

नवरात्रि का पावन पर्व 22 सितंबर से शुरू हो रहा है, जिसमें मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाएगी। पहले दिन मां शैलपुत्री की विशेष पूजा का महत्व अत्यधिक है, जो जीवन में सुख-समृद्धि और मोक्ष का वरदान देती हैं। जानिए मां शैलपुत्री की पूजा विधि और उनकी पौराणिक कथा।
मां शैलपुत्री की पूजा से मिलते हैं दिव्य फल
New Delhi: आदिशक्ति की उपासना का महान पर्व नवरात्रि इस वर्ष 22 सितंबर से प्रारंभ हो रहा है। यह पर्व विशेष रूप से मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा अर्चना का समय होता है। नवरात्रि के पहले दिन विशेष रूप से मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप, मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री की उपासना से न केवल जीवन के सारे कष्ट दूर होते हैं, बल्कि भक्तों को शक्ति, आत्मबल और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ ही मां शैलपुत्री की पूजा का प्रारंभ किया जाता है। विशेष रूप से यह दिन, भक्तों के जीवन में आत्मबल और शारीरिक शक्ति का संचार करता है। शैलपुत्री की उपासना से सांसारिक सुख, मोक्ष की प्राप्ति और जीवन में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है।
मां शैलपुत्री की पूजा से मिलते हैं दिव्य फल
मां शैलपुत्री की पूजा का प्रारंभ शुभ मुहूर्त में स्नान और ध्यान से करना चाहिए। इसके बाद एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर, उस पर अक्षत रखें और मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। अब गंगाजल से उनका अभिषेक करें और लाल फूल, लाल चंदन, और लाल फल अर्पित करें। पूजा के अंत में, मां की आरती करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
नवरात्रि के पहले दिन गाय का घी अर्पित करना विशेष रूप से शुभ माना गया है। मान्यता है कि यह कार्य साधक को आरोग्य का वरदान देता है और शरीर को रोगमुक्त करता है। गाय के घी से अर्पित पूजा से दीर्घायु और शारीरिक ऊर्जा का संचार होता है। यह न केवल शरीर की रक्षा करता है, बल्कि मानसिक शांति भी प्रदान करता है।
मां शैलपुत्री की उपासना का महत्व पौराणिक कथाओं से भी जुड़ा हुआ है। वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं। सती के रूप में उनका जन्म हुआ था और उनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। एक दिन राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया, जिससे सती ने दुखी होकर आत्मदाह कर लिया। भगवान शिव ने क्रोधित होकर यज्ञ को ध्वस्त किया और सती के शव को लेकर विचरण करने लगे।
इसके बाद भगवान विष्णु ने सती के शरीर के 51 अंगों को काटकर पृथ्वी पर फैला दिया, और इन स्थलों को शक्तिपीठ कहा गया। फिर सती ने हिमालय में जन्म लेकर शैलपुत्री के रूप में अवतार लिया। मां शैलपुत्री को शक्ति, सौंदर्य और समृद्धि की देवी माना जाता है और उनकी पूजा से भक्तों को सभी प्रकार की समृद्धि प्राप्त होती है।
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मां शैलपुत्री की पूजा के दौरान एक विशेष मंत्र का जाप करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भक्त मां की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं…
‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नमः।’
नवरात्रि का पहला दिन खासकर मां शैलपुत्री की पूजा के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। यह दिन शक्ति की देवी के प्रथम रूप की उपासना का होता है, और यह भक्तों को जीवन के संघर्षों से उबारने में मदद करता है। इसके अलावा, इस दिन से पूरे नवरात्रि का पर्व शुरू होता है, जो जीवन में नई ऊर्जा और आत्मविश्वास का संचार करता है।