

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्रांतिकारी स्व. जयदेव कपूर के परिवार ने इस वर्ष 15 अगस्त को कोई भी सम्मान स्वीकार न करने का ऐलान किया है। स्व. जयदेव कपूर के बेटे संजय कपूर ने पिता के अपमान की बात कहते हुए किसी भी सम्मान लेने से इनकार कर दिया है। पोते मयूर कपूर ने सोशल मीडिया पर बताया कि उनका परिवार स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित किसी कार्यक्रम में भी शामिल नहीं होगा।
परिवार ने सम्मान लेने से किया इंकार
Hardoi: हरदोई में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्रांतिकारी स्व. जयदेव कपूर के परिवार ने इस वर्ष 15 अगस्त को कोई भी सम्मान स्वीकार न करने का ऐलान किया है। स्व. जयदेव कपूर के बेटे संजय कपूर ने पिता के अपमान की बात कहते हुए किसी भी सम्मान लेने से इनकार कर दिया है। पोते मयूर कपूर ने सोशल मीडिया पर बताया कि उनका परिवार स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित किसी कार्यक्रम में भी शामिल नहीं होगा। मयूर कपूर का कहना है कि कई महीनों से जिंदपीर चौराहे के पास उनके क्रांतिकारी बाबा के नाम का साइनबोर्ड पड़ा हुआ है, जिससे उनका अपमान हो रहा है। जब तक प्रशासन और नगर पालिका इस बोर्ड को पुनः स्थापित नहीं करते, उनका परिवार किसी भी सम्मान को स्वीकार नहीं करेगा।
स्थानीय लोगों ने बताया कि यह बोर्ड कुछ समय पहले एक ट्रक चालक द्वारा तोड़ा गया था और तब से सड़क किनारे पड़ा हुआ है। बोर्ड के पास लोग पेशाब करते हैं, जिससे स्वतंत्रता सेनानी के सम्मान को ठेस पहुँच रही है। जिम्मेदारों से कई बार अनुरोध के बावजूद यह बोर्ड आज तक ठीक नहीं हुआ।
स्व. जयदेव कपूर का जन्म 24 अक्टूबर 1908 को हुआ था। किशोरावस्था में ही उन्होंने रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों से संपर्क स्थापित किया। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के भरोसेमंद सदस्य बने और काकोरी कांड (9 अगस्त 1925) और असेम्बली बम कांड (8 अप्रैल 1929) में ऑपरेशनल सपोर्ट और लॉजिस्टिक्स का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे। काकोरी कांड के आरोप में उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली और अंडमान की सेलुलर जेल में अमानवीय यातनाएँ सहनी पड़ीं।
उनके परिवार की ओर से सम्मान न लेने का निर्णय एक बार फिर प्रशासन और जिम्मेदारों की उदासीनता को उजागर करता है। जबकि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देशभर में शहीदों और क्रांतिकारियों को याद किया जा रहा है, जयदेव कपूर के नाम का साइनबोर्ड सड़क किनारे पड़ा रहना उनके संघर्ष और योगदान की अनदेखी का प्रतीक बन गया है।
स्वतंत्रता सेनानी के परिवार का यह कदम प्रशासन और समाज के लिए चेतावनी है कि सम्मान केवल समारोहों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि उनके नाम और योगदान की सुरक्षा और मर्यादा सुनिश्चित करना भी जरूरी है।