Trump Tariff: भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लागू, चीन को मिली राहत; ट्रंप बोले– दो-तीन हफ्ते में करेंगे विचार

रूस से तेल खरीदने पर भारत को 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी गई है, जो 27 अगस्त से लागू होगा। वहीं चीन को फिलहाल इससे राहत मिली है। राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि चीन पर किसी तरह की कार्रवाई पर अगले दो-तीन हफ्तों में विचार किया जाएगा।

Post Published By: Sapna Srivastava
Updated : 16 August 2025, 11:53 AM IST
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New Delhi: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर एक और 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी है, जो कि रूस से तेल आयात करने की वजह से लागू किया गया है। यह टैरिफ पहले से लागू 25% बेस टैरिफ के अतिरिक्त होगा और 27 अगस्त 2025 से प्रभावी हो जाएगा। इसके साथ ही भारत पर कुल 50% टैरिफ का दबाव बन जाएगा।

वहीं भारत के साथ-साथ रूस का एक और प्रमुख तेल खरीदार चीन, फिलहाल इस अतिरिक्त टैरिफ से बच गया है। ट्रंप ने शुक्रवार को एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि चीन पर तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी और अमेरिका इस मुद्दे पर अगले दो-तीन हफ्तों में फिर विचार करेगा।

रूस से तेल आयात बना वजह

राष्ट्रपति ट्रंप ने दो टूक कहा कि यूक्रेन युद्ध में रूस की भूमिका को लेकर अमेरिका गंभीर है। यदि रूस युद्ध खत्म करने के लिए निर्णायक कदम नहीं उठाता, तो पहले मॉस्को पर और फिर उसके साझेदार देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे। भारत और चीन दोनों ही रूस से बड़े पैमाने पर तेल खरीद रहे हैं, लेकिन कार्रवाई सिर्फ भारत पर की गई है।

चीन को राहत, पर कितने समय तक?

फॉक्स न्यूज के एक सवाल के जवाब में ट्रंप से पूछा गया कि क्या वे चीन पर भी भारत की तरह टैरिफ लगाएंगे, तो उन्होंने जवाब में कहा, "अभी चीन पर तत्काल टैरिफ लगाने की ज़रूरत नहीं है। हम इस पर अगले दो-तीन हफ्तों में फिर विचार करेंगे।" इससे संकेत मिलते हैं कि अमेरिका फिलहाल चीन के साथ कूटनीतिक संतुलन साधना चाहता है।

भारत के लिए झटका

भारत के लिए यह फैसला किसी आर्थिक झटके से कम नहीं है। जहां एक ओर सरकार रूस से सस्ता तेल खरीदकर घरेलू महंगाई पर नियंत्रण रखने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर अमेरिका का यह कदम भारत के ऊर्जा क्षेत्र पर प्रत्यक्ष असर डाल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह टैरिफ लागू रहता है, तो तेल की कीमतें और व्यापार संतुलन प्रभावित हो सकता है।

राजनीतिक संदेश भी छिपा

इस निर्णय में सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक संकेत भी छिपे हैं। यह अमेरिका द्वारा रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। ट्रंप प्रशासन यह दिखाना चाहता है कि जो भी देश रूस के साथ व्यापारिक रिश्ते रखेगा, उसे कीमत चुकानी होगी।

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