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यूपी BJP अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया तेज हो गई है। लखनऊ में RSS और BJP की बड़ी बैठक में 6 नामों पर विचार हुआ, जिनमें ब्राह्मण, ओबीसी और दलित समुदाय के नेता शामिल हैं। पार्टी 2027 विधानसभा चुनाव से पहले सामाजिक समीकरण मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है।
UP BJP अध्यक्ष की रेस तेज
Lucknow: उत्तर प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष पद को लेकर हलचल तेज हो गई है। सोमवार शाम लखनऊ में हुई उच्च स्तरीय बैठक ने इस प्रक्रिया को और गति दे दी। बैठक में संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार, बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दोनों उपमुख्यमंत्री शामिल थे। चर्चा का केंद्र 2027 के विधानसभा चुनाव, आगामी पंचायत चुनाव और प्रदेश भाजपा प्रमुख की नियुक्ति रहा।
पूर्व डिप्टी सीएम और वर्तमान राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा इस रेस के सबसे मजबूत उम्मीदवारों में से एक माने जा रहे हैं। शांत स्वभाव, संगठन में लंबा अनुभव और RSS से गहरा जुड़ाव उनके पक्ष में जाता है। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भी भरोसेमंद नेताओं में शुमार होते हैं। ब्राह्मण समाज में उनकी स्वीकार्यता पार्टी के सामाजिक संतुलन की रणनीति में फिट बैठती है।
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दूसरा प्रमुख नाम है बस्ती के सांसद हरीश द्विवेदी का। ABVP से लेकर बीजेपी संगठन तक, द्विवेदी का लंबा सफर उन्हें संगठनात्मक रूप से मजबूत बनाता है। संगठन और सरकार दोनों में अनुभव होने के कारण वे एक संतुलित चेहरा माने जाते हैं। बीजेपी के अंदर उन्हें युवा लेकिन अनुभवी चेहरों की श्रेणी में माना जाता है।
योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह, जो ओबीसी वर्ग के लोध समुदाय से आते हैं, अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार हैं। लोध समाज प्रदेश में बड़ा वोटबैंक है। यह वही समुदाय है जिससे दिवंगत भाजपा दिग्गज कल्याण सिंह आते थे। 2027 को ध्यान में रखते हुए बीजेपी इस वोट बैंक को और मजबूत करना चाहती है।
केंद्रीय मंत्री बी.एल. वर्मा भी इस रेस में शामिल हैं। बदायूं से ताल्लुक रखने वाले वर्मा RSS के बेहद करीबी माने जाते हैं और संगठन से लेकर केंद्र सरकार तक लंबे अनुभव के साथ आते हैं। ओबीसी वोटबैंक को साधने के लिए बीजेपी उन्हें भी गंभीरता से देख रही है क्योंकि 2024 के चुनाव के बाद पार्टी लगातार इस वर्ग को मजबूती से अपनी तरफ बनाए रखना चाहती है।
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पूर्व केंद्रीय मंत्री रामशंकर कठेरिया भी दलित समुदाय से एक प्रमुख दावेदार हैं। आगरा और इटावा में उनकी अच्छी पकड़ है। वे 2009, 2014 और 2019 में लोकसभा पहुंचे, हालांकि 2024 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। फिर भी संगठनात्मक अनुभव और दलित नेतृत्व की जरूरत उन्हें रेस में बनाए हुए है।
एमएलसी विद्यासागर सोनकर, जो 40 साल पहले बूथ अध्यक्ष से राजनीति शुरू कर चुके थे, अब प्रदेश अध्यक्ष पद के गंभीर प्रत्याशी हैं। जौनपुर में जन्मे सोनकर के संघ से गहरे रिश्ते, जिलाध्यक्ष, एससी मोर्चा प्रमुख और प्रदेश कार्यसमिति सदस्य जैसे पदों पर अनुभव उन्हें दलित समाज का मजबूत प्रतिनिधि बनाता है। 2027 से पहले दलितों को वापस अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी उनका नाम बड़ी रणनीति के रूप में देख सकती है, खासतौर पर जब दलित वोटरों का 21% हिस्सा बेहद निर्णायक भूमिका निभाता है।
बीजेपी ने 2014 से उत्तर प्रदेश में गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित वोटबैंक पर पकड़ बनाई है। कुर्मी, मौर्य, निषाद, लोध, कुशवाहा और कई ओबीसी जातियां पार्टी की प्रमुख ताकत रही हैं। अखिलेश यादव के PDA (पीछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) मॉडल के जवाब में बीजेपी सामाजिक संतुलन का नया फॉर्मूला तलाश रही है। सूत्रों का कहना है कि भाजपा ऐसा चेहरा चाहती है जो संगठन को मजबूत करे, सामाजिक समीकरण साधे और 2027 के लिए भाजपा की जमीन को और पुख्ता कर सके।