

मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है और मुस्लिम समाज के लिए बेहद अहम माना जाता है। खासकर 10वीं मुहर्रम, जिसे ‘यौम-ए-आशूरा’ कहा जाता है, इस दिन को हजरत इमाम हुसैन की शहादत के तौर पर याद किया जाता है।
मुहर्रम इस्लामिक (सोर्स इंटरनेट)
Lucknow: मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है और मुस्लिम समाज के लिए बेहद अहम माना जाता है। खासकर 10वीं मुहर्रम, जिसे 'यौम-ए-आशूरा' कहा जाता है, इस दिन को हजरत इमाम हुसैन की शहादत के तौर पर याद किया जाता है। यह दिन शिया मुसलमानों के लिए खास महत्व रखता है और वे इसे आत्म बलिदान की भावना के साथ मनाते हैं। वहीं, सुन्नी मुसलमान इस दिन रोजा रखते हैं और इबादत करते हैं।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, चूंकि इस्लामी कैलेंडर चांद के दिखने पर आधारित होता है, इसलिए मुहर्रम की तारीख हर साल बदलती रहती है। इस बार मुहर्रम 2025 की शुरुआत 6 या 7 जुलाई को हो सकती है, लेकिन अभी तक इसकी अंतिम पुष्टि नहीं हुई है, क्योंकि इसका निर्णय 5 जुलाई की रात चांद देखने के बाद ही होगा।
अगर 5 जुलाई को चांद दिखता है, तो 6 जुलाई (रविवार) को 'यौम-ए-आशूरा' मनाया जाएगा और उसी दिन यूपी में सरकारी छुट्टी रहेगी। अगर चांद 6 जुलाई को दिखता है, तो 7 जुलाई (सोमवार) को मुहर्रम मनाया जाएगा और उसी दिन अवकाश रहेगा। यूपी सरकार के अवकाश कैलेंडर में मुहर्रम की संभावित छुट्टी 6 जुलाई को दर्ज है, लेकिन फाइनल निर्णय चांद के दर्शन के आधार पर लिया जाएगा।
मुहर्रम विशेष रूप से हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है, जो इस्लाम के पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब के नवासे थे। कर्बला की जंग में अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लड़ते हुए उन्होंने अपने 72 साथियों के साथ बलिदान दिया था। यह दिन सच्चाई, न्याय और बलिदान की मिसाल माना जाता है। शिया मुसलमान इस दिन जुलूस निकालते हैं, ताजिए बनाते हैं और मातम करते हैं। सुन्नी मुसलमान रोजा रखते हैं, कुरान शरीफ की तिलावत करते हैं और दुआएं मांगते हैं। इस दिन दान करना, गरीबों की मदद करना और नेक काम करना पुण्यकारी माना जाता है।
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