

आगरा पुलिस ने एक बड़े अवैध धर्मांतरण गिरोह का पर्दाफाश किया है, जिसमें मास्टरमाइंड अब्दुल रहमान, उनके बेटे अब्दुल्ला, अब्दुल रहीम और रोहतक की एक दलित युवती से जबरन निकाह करवाने वाले जुनैद शामिल हैं। इस गिरोह ने कई युवतियों को सोशल मीडिया और छात्र जीवन के दौरान फसाकर धर्मांतरण और झूठे निकाह के जाल में फंसाया। पुलिस अब पूरे गिरोह की रणनीति को उजागर कर रही है।
धर्मांतरण गैंग का घिनौना सच
Agra News: आगरा पुलिस ने दिल्ली के मास्टरमाइंड अब्दुल रहमान के दो बेटों अब्दुल्ला, अब्दुल रहीम और रोहतक की दलित युवती से जबरन निकाह करने वाले जुनैद को गिरफ्तार किया है। अब सामने आया है कि यह गिरोह अवैध धर्मांतरण के जुड़े मामलों में सीधे कार्रवाई करता था।
मास्टरमाइंड का पूरा परिवार शामिल
अब्दुल रहमान और उनका परिवार इस गिरोह की केंद्रशक्ति है। गिरफ़्तारी के बाद उनकी पत्नी का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वह युवतियों को धर्मांतरण के लिए बुलाने की बात कर रही थीं, लेकिन पुलिस की दूसरी दबिश में वह गायब हो गई।
गोवा की SB कृष्णा की चौंकाने वाली कहानी
गोवा की रहने वाली SB कृष्णा ने बताया कि उन्होंने पढ़ाई के दौरान कश्मीरी छात्राओं के माध्यम से धर्मांतरण का जाल फैलाया गया। उन्हें कश्मीर में रखा गया, काम कराया गया, और जब वह वापस लौटना चाही तो गिरोह ने फिर उन्हें संपर्क में ला लिया। बाद में उन्हें धर्मांतरण के लिए कोलकाता बुलाया गया।
रोहतक की युवती को बनाया गया बंधक
पुलिस ने एक रोहतक की युवती को गिरोह के कब्जे से मुक्त कराया। उसे बंधक बनाकर रखा गया था और फिर निकाह कराया गया। उसने पुलिस को बताया कि उसे पहले सुविधाएं दी गई, लेकिन बाद में उसे धोखे का सामना करना पड़ा।
चरण-दर-चरण जाल बिछाया गया
शिक्षण संस्थानों में नेटवर्क: अलग-अलग राज्यों में छात्राओं के बीच गिरोह की शाखाएं ये छात्राएं सोशल मीडिया और सीधा संपर्क करके धर्मांतरण कराने का काम करती थीं।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव: युवतियों को सहज जीवन, भाईचारा, जन्नत जैसे भावनाओं से प्रभावित किया जाता था।
धन, आश्रय, आदि: धर्मांतरण के लिए तैयार युवतियों को पैसा, घर और काम का लालच दिया जाता था।
संबंधित दस्तावेज तैयार करना: धर्म परिवर्तन और निकाह से जुड़े सभी कागजात गिरोह द्वारा तैयार किए जाते थे।
धर्मांतरण के बाद का जीवन
धार्मिक रूपांतरण और निकाह के बाद युवतियों को बुर्के में रखा जाता था, पांच सवेर नमाज़ कराई जाती थी और धार्मिक पुस्तक पढवाई जाती थी, जिससे मानसिक रूप से बाध्य हो जाएं।
बहिर्वापसी मुश्किल, पुलिस मदद से भी दूरी
हर व्यवस्था और दस्तावेज का यह हिस्सा यह सुनिश्चित करता था कि अगर कोई युवती वापस जाना चाहे, तो उसे यह आसान नहीं होता। गिरोह से जुड़ी होने के कारण वह सामाजिक और कानूनी सुरक्षा भी नहीं मांग पाती।