मोहन भागवत के रिटायरमेंट के बयान पर सामने आई सपा प्रमुख अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया, कही ये बड़ी बात

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के हालिया बयान ने भारतीय राजनीति में नई बहस को जन्म दे दिया है। गुरुवार को ‘100 वर्ष की संघ यात्रा नए क्षितिज’ कार्यक्रम के दौरान भागवत ने रिटायरमेंट की उम्र को लेकर चल रही चर्चाओं पर अपना पक्ष स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि 75 वर्ष की उम्र में रिटायर हो जाना चाहिए।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 29 August 2025, 10:46 AM IST
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Lucknow: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के हालिया बयान ने भारतीय राजनीति में नई बहस को जन्म दे दिया है। गुरुवार को '100 वर्ष की संघ यात्रा नए क्षितिज' कार्यक्रम के दौरान भागवत ने रिटायरमेंट की उम्र को लेकर चल रही चर्चाओं पर अपना पक्ष स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि 75 वर्ष की उम्र में रिटायर हो जाना चाहिए।

सूत्रों के अनुसार,   डॉ. भागवत ने स्पष्ट किया कि उन्होंने पहले जो भी कहा था, वह पूर्व आरएसएस नेता मोरोपंत पिंगले के विचारों के संदर्भ में था। उन्होंने कहा, "मैंने कभी यह नहीं कहा कि 75 साल की उम्र में मैं रिटायर हो जाऊंगा या किसी और को रिटायर हो जाना चाहिए। हम जीवन में कभी भी सेवा से निवृत्त होने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन जब तक संघ हमें काम करने को कहेगा, हम करेंगे। अगर 80 साल की उम्र में भी संघ कहे कि शाखा चलाओ, तो मुझे चलानी होगी।"

भागवत के इस बयान को राजनीतिक हलकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदर्भ से जोड़कर देखा जा रहा है, जो अगले महीने 75 वर्ष के हो रहे हैं। पहले यह धारणा बनी थी कि संघ 75 वर्ष की उम्र के बाद सक्रिय राजनीति से विराम लेने का समर्थन करता है, लेकिन भागवत की स्पष्टीकरण ने इस धारणा को तोड़ने का प्रयास किया है।

"न रिटायर होऊंगा, न होने दूँगा

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बिना किसी का नाम लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, "न रिटायर होऊंगा, न होने दूँगा। जब अपनी बारी आई तो नियम बदल दिये… ये दोहरापन अच्छा नहीं। अपनी बात से पलटनेवालों पर पराया तो क्या, कोई अपना भी विश्वास नहीं करता है। जो विश्वास खो देते हैं, वो राज खो देते हैं।"

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अखिलेश यादव की यह टिप्पणी राजनीतिक संदेशों से भरी हुई है और सीधे तौर पर भाजपा और संघ के भीतर नियमों के चयनात्मक पालन पर कटाक्ष करती है। इस बयानबाजी के बाद यह स्पष्ट है कि 2024 के बाद की राजनीति में वरिष्ठ नेताओं की भूमिका को लेकर बहस और तेज होने वाली है।

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