

सनातन धर्म में अहोई अष्टमी व्रत का बहुत बड़ा महत्व है। इसे संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और उनकी रक्षा के लिए रखा जाता है। अहोई अष्टमी के व्रत का आरंभ सूर्योदय से हो जाता है, इसलिए इससे पहले व्रती को स्नान आदि कार्य कर लेना चाहिए।
प्रतीकात्मक छवि
New Delhi: सनातन धर्म में अहोई अष्टमी व्रत का बहुत बड़ा महत्व है। इसे संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और उनकी रक्षा के लिए रखा जाता है। यह व्रत हर साल कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। जिस प्रकार करवा चौथ का व्रत पति की लंबी उम्र के लिए होता है, उसी तरह अहोई अष्टमी का व्रत मां अपनी संतान के लिए रखती है। इस व्रत में माताएं अहोई माता की पूजा करती हैं। वहीं, इस दिन शिव-पार्वती पूजा के दौरान शिव चालीसा का पाठ करना परम कल्याणकारी माना जाता है।
द्रिक पंचांग के अनुसार, साल 2025 में 13 अक्टूबर की दोपहर से लेकर 14 अक्टूबर 2025 की सुबह 11 बजकर 9 मिनट तक कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रहेगी। ऐसे में 13 अक्टूबर 2025, वार सोमवार को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाएगा।
अहोई अष्टमी के व्रत का आरंभ सूर्योदय से हो जाता है, इसलिए इससे पहले व्रती को स्नान आदि कार्य कर लेना चाहिए। द्रिक पंचांग के अनुसार, 13 अक्टूबर 2025 को सूर्योदय प्रात: काल 6 बजकर 36 मिनट पर होगा. ऐसे में इससे पहले ही स्नान आदि कार्य कर लें। बता दें कि अहोई अष्टमी की पूजा सुबह और शाम दोनों समय पर की जाती है। इस दिन शाम में अहोई माता की पूजा का शुभ मुहूर्त 06:16 मिनट से लेकर 07:30 मिनट तक है।
मुख्य मंत्र- ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः
सुरक्षा कवच मंत्र- ॐ अहोई देव्यै नमः
समृद्धि मंत्र- ॐ नमो भगवती अहोई मातायै स्वाहा
अहोई अष्टमी के दिन मिट्टी का काम (जैसे बागवानी) या नुकीली चीजों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
इस दिन किसी से झगड़ा या अपशब्द बोलने से भी बचना चाहिए।
अहोई माता को अर्पित शृंगार की वस्तुएं पूजा के बाद सास या किसी बुजुर्ग महिला को दान करें।
इसके अलावा आप यह सामग्री मंदिर में भी दान कर सकती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत मातृत्व और संतानों के प्रति प्रेम का प्रतीक माना जाता है। श्रद्धा और भक्ति से व्रत करने पर अहोई माता की कृपा से परिवार में सुख, समृद्धि और संतान सुख मिलता है।