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सरकार ने प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया, लेकिन इसमें बारिश लाने में सफलता नहीं मिली। हालांकि, वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ और प्रदूषण के स्तर में कमी आई। विपक्ष ने आलोचना करते हुए बर्बादी करार दिया है।
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग पर विवाद
New Delhi: दिल्ली में प्रदूषण की बढ़ती समस्या को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने वैज्ञानिक तरीके से क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया, लेकिन इस प्रयोग में अभी तक बारिश लाने में सफलता नहीं मिल सकी है। दिल्ली सरकार और आईआईटी कानपुर के संयुक्त प्रयास के तहत दो लगातार क्लाउड सीडिंग प्रयोग किए गए थे, लेकिन नमी की कमी के कारण पिछले प्रयासों में बारिश नहीं हो पाई। हालांकि, कुछ हद तक हवा की गुणवत्ता में सुधार देखा गया, जिसे अब भविष्य के प्रयासों के लिए एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।
आईआईटी कानपुर ने मंगलवार को दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का अगला प्रयोग स्थगित करने का निर्णय लिया। इसका कारण था कि इस दौरान बादलों में नमी का स्तर बहुत कम था, मात्र 15 से 20 प्रतिशत, जो इस प्रयोग के लिए अपर्याप्त था। संस्थान ने स्पष्ट किया कि क्लाउड सीडिंग केवल तब ही सफल हो सकता है जब बादलों में पर्याप्त नमी हो, जो कम से कम 50 प्रतिशत हो। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस कम नमी के बावजूद, जो आंकड़े मिले हैं, वे भविष्य के प्रयोगों में उम्मीद बढ़ाने वाले हैं।
दिल्ली में क्लाउड सीडिंग पर विवाद
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें विमान से बादलों में सिल्वर आयोडाइड या सोडियम क्लोराइड जैसे कण छोड़े जाते हैं। ये कण जलकणों के रूप में बदलते हैं, जिससे बादलों में नमी का स्तर बढ़ता है और बारिश संभव होती है। इस पूरी प्रक्रिया को सही समय, सही बादलों और उचित निगरानी के साथ किया जाता है। दिल्ली में यह प्रयोग प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए किया जा रहा है। हालांकि, यह पूरी तरह मौसम की अनुकूलता पर निर्भर करता है और बिना पर्याप्त नमी के, यह प्रक्रिया सफल नहीं हो सकती।
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हालांकि, आईआईटी कानपुर के प्रयोग में बारिश नहीं हो सकी, लेकिन वायु गुणवत्ता में कुछ सुधार जरूर हुआ। दिल्ली के 20 मॉनिटरिंग स्टेशनों पर पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर में गिरावट दर्ज की गई। मयूर विहार, करोल बाग और बुराड़ी में पीएम 2.5 का स्तर क्रमशः 221, 230 और 229 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से घटकर 207, 206 और 203 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गया। वहीं, पीएम 10 का स्तर भी घटकर 177, 163 और 177 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गया। अधिकारियों का कहना है कि यह सुधार बादलों में छोड़े गए कणों के प्रभाव से आया, जिससे धूल नीचे बैठ गई और हवा में थोड़ी शुद्धता आई।
आईआईटी कानपुर की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि भले ही बारिश नहीं हुई, लेकिन दिल्ली के मॉनिटरिंग स्टेशनों से जो डेटा मिला, उससे उम्मीदें बढ़ी हैं। उन्होंने कहा कि आंकड़ों में 6 से 10 प्रतिशत तक पीएम 2.5 और पीएम 10 में कमी आई, जो यह दर्शाता है कि क्लाउड सीडिंग से हवा की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है। यह सकारात्मक संकेत है और इससे भविष्य के प्रयोगों में सफलता की संभावना बढ़ी है। आगे की कोशिशें मौसम की स्थिति के आधार पर की जाएंगी, ताकि क्लाउड सीडिंग का पूरा लाभ उठाया जा सके।
इस वैज्ञानिक प्रयास के बावजूद, राजनीतिक दलों ने इसे आलोचना का विषय बनाया। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर तीखा हमला करते हुए कहा कि भाजपा सरकार का क्लाउड सीडिंग का दूसरा प्रयास भी विफल साबित हुआ है। उनका आरोप था कि सरकार सिर्फ बयानबाजी और प्रचार पर ध्यान दे रही है, जबकि प्रदूषण, सफाई और यमुना की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। यादव ने यह भी कहा कि 3.21 करोड़ रुपये खर्च करके किया गया यह प्रयोग केवल दिखावा था, जबकि प्रदूषण में कोई कमी नहीं आई।
आप पार्टी ने भी इस प्रयोग पर हमला बोला और इसे भाजपा सरकार का महाघोटाला करार दिया। सौरभ भारद्वाज ने कहा कि केंद्र सरकार की तीन प्रमुख एजेंसियों ने पहले ही बताया था कि दिल्ली में सर्दियों में कृत्रिम बारिश संभव नहीं है, फिर भी सरकार ने 3.5 करोड़ रुपये खर्च कर क्लाउड सीडिंग का ड्रामा किया। उन्होंने यह भी कहा कि अगर प्रदूषण नियंत्रण की गंभीरता होती, तो यह पैसा एंटी स्मॉग गन, स्प्रिंकलर और स्वीपिंग मशीनों पर खर्च किया जाता।
दिल्ली सरकार ने इस वैज्ञानिक प्रयोग के लिए आईआईटी कानपुर के साथ 5 परीक्षणों का समझौता किया था, जिसका कुल बजट 3.21 करोड़ रुपये था। इस पर खर्च होने वाली राशि की आलोचना की गई, खासकर जब यह पता चला कि प्रयोग के परिणाम साकारात्मक नहीं थे। आप पार्टी के नेताओं ने इस पर सवाल उठाया और कहा कि यह पैसे का व्यर्थ उपयोग था, जबकि प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों का धुआं, धूल और औद्योगिक उत्सर्जन हैं।