गोटमार मेले में परंपरा बनी खतरा: अब तक 488 घायल, सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद नहीं थम रही पत्थरबाजी

मध्यप्रदेश के पांढुर्णा में हर साल लगने वाला गोटमार मेला इस बार फिर हिंसक हो गया। परंपरा के नाम पर हो रही पत्थरबाजी में अब तक 488 लोग घायल हो चुके हैं। नदी के दोनों किनारों से बरसते पत्थरों के बीच सुरक्षा के लिए 600 जवान और 200 स्वास्थ्यकर्मी तैनात किए गए हैं। प्रशासन ने धारा 144 लागू की है।

Post Published By: Nidhi Kushwaha
Updated : 23 August 2025, 4:01 PM IST
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Bhopal: मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा शहर में हर साल आयोजित होने वाला गोटमार मेला इस वर्ष भी खून से सना हुआ नजर आयापरंपरा के नाम पर खेले जा रहे इस पत्थर युद्ध में शनिवार दोपहर 3:20 बजे तक 488 लोग घायल हो चुके थे

मेला शुरू होते ही पत्थरों की बौझार

गोटमार मेले की शुरुआत शनिवार सुबह करीब 10 बजे हुईइसके बाद जाम नदी के दोनों ओर पांढुर्णा और सावरगांव से लोगों ने एक-दूसरे पर पत्थरों की बौछार करना शुरू कर दीप्रशासन द्वारा तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। 600 पुलिस जवान, 58 डॉक्टर और 200 से अधिक मेडिकल स्टाफ को मौके पर तैनात किया गया थाइसके बावजूद पत्थरबाजी को रोका नहीं जा सकाकलेक्टर अजय देव शर्मा ने क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी है, ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके और अप्रिय घटनाओं से बचा जा सके

इतिहास में दर्ज 13 मौतें

गोटमार मेले का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन इसके पीछे छुपा खतरनाक पहलू भी उतना ही गंभीर है। 1955 से 2023 तक इस मेले में 13 लोगों की जान जा चुकी हैइनमें से एक ही परिवार के तीन सदस्य भी शामिल हैंइसके अलावा, दर्जनों लोग ऐसे हैं जिन्होंने इस खेल में अपनी आंखें, हाथ या पैर गंवाए हैं

पुलिस के अनुसार, अब तक किसी ने भी थाने में औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई, जिससे मेले से जुड़ा कोई केस दर्ज नहीं हो सकापांढुर्णा थाना प्रभारी अजय मरकाम के मुताबिक, ये लोग इसे परंपरा मानकर सहन कर लेते हैं, लेकिन अपनों को खोने वाले परिवार इसे शोक दिवस के रूप में याद करते हैं

क्या है गोटमार की परंपरा?

गोटमार मेले की शुरुआत चंडी माता की पूजा के साथ होती हैइसके बाद सावरगांव के लोग नदी के बीच में पलाश के पेड़ को खड़ा करते हैंइस पेड़ को प्रतीकात्मक रूप से एक कुंवारी कन्या माना जाता है, जिसे सावरगांव के लोग रक्षा करते हैंपरंपरा के अनुसार, पांढुर्णा के लोग इस पेड़ पर कब्जा जमाने की कोशिश करते हैं और सावरगांव के लोग इसकी रक्षा में लग जाते हैंइस दौरान दोनों ओर से पत्थरबाजी शुरू हो जाती हैमेले का समापन तब होता है जब पांढुर्णा के लोग पलाश के पेड़ पर झंडा फहराने में सफल हो जाते हैंइसके बाद दोनों पक्षों द्वारा चंडी माता की फिर से पूजा की जाती है और पत्थरबाजी समाप्त होती है

परंपरा बनाम सुरक्षा

गोटमार मेला सवालों के घेरे में है। एक ओर इसे सांस्कृतिक विरासत और परंपरा कहा जाता है, तो दूसरी ओर यह खेल हिंसा और जानलेवा चोटों का कारण बनता है। प्रशासन हर साल इसके आयोजन के लिए सुरक्षा बंदोबस्त करता है, लेकिन जमीनी स्तर पर नियंत्रण लगभग असंभव साबित होता है। स्वास्थ्य केंद्रों की अस्थायी व्यवस्था, सुरक्षाबलों की तैनाती और चिकित्सा दल की सक्रियता, यह सब कुछ मिलकर भी गोटमार की पत्थरबाजी को रोक नहीं पा रहे हैं

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