

पाकिस्तान और अमेरिका के बीच रिश्ते हमेशा से स्वार्थ और मजबूरी के इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं। शहबाज शरीफ और डोनाल्ड ट्रंप की संभावित मुलाकात को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है। यह मुलाकात दोस्ती नहीं, बल्कि आर्थिक और कूटनीतिक दबावों की उपज है।
ट्रंप-शहबाज
New Delhi: जुलाई 2019 के बाद पहली बार अमेरिका के किसी राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के बीच व्हाइट हाउस में मुलाकात की तैयारी हो रही है। शहबाज शरीफ और डोनाल्ड ट्रंप की यह बैठक दुनिया में पाकिस्तान की "अहमियत" दिखाने की कोशिश की जा रही है लेकिन यह शो वास्तव में किसके लिए है?
जहां पाकिस्तान के मीडिया और नेता इसे ‘ऐतिहासिक क्षण’ बता रहे हैं, वहीं अमेरिका और दुनिया के बाकी हिस्सों में इस मुलाकात को लेकर कोई खास चर्चा नहीं है। यह संकेत देता है कि ‘दुनिया की बड़ी दोस्ती’ का दावा केवल पाकिस्तान के अंदर सीमित है।
ट्रंप-शहबाज
पाक-अमेरिका रिश्ते पारंपरिक रूप से दोस्ती पर नहीं, बल्कि रणनीतिक जरूरतों और तात्कालिक स्वार्थों पर आधारित रहे हैं। अमेरिका जब अफगानिस्तान में फंसा, तब पाकिस्तान की जरूरत थी। अब चीन और भारत के दबाव में भी अमेरिका पाकिस्तान को सिर्फ एक अस्थायी रणनीतिक मोहरे की तरह देखता है।
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एक समय अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा था "जो लोग अपने आंगन में सांप पालते हैं, वह एक दिन खुद ही डंस लिए जाते हैं।" ये बात पाकिस्तान के आतंकियों को पनाह देने के रुख पर कही गई थी। आज भी यह कटाक्ष पाकिस्तान की विदेश नीति पर बिल्कुल फिट बैठता है।
डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात के लिए शरीफ भले ही तैयारी कर रहे हों, लेकिन हकीकत यह है कि पाकिस्तानी आर्मी चीफ असीम मुनीर पहले ही उनसे मिल चुके हैं। पाकिस्तान की विदेश नीति का नियंत्रण असल में सेना के हाथ में है। ऐसे में शरीफ की यह यात्रा महज़ “पब्लिक रिलेशन एक्ट” लगती है।
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पाकिस्तान इस समय गहरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है। IMF की किश्तें, डॉलर की कमी, और बढ़ती महंगाई ने उसे अंतरराष्ट्रीय सहयोग की ओर झुकने को मजबूर किया है। अमेरिका को रिझाना, सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि आर्थिक मजबूरी भी है।
ट्रंप हों या बाइडेन, पाकिस्तान अमेरिका के लिए एक किराए के मकान जैसा है जब तक जरूरत हो, तब तक उपयोग, फिर छोड़ देना। वहीं पाकिस्तान के लिए अमेरिका एक चलता-फिरता ATM है संकट आया नहीं कि दरवाज़ा खटखटा दो।
शहबाज शरीफ की यह बैठक केवल यह दिखाने की कोशिश है कि पाकिस्तान अब भी विश्व मंच पर "प्रासंगिक" है। यह देश की जनता को गुमराह करने का एक तरीका भी है, ताकि भूखी जनता कुछ देर के लिए देशभक्ति के नारों में उलझ जाए।
एक ओर शरीफ व्हाइट हाउस के फोटोज़ के जरिए 'दुनिया से दोस्ती' का दावा करेंगे, दूसरी ओर देश में IMF की सख्त शर्तों पर पेट्रोल, गैस, रोटी महंगी होती रहेगी। अमेरिका से आर्थिक राहत तो चाहिए, मगर स्वाभिमान की बातें सिर्फ भाषणों तक सीमित हैं।