

इजरायल और ईरान के बीच चल रहा संघर्ष अब गंभीर और खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है। ऐसे में क्या दोनो के बीच चल रहा युद्ध भारत के लिए खतरा बन सकता है? पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
चाबहार पर मंडराया संकट
नई दिल्ली: इजरायल और ईरान के बीच चल रहा संघर्ष अब गंभीर और खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है। दोनों देशों के बीच मिसाइलों की बारिश हो रही है, और इसमें अब भारत के रणनीतिक और आर्थिक हित भी फंसते नजर आ रहे हैं। भारत ने ईरान के चाबहार पोर्ट में भारी निवेश कर रखा है, जो अब खतरे में दिख रहा है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत इजरायल-ईरान के बीच बढ़ते तनाव से हुई। इजरायली मीडिया के मुताबिक, ईरान ने इजरायल के स्टॉक एक्सचेंज और अस्पतालों पर हमला किया, जिसमें 25 से ज्यादा मिसाइलें दागी गईं। इसके जवाब में इजरायल के पलटवार की उम्मीदें और बढ़ गई हैं। इस युद्ध की आग में अब अंतरराष्ट्रीय हित भी झुलसने लगे हैं।
ईरान के चाबहार पोर्ट पर भारत ने 550 मिलियन डॉलर (करीब 4,771 करोड़ रुपये) का बड़ा निवेश किया है। यह पोर्ट पाकिस्तान को बायपास करते हुए भारत को अफगानिस्तान, ईरान, मध्य एशिया और यूरोप तक पहुंच देता है। चाबहार भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। मई 2024 में भारत को इस पोर्ट के शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल का 10 साल का संचालन कॉन्ट्रैक्ट मिला था। इंडिया पोर्ट ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) इसका संचालन ईरानी कंपनी आरिया बानाडर के साथ कर रही है।
ईरान और इजरायल के युद्ध में अमेरिका की संभावित भागीदारी और पश्चिमी देशों के प्रतिबंध भारत की चिंता बढ़ा रहे हैं। यदि युद्ध लंबा खिंचता है, तो चाबहार पर बीमा, लॉजिस्टिक्स और शिपमेंट जैसे अहम ऑपरेशनों पर असर पड़ेगा। इसके अलावा भारत-ईरान के बीच रेल कनेक्टिविटी जैसे प्रोजेक्ट भी रुक सकते हैं। भारत का 85 मिलियन डॉलर बर्थ अपग्रेड, 150 मिलियन डॉलर की एक्ज़िम बैंक क्रेडिट लाइन और 400 मिलियन डॉलर की अलग रेल प्रोजेक्ट फंडिंग इस पोर्ट से जुड़ी हुई है। ऐसे में एक बड़ा आर्थिक संकट भारत के सामने खड़ा हो सकता है।
चाबहार-जाहेदान रेलवे प्रोजेक्ट भारत की मदद से 2026 तक पूरा होना था, लेकिन फंडिंग में देरी और ईरान की नाराजगी के कारण इसमें पहले ही बाधाएं आ चुकी हैं। इस रेल लाइन को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) से जोड़ने की योजना थी, जिससे भारत, रूस, ईरान और यूरोप के बीच व्यापार आसान होता। जनवरी 2025 में हुई भारत-ईरान विदेश कार्यालय वार्ता में इस पर चर्चा भी हुई, लेकिन अब यह पूरा नेटवर्क खतरे में दिख रहा है।
चीन पहले से ही पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से जोड़ चुका है और अब वह चाबहार में भी दिलचस्पी दिखा रहा है। उधर, अमेरिका ईरान पर अपने प्रतिबंधों को लेकर सख्त है और भारत को भी चेतावनी दे चुका है कि ईरान से व्यापार करने पर उसे भी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
फिलहाल भारत और ईरान के बीच कूटनीतिक संवाद जारी है, लेकिन युद्ध की आग यदि चाबहार तक पहुंचती है, तो भारत की बड़ी रणनीतिक योजना को गहरा झटका लग सकता है। आने वाले हफ्ते यह तय करेंगे कि भारत चाबहार में अपनी स्थिति मजबूत बनाए रख पाएगा या नहीं। यह केवल एक पोर्ट नहीं, बल्कि भारत की विदेश नीति, व्यापार रणनीति और भू-राजनीतिक संतुलन की परीक्षा है।