

ऑस्ट्रेलिया और नाउरू के बीच 2,216 करोड़ रुपये के निर्वासन सौदे को लेकर राजनीतिक और सामाजिक विवाद शुरू हो गया है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सौदा अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवाधिकारों के खिलाफ है।
नाउरू के राष्ट्रपति डेविड एडियांग और ऑस्ट्रेलियाई PM एंथनी अल्बानीज
Canberra: ऑस्ट्रेलिया ने नाउरू सरकार के साथ लगभग 267 मिलियन डॉलर (₹2,216 करोड़) का एक समझौता किया है। इस समझौते के तहत, ऑस्ट्रेलिया उन सभी गैर-वीज़ा धारकों और अवैध प्रवासियों को नाउरू वापस भेज देगा, जिनके पास देश में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। समझौते के अनुसार, प्रवासियों का पहला जत्था आने पर नाउरू को पूरी राशि दी जाएगी। इसके अलावा, पुनर्वास के लिए हर साल 381 करोड़ रुपये अतिरिक्त दिए जाएँगे।
नाउरू दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित एक छोटा सा द्वीपीय राष्ट्र है, जिसका क्षेत्रफल केवल 21 वर्ग किलोमीटर है। यह दुनिया का तीसरा सबसे छोटा देश है, जो केवल वेटिकन सिटी और मोनाको से बड़ा है। इतने छोटे देश पर इतनी बड़ी संख्या में प्रवासियों की ज़िम्मेदारी सौंपे जाने से कई सवाल उठ रहे हैं।
ऑस्ट्रेलियाई गृह मंत्री टोनी बर्क ने कहा कि जिन लोगों को देश में रहने का कानूनी अधिकार नहीं है, उन्हें यहाँ से जाना होगा। उन्होंने बताया कि नाउरू में उनके लिए उचित देखभाल और लंबे समय तक रहने की व्यवस्था की जा रही है। फरवरी 2025 में हुए समझौते के तहत, ऑस्ट्रेलिया तीन हिंसक अपराधियों को नाउरू भेजने की भी तैयारी कर रहा है।
मानवाधिकार समूहों और विपक्षी दलों का कहना है कि यह समझौता न केवल अमानवीय है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कानून का भी उल्लंघन करता है। ऑस्ट्रेलियन ग्रीन्स पार्टी के सीनेटर डेविड शूब्रिज ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि छोटे पड़ोसी देशों को "21वीं सदी की जेल कॉलोनियों" में बदला जा रहा है।
असाइलम सीकर रिसोर्स सेंटर की डिप्टी सीईओ जना फावरो ने इस समझौते को "भेदभावपूर्ण और खतरनाक" बताया। उन्होंने कहा कि यह कदम ऑस्ट्रेलियाई मूल्यों और लोकतांत्रिक सोच के खिलाफ है। उनका कहना है कि सरकार लोगों को केवल उनके जन्मस्थान के आधार पर दंडित कर रही है।
गौरतलब है कि 2023 में ऑस्ट्रेलिया के उच्च न्यायालय ने उन अप्रवासियों के लिए अनिश्चितकालीन हिरासत की नीति को खारिज कर दिया था, जिन्हें न तो वीज़ा मिल रहा था और न ही उन्हें निर्वासित किया जा सकता था। ऐसे लोगों को उनके देश वापस भेजना खतरनाक हो सकता है क्योंकि उन्हें वहां उत्पीड़न या हिंसा का सामना करना पड़ सकता है।
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