

NIA ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह यूएपीए और मकोका जैसे गंभीर मामलों के लिए समर्पित अदालतों के गठन पर राज्यों से बातचीत कर रही है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने समयबद्ध जांच और सुनवाई पर ज़ोर देते हुए कहा कि इससे समाज में सकारात्मक संदेश जाएगा।
एनआईए (Img: Google)
New Delhi: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि वह गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) जैसे मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना पर राज्यों के साथ विचार-विमर्श कर रही है। यह जानकारी 4 सितंबर को एएसजी ऐश्वर्या भाटी ने सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच को दी, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची शामिल थे।
दरअसल, सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस मुद्दे की गंभीरता पर ज़ोर देते हुए कहा कि ऐसे जघन्य अपराधों की जांच और मुकदमा समयबद्ध रूप से पूरा होना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "अगर आप समयबद्ध जांच कर सकते हैं, तो समाज में एक अच्छा संदेश जाएगा। खासकर संगठित अपराधों के मामलों में, इससे न्याय व्यवस्था की मजबूती का एहसास होगा।"
कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर समय पर जांच और सुनवाई नहीं होती, तो खूंखार अपराधी सिस्टम को हाईजैक कर सकते हैं। वे विभिन्न कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग कर मुकदमे को सालों तक लटकाए रखेंगे, जिससे अदालतें मजबूरी में जमानत देने को विवश होंगी।
सुप्रीम कोर्ट (Img: Google)
NIA की तरफ से पेश एएसजी ने बताया कि राज्यों की भागीदारी आवश्यक है क्योंकि विशेष अदालतों के गठन की संवैधानिक शक्ति राज्य सरकारों के पास है। हालांकि केंद्र सरकार बजट का प्रावधान कर सकती है। उन्होंने एक प्रस्ताव का हवाला दिया जो अनुमोदन के लिए लंबित है, जिसके तहत गैर-आवर्ती खर्च के रूप में 1 करोड़ रुपये और प्रति वर्ष 60 लाख रुपये का आवर्ती खर्च प्रस्तावित किया गया है। इसके अलावा, राज्यों से भूमि और भवन उपलब्ध कराने की अपेक्षा की गई है।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अगर केंद्र सरकार बजटीय सहायता सुनिश्चित करती है, तो उच्च न्यायालयों और राज्यों की भूमिका बाद में तय की जा सकती है। उन्होंने इस पहल को अपराधियों के खिलाफ एक मजबूत संदेश के रूप में देखा और कहा कि यह समाज में न्याय के प्रति विश्वास को बढ़ावा देगा।
NIA का यह कदम विशेष रूप से ऐसे मामलों में महत्वपूर्ण हो जाता है, जिनमें राष्ट्र की सुरक्षा, संगठित अपराध और आतंकवाद जैसे गंभीर खतरे शामिल होते हैं। वर्तमान में इन मामलों की सुनवाई में वर्षों लग जाते हैं, जिससे न केवल पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी होती है, बल्कि न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता भी प्रभावित होती है।