

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने 8.5 बिलियन डॉलर के रेयर अर्थ और क्रिटिकल मिनरल्स समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह डील इलेक्ट्रिक वाहनों, जेट इंजन और रक्षा उपकरणों के लिए आवश्यक मिनरल्स की आपूर्ति सुनिश्चित करेगी और चीन पर पश्चिमी देशों की निर्भरता कम करेगी।
अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया की मिनरल्स डील
Washington: अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच सोमवार, 20 अक्टूबर 2025 को एक महत्वपूर्ण रेयर अर्थ और क्रिटिकल मिनरल्स डील पर हस्ताक्षर हुए। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने व्हाइट हाउस में इस समझौते को औपचारिक रूप दिया।
यह समझौता इलेक्ट्रिक वाहनों, जेट इंजन और रक्षा उपकरणों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले मिनरल्स से संबंधित है। अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, यह डील चार-पांच महीनों की बातचीत के बाद पूरी हुई।
अल्बानीज़ ने इस डील की कुल वैल्यू 8.5 बिलियन डॉलर (लगभग 71,000 करोड़ रुपये) बताई। इस समझौते के तहत अगले छह महीनों में दोनों देश खनन और प्रोसेसिंग प्रोजेक्ट्स में निवेश करेंगे। इसके अलावा, क्रिटिकल मिनरल्स के लिए न्यूनतम मूल्य (Price Floor) तय किया गया है, जो लंबे समय से पश्चिमी कंपनियों की मांग रही।
इस कदम से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच व्यापार और रक्षा उपकरणों का सहयोग भी मजबूत होगा। डील में पनडुब्बी परियोजनाओं और अन्य रक्षा क्षेत्रों पर भी चर्चा शामिल थी।
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का चीन को बड़ा झटका
चीन के पास विश्व के सबसे बड़े रेयर अर्थ रिज़र्व्स हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गया है। अमेरिका अब अपने QUAD साझेदार ऑस्ट्रेलिया पर भरोसा बढ़ा रहा है ताकि चीन पर निर्भरता कम हो सके।
पश्चिमी देशों का उद्देश्य है कि वैश्विक सप्लाई चेन पर चीन का दबदबा कम किया जाए। हाल के महीनों में चीन ने रेयर अर्थ निर्यात नियंत्रण और कर बढ़ा दिया, जिससे वैश्विक उद्योगों में आपूर्ति पर दबाव बढ़ा।
भारत के लिए यह डील खास है। अमेरिका ऑस्ट्रेलिया से मिनरल्स हासिल कर रहा है, जबकि भारत अभी भी कई क्षेत्रों में चीन पर निर्भर है। यह सवाल उठता है कि अगर भारत अपने हित में चीन से डील करे, तो उसे क्यों ‘रणनीतिक जोखिम’ माना जाए, जबकि अमेरिका यही काम कर रहा है।
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विशेषज्ञों के अनुसार, यह समझौता अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक और रक्षा संबंधों को मजबूत करेगा और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शक्ति संतुलन बदल सकता है। भारत के लिए यह चुनौती है कि वह वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य के साथ सामंजस्य बैठाए या अपनी संसाधनों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे।