क्या है उत्तराखंड में भूस्खलन और बाढ़ की सच्चाई ? जानिए राज्य के खतरे के पीछे छुपे कारण

उत्तराखंड में इस साल बारिश ने भारी तबाही मचाई है। क्या ये सिर्फ प्राकृतिक घटना है या मानव गतिविधियां और जलवायु परिवर्तन भी इसके पीछे हैं? जानिए पूरी सच्चाई और भविष्य की चुनौतियां।

Post Published By: Tanya Chand
Updated : 7 September 2025, 6:11 PM IST
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Dehradun: उत्तराखंड एक बार फिर प्राकृतिक आपदा की चपेट में है। हाल ही में उत्तरकाशी के धाराली क्षेत्र में बादल फटने और अचानक आई बाढ़ ने दर्जनों गांवों को तबाह कर दिया। कई लोगों की मौत हो गई और हजारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना पड़ा। इस आपदा के पीछे कई प्राकृतिक और मानव निर्मित कारण जिम्मेदार हैं।

अत्यधिक वर्षा और जलवायु परिवर्तन का असर

इस साल मानसून में बारिश का पैटर्न असामान्य रूप से तीव्र रहा। भारत मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, दो अलग-अलग वेदर सिस्टम के मेल से उत्तराखंड और हिमाचल में भारी बारिश हुई। इसने न सिर्फ भूमि को अस्थिर किया, बल्कि नदियों का जलस्तर भी खतरनाक सीमा तक बढ़ा दिया।

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हिमालयी भू-संरचना की अस्थिरता

उत्तराखंड हिमालय की युवा पर्वत श्रृंखला पर स्थित है, जो भूवैज्ञानिक रूप से अत्यधिक संवेदनशील है। मेन सेंट्रल थ्रस्ट जैसी जियोलॉजिकल फॉल्ट लाइनों के कारण यहां की चट्टानें कमजोर हैं। जब लगातार बारिश होती है, तो इन कमजोर संरचनाओं में दरारें बढ़ जाती हैं, जिससे भूस्खलन की घटनाएं आम हो जाती हैं।

ग्लेशियरों से बनी झीलों का फटना - एक नया खतरा

वर्तमान संकट का मुख्य कारण ग्लेशियरों से बनी एक अस्थायी झील का टूटना बताया जा रहा है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि धाराली में अचानक आई बाढ़ "moraine-dammed lake" यानी मलबे से बनी झील के फटने से हुई थी। ये झीलें लगातार पिघलते ग्लेशियरों और भूस्खलनों के कारण बनती हैं और जब इनका प्राकृतिक बांध टूटता है, तो विनाशकारी फ्लैश फ्लड आता है।

अनियंत्रित विकास और मानव हस्तक्षेप

उत्तराखंड में पर्यटन, सड़क निर्माण और बांध परियोजनाओं के कारण व्यापक स्तर पर पेड़ों की कटाई और पहाड़ों की खुदाई की जा रही है। इससे मिट्टी की पकड़ कमजोर हो रही है। नदी तटों का अतिक्रमण और निर्माण कार्य नदियों के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डालते हैं, जिससे बाढ़ और भूस्खलन की तीव्रता और बढ़ जाती है।

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आपदा प्रबंधन प्रणाली में खामियां

हालांकि राज्य सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग ने राहत कार्य तेज किए हैं, लेकिन कई क्षेत्रों में समय पर चेतावनी नहीं मिल पाई। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पहले से संवेदनशील क्षेत्रों में Early Warning System लगाया गया होता, तो जान-माल की क्षति को काफी हद तक टाला जा सकता था।

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