मां की ममता के आगे सुप्रीम कोर्ट भी झुका, कहा- हमारा फैसला गलत था, जानें पूरा मामला

कोर्ट ने माना कि बच्चा अपने पिता से कभी गहरा रिश्ता नहीं बना पाया, क्योंकि वह बचपन से ही अपनी मां और सौतेले पिता के साथ रहा है। आदेश में कहा गया, “पिता यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि बच्चा अचानक उनके साथ पारंपरिक पिता-पुत्र का रिश्ता बना ले।”

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 17 July 2025, 3:00 PM IST
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New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने एक बच्चे की कस्टडी से जुड़े एक मामले में अपना 10 महीने पुराना फैसला वापस ले लिया है। अदालत ने 12 वर्षीय लड़के की कस्टडी उसके पिता से वापस लेकर दोबारा मां को दे दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कस्टडी पर दिए गए फैसले अंतिम नहीं होते। यह मामला बच्चे की मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य से जुड़ा है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा कि पिता को कस्टडी सौंपने के बाद बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ा है। कोर्ट ने स्वीकार किया कि पिछला आदेश उनका गलत था।

क्या है मामला?

बच्चे के माता-पिता की शादी 2011 में हुई थी। वर्ष 2012 में बच्चे का जन्म हुआ, लेकिन एक साल बाद ही दोनों अलग हो गए। लिहाजा, बच्चे की कस्टडी मां को दी गई। वर्ष 2016 में मां ने दोबारा विवाह कर लिया। उनके पति के पहले विवाह से दो बच्चे थे और इस दंपति का एक और बच्चा हुआ।

2019 में पिता पहुंचा कोर्ट

वर्ष 2019 तक पिता को अपने बेटे के ठिकाने की जानकारी नहीं थी। जब मां ने मलेशिया जाने के लिए कागजी प्रक्रिया शुरू की, तब पिता से संपर्क किया गया। पिता ने आरोप लगाया कि बिना उनकी जानकारी या सहमति के बच्चे का धर्म हिंदू से ईसाई में बदल दिया गया।

हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक

फैमिली कोर्ट में राहत न मिलने पर पिता ने हाई कोर्ट का रुख किया, जिसने बच्चे की कस्टडी पिता को सौंप दी। मां ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी थी। बाद में मां ने पुनर्विचार याचिका दायर की और कहा कि हिरासत में बदलाव से बच्चे का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। इस दलील का समर्थन एक नैदानिक मनोवैज्ञानिक की रिपोर्ट से भी हुआ।

सुप्रीम कोर्ट ने फिर क्या किया?

कोर्ट ने माना कि बच्चा अपने पिता से कभी गहरा रिश्ता नहीं बना पाया, क्योंकि वह बचपन से ही अपनी मां और सौतेले पिता के साथ रहा है। आदेश में कहा गया, "पिता यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि बच्चा अचानक उनके साथ पारंपरिक पिता-पुत्र का रिश्ता बना ले।" सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि बच्चा अपने सौतेले पिता को ही अपने जीवन का स्थायी हिस्सा मानता है और उनके साथ भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है।

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