

शहडोल मेडिकल कॉलेज में गर्भवती महिलाओं और सर्जरी करवाने वाले मरीजों को आयोडीन सॉल्यूशन से गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस सॉल्यूशन से स्किन पर जलन, लालपन और छाले पड़ रहे हैं।
आयोडीन सॉल्यूशन का खौफ
Bhopal: मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में स्थित बिरसा मुंडा मेडिकल कॉलेज में गर्भवती महिलाओं और सर्जरी करवाने वाले मरीजों के लिए एक नया स्वास्थ्य संकट खड़ा हो गया है। यह संकट आयोडीन सॉल्यूशन के उपयोग से जुड़ा है, जो ऑपरेशन से पहले स्किन को साफ करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हाल ही में सामने आए मामलों में यह सॉल्यूशन मरीजों की स्किन पर जलन, लालपन और छाले पैदा कर रहा है, जिससे कई मरीजों को गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
दो महीने से अधिक समय से आयोडीन सॉल्यूशन का उपयोग करने के बाद, शहडोल मेडिकल कॉलेज में कई मरीजों ने इस सॉल्यूशन से जुड़ी गंभीर समस्याओं की शिकायत की है। मरीजों की स्किन पर जलन, गहरे घाव, और छाले जैसे लक्षण सामने आए हैं, जो जल्दी ठीक नहीं हो रहे। इन समस्याओं का सबसे अधिक असर गर्भवती महिलाओं और सर्जरी करवाने वाले मरीजों पर पड़ा है। कई मरीजों के परिवारवालों ने इस मामले को लेकर आपत्ति जताई है और इसके कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं पर चिंता व्यक्त की है।
आयोडीन सॉल्यूशन का खौफ
बिरसा मुंडा मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. गिरीश बी रामटेक ने इस मामले को गंभीरता से लिया और माना कि कुछ मरीजों को इस सॉल्यूशन से समस्याएं आई हैं। डीन ने यह भी कहा कि स्किन एक्सपर्ट्स द्वारा इन मरीजों का इलाज किया जा रहा है और उनकी स्थिति में कुछ दिनों में सुधार हो जाएगा। हालांकि, यह सवाल उठता है कि जब इतनी गंभीर समस्या सामने आई थी, तब क्यों प्रबंधन ने समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया और मरीजों को इस तरह की समस्याओं से क्यों जूझने दिया।
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खुशबू सेन, जो छत्तीसगढ़ के जनकपुर से शहडोल मेडिकल कॉलेज इलाज के लिए आई थीं, ने अपने अनुभव को साझा करते हुए बताया कि उनकी डिलीवरी के दौरान आयोडीन सॉल्यूशन का इस्तेमाल किया गया। कुछ ही घंटों बाद, उनकी स्किन पर जलन होने लगी और पीठ पर छाले पड़ गए। उनके पति धीरज सेन ने कहा कि जिस सॉल्यूशन से इलाज की उम्मीद थी, उसने उनकी पत्नी को और अधिक परेशान किया। उनके जैसे अन्य मरीजों के परिजनों ने भी इसी तरह की समस्याओं की शिकायत की है।
यह आयोडीन सॉल्यूशन इंदौर की समकेम कंपनी से सप्लाई किया गया था। जिस बैच से मरीजों को दिक्कत हो रही थी, उसे अब मेडिकल कॉलेज ने हटा लिया है। नए सॉल्यूशन की व्यवस्था की जा चुकी है, लेकिन अब सवाल यह उठता है कि इस बैच की जांच पहले क्यों नहीं की गई? क्या मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने इस मामले की गंभीरता को समय रहते समझा और इस पर कार्रवाई की? इतने गंभीर मामलों के बावजूद प्रबंधन ने दो महीने तक इसे नजरअंदाज क्यों किया?
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मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से अब यह सवाल पूछा जा रहा है कि इस घटना के बाद क्या ठोस कदम उठाए जाएंगे ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही से बचा जा सके। जब मरीजों की जान और स्वास्थ्य दांव पर हो, तो मेडिकल प्रबंधन को अधिक जिम्मेदारी के साथ काम करना चाहिए।