इटावा की कथा से निकली सच्चाई, UP में जातीय भेदभाव की 5 बड़ी घटनाएं जो समाज को कर गईं शर्मसार

यूपी में जातीय भेदभाव से जुड़ी घटनाएं अक्सर सुर्खियों में रही हैं। इटावा में कथावाचक के साथ हुई घटना न केवल धार्मिक अस्मिता से जुड़ी थी, बल्कि समाज में गहराई तक फैले जातिवाद की भी एक अभिव्यक्ति है।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 2 July 2025, 5:24 PM IST
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Lucknow:  उत्तर प्रदेश में जातीय भेदभाव और धार्मिक असहिष्णुता से जुड़ी घटनाएं अक्सर सुर्खियों में रही हैं। इटावा में कथावाचक के साथ हुई घटना न केवल धार्मिक अस्मिता से जुड़ी थी, बल्कि समाज में गहराई तक फैले जातिवाद की भी एक अभिव्यक्ति है। ऐसे में यहां पिछले कुछ सालों में घटित पांच प्रमुख घटनाओं के बारे में बताया जा रहा है, जिन्होंने यूपी में जातिगत तनाव और भेदभाव को बढ़ावा दिया या उजागर किया

1. हाथरस कांड (2020)

यह पूरा मामला उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले का है। यहां बुलगढ़ी गांव में एक दलित युवती के साथ कथित गैंगरेप और हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया। घटना के बाद प्रशासनिक स्तर पर लापरवाही, परिजनों की इच्छा के विरुद्ध रात में अंतिम संस्कार, और सामाजिक बंटवारे को लेकर जो माहौल बना, उसने यूपी में दलित समुदाय के भीतर असुरक्षा और भेदभाव की गहरी भावना पैदा की। पीड़िता का दलित होना और आरोपियों का सवर्ण समुदाय से होना इस मामले को और संवेदनशील बना गया। सरकार और पुलिस की भूमिका को लेकर जातिगत भेदभाव के गंभीर आरोप लगे।

2. भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद की गिरफ़्तारी (2017)

यूपी के सहारनपुर में भी साल 2017 में एक ऐसा ही मामला देखने को मिला। जिसने जाती वादी की भावना को जन्म दिया था। सहारनपुर में दलित और ठाकुर समुदायों के बीच टकराव के बाद चंद्रशेखर आज़ाद को गिरफ्तार किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें दलितों की आवाज़ उठाने की सजा दी जा रही है। इस पूरे प्रकरण को लेकर दलित समाज में यह धारणा बनी कि राजनीतिक और प्रशासनिक मशीनरी जातिवादी सोच से काम करती है। सहारनपुर दंगे और भीम आर्मी की प्रतिक्रिया जातिगत विभाजन को खुलकर सामने लाए।

3. कुशीनगर दलित बारात रोकने का मामला (2019)

जाती को लेकर भेदभाव की भावना ने उस वक्त भी जन्म लिया था, जब साल 2019 में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में दलित युवक की बारात रोकी गई। ऐसा किसी और ने नहीं बल्कि उच्च जाति के लोगों ने ही किया था। बात सिर्फ इतनी थी कि, दलित युवक घोड़ी पर चढ़कर शादी करने जा रहा था। मामला मारपीट और तनाव तक पहुंचा। इस घटना ने भी साबित कर दिया था कि, ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी जातिगत ऊंच-नीच की सोच कितनी मजबूत है, इसका प्रमाण बनी। प्रशासन ने बाद में पुलिस सुरक्षा में शादी कराई, लेकिन समाज में गहरी दरार उजागर हुई।

4. डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा तोड़े जाने की घटनाएं (लगातार)

इन सबके बावजूद हम सभी ने यूपी के कई जिलों में डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा तोड़ने का मामला भी जाना। इस तरह की घटनाएं रोजाना देखने को मिल रही थी। बलिया, फिरोजाबाद, बहराइच इन जिलों से ऐसे मामले प्रकाश में आए थे। हर वर्ष कई जिलों में बाबा साहेब की मूर्तियां तोड़ने की घटनाएं सामने आती हैं। ये घटनाएं अक्सर रात के अंधेरे में होती हैं और इसके बाद तनाव और प्रदर्शन होते हैं। ये सिर्फ मूर्तियां नहीं, बल्कि दलित अस्मिता और सम्मान पर सीधा हमला मानी जाती हैं। इससे दलित समुदाय में बार-बार असंतोष और असुरक्षा की भावना जन्म लेती है।

5. प्राथमिक स्कूलों में भोजन पर भेदभाव (2018-2022 के दौरान कई मामले)

जातिवाद की भावना को जन्म देने का मामला यूपी के कई जिलों में देखने को मिल चुका है। यूपी के अमेठी, हरदोई और बांदा समेत कई जिलों में प्राथमिक स्कूलों में भोजन पर भेदभाव कर चुके हैं। मिड-डे मील के दौरान दलित बच्चों को पिछली कतारों में बैठाया जाना, खाना परोसने से इनकार, या अलग बर्तनों में भोजन देने जैसे कई मामले सामने आ चुके हैं। इस तरह के मामले यह दिखाते हैं कि, संस्थानिक स्तर पर भी जातीय भेदभाव अब भी गहराई से मौजूद है, और बच्चों को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है।

इटावा की घटना कोई एकल अपवाद नहीं है, बल्कि यूपी की जातिगत संरचना में बार-बार सामने आती रही ऐसी घटनाओं की कड़ी है। धार्मिक और सामाजिक नेतृत्व से जुड़े व्यक्तियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार, खासकर तब जब वे दलित या पिछड़े समुदाय से हों, यह दर्शाता है कि सामाजिक समानता का सपना अभी अधूरा है।

क्या है इटावा कथावाचक का पूरा मामला?

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के जसवंतनगर तहसील अंतर्गत ददरपुर गांव में एक यदुवंशी कथावाचक (श्रीराम कथा वाचक) के साथ कथित तौर पर जातिगत भेदभाव और मारपीट की गंभीर घटना सामने आई थी। इस घटना ने स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि राज्यभर में जातीय तनाव को हवा दी है और सामाजिक-सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़े किए हैं।

घटना का पूरा मामला

कथावाचक युवक गांव में श्रीमद्भागवत कथा करने आए थे। वे स्वयं को यदुवंशी (OBC समुदाय) से बताते हैं और कथावाचन के लिए आमंत्रित किए गए थे। जैसे ही गांव में कथा प्रारंभ हुई, कुछ स्थानीय लोगों ने कथावाचक की जाति को लेकर आपत्ति जताई। आरोप है कि कुछ लोगों ने जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए कथा रोकने की कोशिश की, और कथावाचक को कथास्थल से बाहर निकाल दिया गया। विरोध करने पर कथावाचक के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट भी की गई।

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