस्तान में तालिबान का तख्तापलट

भारत के पड़ोसी अफगानिस्तान में 15 अगस्त 2021 को एक ऐतिहासिक तख्तापलट हुआ था। तालिबान ने तेजी से अफगान सरकार पर कब्जा कर लिया था। यह तख्तापलट अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद हुआ था। तालिबान ने राष्ट्रपति आवास में घुसकर कीमती सामान को लूट लिया और वहां जमकर उत्पात मचाया। अफगानिस्तान में यह तख्तापलट न केवल एक सैन्य आक्रमण था, बल्कि इसमें सड़कों पर खुलेआम गोलीबारी भी हुई थी। यह घटना एक सबक बन गई है। जिसने दक्षिण एशिया में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा दिया है।

अफगानिस्तान में तख्तापलट

श्रीलंका में 'अरागलाया' आंदोलन

अफगानिस्तान के बाद, श्रीलंका में भी एक बड़ा तख्तापलट हुआ। 9 जुलाई 2022 को लाखों की संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे और श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन में घुस गए। इस प्रदर्शन का नाम 'अरागलाया' था, जो भ्रष्टाचार, महंगाई और आर्थिक संकट के खिलाफ जनता का विशाल आंदोलन था। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। यह आंदोलन सैन्य तख्तापलट नहीं था, बल्कि यह एक जन विद्रोह था, जिसने श्रीलंकाई सरकार को उखाड़ फेंका। इससे साफ हुआ कि दक्षिण एशिया में जनता अब सरकारों के खिलाफ खुलकर विरोध करने के लिए तैयार है।

श्रीलंका में तख्तापलट

बांग्लादेश में छात्र नेतृत्व का विरोध

पिछले साल बांग्लादेश में भी एक बड़ी तख्तापलट की घटना घटी। 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में छात्र नेतृत्व वाले बड़े प्रदर्शनों के चलते प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। प्रदर्शनकारी पीएम हाउस में घुसे और वहां जमकर उत्पात मचाया। हसीना को देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा और इसके साथ ही सेना प्रमुख जनरल वाकेर-उज-जमान ने घोषणा की कि अब देश में एक अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा। यह घटना बांग्लादेश के इतिहास के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, जहां एक पार्टी का अस्तित्व खत्म कर दिया गया और हसीना की सरकार को जनता के दबाव ने उखाड़ फेंका।

बांग्लादेश में तख्तापलट

सड़कों पर उतरता हुजूम

पिछले चार वर्षों में भारत के चार पड़ोसी देशों में सत्ता का तख्तापलट देखा गया है। ये घटनाएं केवल सैन्य तख्तापलट नहीं रही हैं, बल्कि जनता के विशाल विरोध प्रदर्शनों का परिणाम रही हैं। अफगानिस्तान में तालिबान का आक्रमण, श्रीलंका में 'अरागलाया' आंदोलन, बांग्लादेश में छात्र आंदोलन और अब नेपाल में Gen Z का प्रदर्शन इन सभी घटनाओं में एक समान बात है, वह है जनता का असंतोष और गुस्सा। यह दिखाता है कि दक्षिण एशिया की राजनीति में एक नई लहर आ चुकी है, जहां लोग अब खुद को आवाज देने के लिए सड़कों पर उतारने को तैयार हैं।

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