

महराजगंज में मिट्टी का पुश्तैनी कारोबार देखिये डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट में क्या है खासियत।
रामकृपाल, मिट्टी से बर्तन बनाते हुए
महराजगंज: सदर ब्लॉक के पिपरा रसूलपुर गांव निवासी लगभग 70 वर्षीय रामकृपाल आज भी अपने पूर्वजों की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। उनका परिवार बीते करीब 150 वर्षों से कुंभकारी यानी मिट्टी से बर्तन और कलात्मक चीजें बनाने के कार्य से जुड़ा हुआ है। यह रामकृपाल की चौथी पीढ़ी है जो इस कला को न सिर्फ सीख रही है बल्कि आगे बढ़ा भी रही है।
डाइनामाइट न्यूज से बातचीत के दौरान रामकृपाल बताते हैं कि “हमारे पूर्वजों ने इस हस्तशिल्प को शुरू किया था और आज भी हम उसी परंपरा को निभा रहे हैं। यह काम अब मेरे बेटे और पोते–पोतियां भी कर रहे हैं।”
रामकृपाल का परिवार लगभग दर्जन भर लोगों का है, और सभी इस काम में किसी न किसी रूप में सहयोग करते हैं। मिट्टी से बर्तन, कलात्मक मूर्तियां और सजावटी सामान बनाने में पूरा परिवार दिन-रात जुटा रहता है। एक ट्राली मिट्टी लाने में लगभग 2000 रुपये खर्च होते हैं, और उसके बाद घंटों मेहनत कर के यह सामग्री तैयार की जाती है।
सरकारी उपेक्षा का शिकार
रामकृपाल ने बताया कि आज तक उन्हें सरकार से कोई सहायता नहीं मिली। पहले एक छोटी सी जमीन दी गई थी, लेकिन उस पर भी अब स्थानीय लोगों द्वारा कब्जा कर लिया है।
“हम कलाकार हैं, लेकिन हमारी कोई सुध लेने वाला नहीं है,” वे मायूस होकर कहते हैं।
बचपन से कला में रुचि ले रही है पोती
रामकृपाल की नन्हीं पोती भी अब इस परंपरा से जुड़ गई है। उसने बताया कि वह स्कूल से लौटने के बाद अपने बाबा और पिता के साथ मिलकर मिट्टी से बर्तन और मूर्तियां बनाना सीखती है। “मुझे यह काम बहुत अच्छा लगता है। मैं पढ़ाई के साथ-साथ यह कला भी सीख रही हूं,” उसने कहा।
हस्तशिल्प की परंपरा और उत्तर प्रदेश का गौरव
उत्तर प्रदेश सदियों से हस्तशिल्प और पारंपरिक कलाओं का गढ़ रहा है। मुगल काल से लेकर आधुनिक समय तक, इस राज्य में कला और कलाकारों को विशेष स्थान मिलता रहा है। बनारस की साड़ी, आगरा का संगमरमर और महराजगंज जैसे जिलों की कुंभकारी कला पूरे भारत में प्रसिद्ध है।
लेकिन मशीनों और फैक्ट्री आधारित उत्पादों के बढ़ते प्रचलन में यह पारंपरिक शिल्प धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। रामकृपाल जैसे कलाकार इस कला को बचाए हुए हैं, लेकिन बिना सरकारी मदद और बाजार की उचित व्यवस्था के यह परंपरा ज्यादा दिन तक जीवित रह पाना मुश्किल दिखती है।
जरूरत है सरकारी संरक्षण और बाजार की पहुंच की
ऐसे कलाकारों को पहचान और मंच देने की सख्त जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस कला को अपनाएं और इसे रोजगार के रूप में देख सकें। यदि सरकार और समाज इन हस्तशिल्पियों की ओर ध्यान दे तो न केवल एक परंपरा बचेगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए द्वार भी खुलेंगे।