

बॉम्बे हाईकोर्ट ने दहेज उत्पीड़न केस की सुनवाई में वैवाहिक कलह और कानूनों के दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई। कोर्ट ने विवाह को पवित्र बंधन बताते हुए रिश्तों को संभालने की सलाह दी।
बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
Mumbai: दहेज उत्पीड़न से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट ने वैवाहिक कलह और विवाह संस्था के गिरते मूल्यों पर गहरी चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी के बीच छोटी-छोटी बातों से उपजे झगड़े सिर्फ दोनों व्यक्तियों का ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार का जीवन बर्बाद कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि, विभिन्न कारणों से आजकल वैवाहिक कलह समाज में एक समस्या बन गई है। छोटी-छोटी बातें हिंदुओं में पवित्र माने जाने वाले विवाह को भी खतरे में डाल रही हैं।
न्यायमूर्ति नितिन साम्ब्रे और न्यायमूर्ति एमएम नेर्लिकर की नागपुर पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब वे एक व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करने संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक मिलन है, जिसमें दो आत्माएं जुड़ती हैं। कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक संबंधों को बेहतर बनाने के लिए कई कानून बनाए गए हैं, लेकिन इनका दुरुपयोग बढ़ता जा रहा है। इसके कारण न सिर्फ पति-पत्नी बल्कि परिवार के अन्य सदस्य, यहां तक कि बच्चे भी मानसिक और शारीरिक पीड़ा, आर्थिक क्षति और अनावश्यक संघर्षों का सामना कर रहे हैं।
यह मामला दिसंबर 2023 में दर्ज हुआ था जब एक महिला ने अपने पति और ससुराल वालों पर दहेज उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। बाद में दोनों पक्षों के बीच सुलह हो गई और तलाक आपसी सहमति से हो गया। महिला ने कोर्ट को बताया कि उसे अब कोई आपत्ति नहीं है और वह अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती है।
इसके बाद कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) और दहेज निषेध अधिनियम की उन धाराओं के तहत दर्ज केस को रद कर दिया, जो सामान्यतः समझौता-योग्य नहीं मानी जातीं। कोर्ट ने कहा कि न्याय के हित में अदालतें ऐसी कार्यवाहियों को रद्द कर सकती हैं, यदि दोनों पक्ष अपने विवाद सुलझा चुके हों।
कोर्ट ने 8 जुलाई को टिप्पणी करते हुए कहा कि, पति पक्ष के कई लोगों पर आरोप लगाने की हालिया प्रवृत्ति चिंताजनक है। यह देखा जा रहा है कि व्यक्तिगत मतभेदों को व्यापक आपराधिक मुकदमों में बदल दिया जाता है, जिससे पूरा परिवार कानूनी झमेलों में फंस जाता है। अदालत ने कहा कि यदि कोई दंपती आपसी सहमति से विवाद सुलझा लेता है और शांतिपूर्ण जीवन की ओर बढ़ना चाहता है, तो न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित करे।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने जताई वैवाहिक विवादों पर चिंता
कोर्ट ने कहा कि यदि पुनर्मिलन संभव नहीं है, तो विवादों को समाप्त करना ही बेहतर है ताकि दोनों पक्षों का भविष्य सुरक्षित रह सके। अदालत ने वैवाहिक विवादों के प्रति संवेदनशीलता और विवेकशीलता की आवश्यकता पर बल दिया।