Rishikesh: अनिल कपूर और बोनी कपूर पहुंचे परमार्थ निकेतन, मां गंगा से लिया आशीर्वाद

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता अनिल कपूर और बोनी कपूर ने अपनी माता की आत्मा की शांति के लिए गंगा की पूजा की।

Post Published By: Jay Chauhan
Updated : 25 June 2025, 1:23 PM IST
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देहरादून: आध्यात्मिक नगरी ऋषिकेश एक बार फिर खास चर्चा में रही, जब बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता अनिल कपूर और प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक बोनी कपूर मंगलवार को ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन पहुंचे और  मां गंगा की भव्य आरती में भाग लिया। दोनों अभिनेताओं ने मां गंगा की दिव्य और भव्य आरती में सम्मिलित होकर श्रद्धा और भक्ति का भाव प्रकट किया।

जानकारी के अनुसार गंगा तट पर सायंकालीन आरती के दौरान वातावरण पूरी तरह आध्यात्मिक ऊर्जा और दिव्यता से भर गया था। वैदिक मंत्रोच्चार, दीपों की लौ और गंगा तट की आध्यात्मिक गरिमा से प्रभावित होकर दोनों कलाकार पूरी तरह भाव-विभोर हो उठे। श्रद्धा और भक्ति से ओतप्रोत इस अनुभव ने उन्हें आत्मिक शांति और ऊर्जा प्रदान की।

मां गंगा की शरण में अभिनेता अनिल कपूर

इस पावन अवसर पर अनिल कपूर और बोनी कपूर ने अपने माता-पिता, सुरिंदर कपूर और निर्मल कपूर को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने कहा कि उनके जीवन में जो भी मूल्य, अनुशासन और राष्ट्रभक्ति की भावना है, वह उन्हें अपने माता-पिता से विरासत में मिली है।

इस विशेष अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने अनिल कपूर और बोनी कपूर का स्वागत करते हुए उन्हें र्यावरण संरक्षण, योग और आध्यात्मिक जागरूकता से जुड़ने का संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि “ऋषिकेश केवल एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि आत्मिक जागृति का केंद्र है।”

अनिल कपूर ने मां गंगा की आरती में भाग लेने को अपने जीवन का अत्यंत शांतिदायक और प्रेरणादायक अनुभव बताया। उन्होंने कहा कि इस पावन धरती पर आकर उन्हें अद्भुत ऊर्जा और मानसिक शांति की अनुभूति हुई है। वहीं बोनी कपूर ने भी इस यात्रा को "जीवन की दिशा देने वाला क्षण" बताया।

उल्लेखनीय है कि परमार्थ निकेतन आश्रम देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं और विशिष्ट हस्तियों के लिए आध्यात्मिक साधना का केंद्र बना हुआ है। यहां गंगा आरती में भाग लेकर हजारों लोग आत्मिक लाभ प्राप्त करते हैं। अनिल और बोनी कपूर की यह यात्रा भी इसी क्रम में एक विशेष और प्रेरणादायक क्षण बन गई, जो उनके जीवन में एक अविस्मरणीय स्मृति के रूप में दर्ज हो गई है।

यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी रही, बल्कि समाज को पर्यावरण और आध्यात्मिक मूल्यों की ओर भी प्रेरित करने वाली साबित हुई।

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