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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रक्षा मंत्रालय को परमाणु हथियारों की टेस्टिंग दोबारा शुरू करने का आदेश दिया है। रूस और चीन के हालिया परीक्षणों के बाद लिया गया यह फैसला वैश्विक स्तर पर नए हथियारों की दौड़ को जन्म दे सकता है।
पुतिन-जिनपिंग से घबराए ट्रंप
Washington: अमेरिका एक बार फिर परमाणु परीक्षण की दिशा में बढ़ता दिख रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रक्षा मंत्रालय (पेंटागन) को तुरंत परमाणु हथियारों की टेस्टिंग शुरू करने का आदेश दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर कहा कि अब समय आ गया है जब अमेरिका को रूस और चीन की तरह अपनी “राष्ट्रीय सुरक्षा और तकनीकी क्षमता” को मजबूत करने के लिए कदम उठाने होंगे।
ट्रंप ने लिखा, “रूस और चीन लगातार अपने परमाणु हथियारों की टेस्टिंग कर रहे हैं। ऐसे में अमेरिका को भी पीछे नहीं रहना चाहिए। मैंने डिपार्टमेंट ऑफ वॉर को निर्देश दिया है कि जल्द से जल्द परीक्षण प्रक्रिया शुरू की जाए।”
गौरतलब है कि अमेरिका ने आखिरी बार 23 सितंबर 1992 को नेवादा में भूमिगत परमाणु परीक्षण किया था। इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज एच.डब्ल्यू. बुश ने इन परीक्षणों पर रोक लगा दी थी।
ट्रंप के इस कदम ने राजनीतिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है। यह आदेश ऐसे समय में आया है जब हाल ही में उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से दक्षिण कोरिया में मुलाकात की थी। इसके अलावा, रूस हाल ही में अपने यार्स और सिनेवा मिसाइलों का परीक्षण कर चुका है। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनाव और बढ़ सकता है।
33 साल बाद फिर होगा न्यूक्लियर टेस्ट
ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिका के पास दुनिया के सबसे ज्यादा परमाणु हथियार हैं। लेकिन इंटरनेशनल कैंपेन टू एबॉलिश न्यूक्लियर वेपंस (ICAN) के आंकड़ों के अनुसार, रूस के पास करीब 5,500 वारहेड हैं, जबकि अमेरिका के पास लगभग 5,044। ट्रंप के दावे को लेकर विशेषज्ञों ने भी सवाल उठाए हैं।
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका फिर से परमाणु परीक्षण शुरू करता है, तो इससे दुनिया में हथियारों की नई दौड़ शुरू हो सकती है। एजेंसी का कहना है कि ऐसे फैसले से परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रयास कमजोर पड़ेंगे और वैश्विक सुरक्षा पर खतरा बढ़ेगा।
अमेरिकी सीनेटर एलिजाबेथ वॉरेन ने भी ट्रंप की आलोचना करते हुए कहा कि “वह परमाणु हथियारों को खिलौना बना रहे हैं।” उन्होंने इसे “अत्यंत गैर-जिम्मेदाराना कदम” बताया।
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का यह कदम न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी (NPT) का उल्लंघन हो सकता है। इससे न केवल अमेरिका की वैश्विक साख प्रभावित होगी, बल्कि दुनिया में परमाणु हथियारों की नई प्रतिस्पर्धा भी शुरू हो सकती है।
कई विश्लेषक इसे चुनावी रणनीति से भी जोड़कर देख रहे हैं। उनका कहना है कि ट्रंप इस घोषणा के जरिए अपनी “सख्त नेतृत्व” की छवि मजबूत करना चाहते हैं। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस कदम को शांति के लिए खतरा मान रहा है।