

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के विरोध में “नो किंग्स” नामक एक वैश्विक आंदोलन शुरू हुआ है। लंदन से शुरू हुआ यह आंदोलन अब अमेरिका, यूरोप और एशिया के कई देशों में फैल चुका है। जानें क्यों हो रहे हैं ये आंदोलन।
अमेरिका में ‘नो किंग्स’ आंदोलन
Washington: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ एक बड़ा वैश्विक आंदोलन शुरू हो गया है। इस अभियान का नाम ‘नो किंग्स’ (No Kings) रखा गया है, जिसका अर्थ है “हम किसी राजा को नहीं मानते।” यह आंदोलन अमेरिका, यूरोप और एशिया में तेजी से फैल रहा है।
शनिवार, 18 अक्तूबर 2025, को लंदन स्थित अमेरिकी दूतावास के बाहर हजारों लोगों ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे राष्ट्रपति ट्रंप की तानाशाही प्रवृत्ति और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर खतरे के विरोध में सड़कों पर उतरे हैं।
लंदन में आयोजित यह रैली इस वैश्विक आंदोलन का पहला चरण मानी जा रही है। आयोजकों के मुताबिक अब तक 2,600 से अधिक शहरों में प्रदर्शन किए जा चुके हैं। स्पेन के मैड्रिड और बार्सिलोना, फ्रांस के पेरिस और जर्मनी के बर्लिन में भी लोगों ने ट्रंप प्रशासन की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन किया। वहीं अमेरिका में न्यूयॉर्क, वॉशिंगटन डीसी, शिकागो और लॉस एंजेलिस जैसे शहरों में हजारों लोगों ने रैलियां निकालीं।
अभियान से जुड़ी संस्था ‘इंडिविजिबल’ की सह-संस्थापक लीह ग्रीनबर्ग ने कहा कि यह आंदोलन लोकतंत्र की आत्मा को बचाने के लिए शुरू किया गया है। उन्होंने कहा, “अमेरिका में कभी राजा नहीं रहा, यही हमारे संविधान की बुनियाद है। अगर लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर की जाती हैं, तो नागरिकों का कर्तव्य है कि वे आवाज उठाएं।”
ट्रंप की नीतियों के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन
अमेरिका में कई जगहों पर प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे, लेकिन प्रशासन ने सुरक्षा कड़ी कर दी है। वर्जीनिया में सैकड़ों प्रदर्शनकारी वॉशिंगटन डीसी की ओर मार्च करते हुए अर्लिंग्टन कब्रिस्तान के पास एकत्र हुए।
इस आंदोलन को अब तक 300 से अधिक सामाजिक संगठनों का समर्थन मिल चुका है। अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) ने भी हजारों स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया है ताकि प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे।
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अमेरिका के प्रगतिशील नेताओं बर्नी सैंडर्स, एलेक्ज़ेंड्रिया ओकासियो-कोर्टेज़ और हिलेरी क्लिंटन ने इस अभियान के प्रति समर्थन जताया। कई मशहूर हस्तियों ने सोशल मीडिया पर #NoKings हैशटैग के साथ एकता का संदेश साझा किया। कुछ महीने पहले ट्रंप के जन्मदिन पर भी इसी तरह के विरोध हुए थे जिनमें लाखों लोग शामिल हुए थे।
ट्रंप ने इन विरोधों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'मुझे राजा कहना गलत है। ये प्रदर्शन राजनीति से प्रेरित हैं और देश की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं।' रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने भी इन प्रदर्शनों को “एंटी-अमेरिका कैंपेन” बताया और इसे विपक्ष की साजिश कहा।
अमेरिकी समाजशास्त्री डाना फिशर का मानना है कि ‘नो किंग्स’ अभियान हाल के वर्षों का सबसे बड़ा जन आंदोलन साबित हो सकता है। उनका कहना है, 'यह सिर्फ ट्रंप की नीतियों का विरोध नहीं, बल्कि उन लोगों की आवाज है जो खुद को हाशिए पर महसूस कर रहे हैं।' फिशर के अनुसार, इस अभियान में तीन मिलियन से ज्यादा लोग शामिल हो सकते हैं, जो दर्शाता है कि जनता अब चुप रहने के मूड में नहीं है।
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अमेरिका और दुनिया भर में ‘नो किंग्स’ आंदोलन के तहत प्रदर्शन हुए, जो तानाशाही के खिलाफ और लोकतंत्र की रक्षा के समर्थन में आयोजित किए गए थे। प्रदर्शनकारियों ने ट्रंप प्रशासन पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करने, आव्रजन नीतियों में कठोरता, ICE छापों और संघीय सैनिकों की तैनाती जैसे कदमों को लेकर तीखी नाराजगी जताई।
न्यूयॉर्क, वॉशिंगटन और शिकागो में हजारों लोग सड़कों पर उतरे और शांतिपूर्ण मार्च किया। आंदोलन ने वैश्विक स्तर पर एकजुटता दिखाते हुए नागरिक अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों की अहमियत को दोबारा रेखांकित किया।