Israel-Iran युद्ध थमा, लेकिन खतरा कायम.. ट्रंप की भूमिका और भारत की कूटनीति क्या कहती है? देखें Video

युद्धविराम की घोषणा के कुछ ही घंटों बाद ईरान ने तीन बार मिसाइल हमले किए। देखिए पूरा सटीक विश्लेषण वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ..

Post Published By: Deepika Tiwari
Updated : 25 June 2025, 1:16 PM IST
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नई दिल्ली: ईरान और इजरायल के बीच चले 12 दिनों के भयावह युद्ध का अंत आखिरकार एक संघर्षविराम यानी सीजफायर के रूप में सामने आया है। लेकिन यह कोई सामान्य सीजफायर नहीं, बल्कि सामरिक और कूटनीतिक जटिलताओं से भरा हुआ है। यह युद्ध अपने पीछे सिर्फ तबाही नहीं, बल्कि कई सवाल, संकेत और भविष्य के लिए चेतावनियां छोड़ गया है।

12 दिनों से धधक रही जंग की आग

 मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने  The MTA Speaks में संघर्षविराम यानी सीजफायर को लेकर बड़ी जानकारी दी। 24 जून 2025 को, इजरायल और ईरान दोनों ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से प्रस्तावित युद्धविराम योजना को स्वीकार कर लिया। इस निर्णय के बाद, मध्य पूर्व में 12 दिनों से धधक रही जंग की आग कुछ हद तक ठंडी पड़ी। लेकिन इससे पहले कि युद्धविराम पूरी तरह लागू होता, ईरान ने तड़के इजरायल पर मिसाइल हमले किए, जिनमें 7 लोगों की मौत हुई। जवाब में, इजरायल ने सुबह से पहले ईरान के कई ठिकानों पर भीषण हवाई हमले किए।
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पुष्टि की कि इजरायल ने ट्रंप के समन्वय में ईरान के साथ द्विपक्षीय युद्धविराम पर सहमति जताई है। उन्होंने कहा कि इजरायल ने 12 दिनों के अभियान में अपने सभी सैन्य लक्ष्य प्राप्त कर लिए हैं — जिनमें ईरान के परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को नुकसान पहुंचाना, सैन्य नेतृत्व को हानि और प्रमुख सरकारी ठिकानों को निष्क्रिय करना शामिल है। नेतन्याहू ने साफ चेतावनी दी कि अगर संघर्षविराम का उल्लंघन हुआ, तो इजरायल करारा जवाब देगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस सीजफायर को ऐतिहासिक बताया। एनबीसी न्यूज को दिए इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा — "मुझे लगता है कि यह युद्धविराम असीमित है। यह हमेशा के लिए जारी रहेगा।" उन्होंने उम्मीद जताई कि तेहरान और यरुशलम अब एक-दूसरे पर कभी हमला नहीं करेंगे। इससे यह स्पष्ट संकेत मिला कि इस बार अमेरिका का लक्ष्य न सिर्फ युद्ध रोकना था, बल्कि स्थायी शांति की नींव रखना भी था।

 

अंतिम समय तक जंग लड़ने की मानसिकता
ईरानी सरकारी टेलीविजन ने भी मंगलवार को पुष्टि की कि युद्धविराम लागू हो गया है। इजरायल की ओर से बंकर अलर्ट हटा लिया गया और नागरिकों को सेफहाउस से बाहर आने की अनुमति दे दी गई। लेकिन युद्धविराम की घोषणा के कुछ ही घंटों बाद ईरान ने तीन बार मिसाइल हमले किए, जिसमें चार इजरायली नागरिक मारे गए। यह बताने के लिए काफी है कि ईरान खुद को पराजित नहीं मानता, बल्कि अंतिम समय तक जंग लड़ने की मानसिकता में था। ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने कहा कि ईरान की ताकतवर सेना अंतिम क्षण तक देश की रक्षा में डटी रही और हर हमले का जवाब दिया गया। इस बयान ने संकेत दिया कि ईरान ने यह सीजफायर किसी दबाव में नहीं, बल्कि सोच-समझकर और संप्रभु निर्णय के तहत स्वीकार किया।

युद्ध को रोकने में सीधा हस्तक्षे

इस पूरे घटनाक्रम में ट्रंप की भूमिका निर्णायक रही। ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर लिखा कि उन्होंने इस युद्ध को रोकने में सीधा हस्तक्षेप किया और यह सुनिश्चित किया कि पहले ईरान सीजफायर शुरू करे, फिर 12 घंटे बाद इजरायल भी। 24 घंटे में युद्ध पूरी तरह समाप्त होगा। हालाँकि यह नहीं बताया गया कि इन 24 घंटों में दोनों पक्ष किस 'लास्ट मिशन' को अंजाम देना चाहते थे, लेकिन अनुमान है कि यह रणनीति के तहत कुछ अंतिम सैन्य लक्ष्य पूरे करने की योजना थी। अब अगर हम देखें कि इस युद्ध में किसे कितना नुकसान हुआ — तो ईरान को सबसे भारी कीमत चुकानी पड़ी। अमेरिका और इजरायल ने मिलकर ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों — फोर्डो, नतांज और इस्फहान — पर बंकर बस्टर बम गिराए। इन हमलों में रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के चीफ हुसैन सलामी, कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारी और परमाणु वैज्ञानिक मारे गए। वहीं, तेल और गैस इंफ्रास्ट्रक्चर, सैन्य डिपो, और संचार तंत्र को व्यापक क्षति पहुंची। इजरायल ने इस युद्ध में ‘Silent Retaliation Doctrine’ नाम की नई सैन्य रणनीति अपनाई। इसके तहत सिर्फ सैन्य और परमाणु ठिकानों को ही निशाना बनाया गया, सिविलियन इलाकों से दूरी बनाई गई — जिससे वह अंतरराष्ट्रीय आलोचना से भी बच सका। साथ ही, पहली बार Iron Beam लेज़र डिफेंस सिस्टम का सीमित परीक्षण भी किया गया।

क्या यह संघर्षविराम स्थायी है?

इस युद्ध का एक और नया आयाम रहा साइबर युद्ध। ईरान ने आरोप लगाया कि उसके सैन्य कम्युनिकेशन को अमेरिका और इजरायल ने हैक किया। वहीं, इजरायल ने दावा किया कि ईरानी हैकर्स ने उसके पावर ग्रिड और ऊर्जा मंत्रालय को निशाना बनाया — लेकिन उन्हें समय रहते विफल कर दिया गया।भारत की भूमिका की बात करें तो — भारत ने इस पूरे युद्धकाल में सधे हुए स्वर में तटस्थ कूटनीति अपनाई। भारत ने किसी एक पक्ष के समर्थन या विरोध में कोई तीखा बयान नहीं दिया। विदेश मंत्रालय ने केवल इतना कहा कि भारत क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के पक्ष में है और सभी पक्ष संयम बरतें। भारत के लिए यह संतुलन इसलिए भी जरूरी था क्योंकि एक ओर इजरायल के साथ रक्षा और टेक्नोलॉजी साझेदारी है, तो दूसरी ओर ईरान के साथ ऊर्जा सहयोग और चाबहार पोर्ट जैसे प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं।
भारत सरकार ने खाड़ी देशों में बसे 90 लाख से अधिक प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा को सर्वोपरि माना। यूएई, सऊदी अरब, कुवैत और ओमान में दूतावासों ने एडवाइजरी जारी की, हेल्पलाइन शुरू की, और आवश्यक आपातकालीन सेवाएं सुनिश्चित कीं। इसके साथ ही, भारत ने अपने तेल रणनीतिक भंडारों में वृद्धि की ताकि वैश्विक तेल कीमतों के उतार-चढ़ाव से घरेलू अर्थव्यवस्था को कम से कम नुकसान हो। लेकिन बड़ा सवाल यही है — क्या यह संघर्षविराम स्थायी है? या फिर यह सिर्फ एक अस्थायी ठहराव है?

फारस की खाड़ी में छह युद्धपोतों को हाई अलर्ट

सच तो यह है कि यह एक अंतराल है, अंत नहीं। हिज़्बुल्लाह और हमास जैसे संगठन इस मौके का फायदा उठा सकते हैं। अमेरिका ने फारस की खाड़ी में छह युद्धपोतों को हाई अलर्ट पर रखा है। मिडिल ईस्ट में तनाव दबा है, खत्म नहीं। ईरान के भीतर भी जनता में असंतोष बढ़ा है। युद्ध की विभीषिका, आर्थिक संकट और सूचना नियंत्रण के कारण कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। कट्टरपंथी और उदारपंथी गुटों के बीच टकराव और बढ़ा है।अंत में — यह युद्ध यह साफ कर गया कि भविष्य के युद्ध बंदूक या बम से नहीं, बल्कि साइबर स्पेस, अर्थव्यवस्था और कूटनीति में लड़े जाएंगे। और भारत जैसे देशों के लिए अब हर कदम बहुत सावधानी से, लेकिन आत्मविश्वास के साथ रखने का समय है।

 

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