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वन विभाग ने “सह-जीवन” परियोजना की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष को कम करना है। लच्छीवाला रेंज में वन्यजीवों के साथ सुरक्षा और जिम्मेदार सह-जीवन को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा।
वन विभाग ने शुरू किया प्रोजेक्ट “सह-जीवन”
Dehradun: लच्छीवाला रेंज जो कि वन्यजीवों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, वहां वन्यजीवों और मानवों के बीच बढ़ते संघर्ष को देखते हुए वन विभाग ने "सह-जीवन" परियोजना की शुरुआत की है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करना और संघर्ष को न्यूनतम करना है।
लच्छीवाला रेंज में हाथी, तेंदुआ, हिरण और अन्य वन्यजीवों का निवास है। यहां बढ़ती मानवीय गतिविधियां, कचरे का उत्सर्जन और जागरूकता की कमी वन्यजीवों और इंसान के बीच संघर्ष को बढ़ाती है। "सह-जीवन" परियोजना इन्हीं समस्याओं का समाधान पेश करती है।
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इस परियोजना के अंतर्गत कई महत्वपूर्ण उद्देश्य तय किए गए हैं:
1. मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना और रोकना।
2. स्थानीय समुदाय, राहगीरों और पर्यटकों को जागरूक करना।
3. वन्यजीवों के प्राकृतिक व्यवहार और उनके आवास के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना।
4. जिम्मेदार और सह-अस्तित्व आधारित जीवनशैली को बढ़ावा देना।
मानव-वन्यजीव संघर्ष का समाधान
वन विभाग ने एक विशेष दिशा-निर्देश जारी किया है, जिसमें नागरिकों से अपील की गई है कि वे:
1. वन क्षेत्र में कचरा, विशेष रूप से भोजन और प्लास्टिक न फेंके।
2. रात के समय अनावश्यक आवाज़, तेज़ रोशनी और वाहन की तेज़ गति से बचें।
3. वन्यजीवों से दूरी बनाए रखें और उन्हें भोजन न दें।
4. खुले में खाने-पीने की वस्तुएं और कचरा न छोड़ें।
5. वन विभाग के दिशा-निर्देशों का पालन करें।
इस परियोजना के तहत ड्रोन और सेंसर्स को संवेदनशील क्षेत्रों में ट्रायल के रूप में लगाया जा रहा है, जिससे संघर्षों की निगरानी की जा सके। इसके अलावा एक नई रणनीति तैयार की जा रही है, ताकि मानव-वन्यजीव संघर्ष को न्यूनतम किया जा सके।
"सह-जीवन" परियोजना यह संदेश देती है कि वन्यजीव कोई समस्या नहीं हैं, बल्कि हमारी प्राकृतिक विरासत हैं। अगर हम जिम्मेदारी, समझदारी और संवेदनशीलता से काम करें, तो हम वन्यजीवों और इंसान के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को सुनिश्चित कर सकते हैं।
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यह पहल केवल वन्यजीवों के लिए नहीं, बल्कि मानवता के लिए भी एक सुरक्षा कदम है। यह सुनिश्चित करता है कि हम प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करते हुए सुरक्षित और सह-अस्तित्वपूर्ण जीवन जी सकते हैं।