

गैंगस्टर एक्ट के एक मामले में हाईकोर्ट ने बहुत बड़ा एक्शन लिया है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट
मुजफ्फरनगर: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट के दुरुपयोग को लेकर उत्तर प्रदेश पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सख्त रुख अपनाया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, कोर्ट ने मुजफ्फरनगर जिले के खालापार थाना क्षेत्र में एक गोकश पर बार-बार गैंगस्टर एक्ट लगाने को कानून का "निर्लज्ज दुरुपयोग" करार देते हुए मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और खालापार थानाध्यक्ष को 7 जुलाई 2025 को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया है।
क्या है मामला?
यह मामला मंशाद उर्फ सोनू नाम के एक व्यक्ति से जुड़ा है, जिस पर 30 मई 2025 को खालापार कोतवाली पुलिस ने गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया था। मंशाद पर पहले से ही 2015 में गैंगस्टर एक्ट के तहत मामला दर्ज था। इसके बावजूद 2023, 2024 और 2025 के पुराने मामलों को आधार बनाकर दोबारा उसी एक्ट के तहत कार्रवाई की गई। जब मंशाद ने इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में जमानत याचिका दाखिल की तो न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर कड़े सवाल खड़े किए।
कोर्ट की तीखी टिप्पणियां
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि यह केवल थाना प्रभारी की मनमानी नहीं है, बल्कि वरिष्ठ अधिकारियों की प्रशासनिक लापरवाही और विवेकहीन निर्णय का नतीजा है। बार-बार गैंगस्टर एक्ट लगाने की कोई कानूनी औचित्यता नहीं है। यह क़ानून की आत्मा और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का घोर उल्लंघन है। एसएसपी और डीएम को एक संयुक्त बैठक में विचार कर विवेकपूर्ण निर्णय लेना चाहिए था न कि पुराने मामलों के आधार पर कार्रवाई दोहरानी चाहिए थी।"
राज्य सरकार भी नहीं दे सकी संतोषजनक जवाब
राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता (एजीए) भी कोर्ट को यह स्पष्ट नहीं कर सके कि एक ही व्यक्ति पर पुराने मामलों के आधार पर गैंगस्टर एक्ट बार-बार क्यों लगाया गया। इससे कोर्ट ने साफ संकेत दिए कि यह मामला दुर्भावना और प्रशासनिक गैरजिम्मेदारी से जुड़ा हुआ है। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए मंशाद को अंतरिम जमानत प्रदान कर दी है।
सरकार के नियमों का भी अपमान
कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के गोरखनाथ मिश्रा, विनोद बिहारी लाल और लाल मोहम्मद मामलों का हवाला देते हुए कहा कि गैंगस्टर एक्ट के बार-बार प्रयोग की यह प्रवृत्ति न केवल संविधान विरोधी है, बल्कि हाल ही में राज्य सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का भी अपमान है।
वरिष्ठ अधिकारियों की व्यक्तिगत पेशी अनिवार्य
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले में मुजफ्फरनगर के डीएम, एसएसपी और खालापार थाना प्रभारी महावीर सिंह चौहान को 7 जुलाई 2025 को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से पेश होकर सफाई देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अब इन अधिकारियों को यह बताना होगा कि गैंगस्टर एक्ट का दोहराव क्यों किया गया? नियमों का पालन क्यों नहीं हुआ? प्रशासनिक बैठक में इस पर विचार क्यों नहीं किया गया?
DGP और गृह विभाग को भी भेजी रिपोर्ट
हाईकोर्ट ने यह आदेश भी दिया है कि इस मामले की कॉपी उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (DGP) और गृह विभाग के प्रमुख सचिव को भी प्रेषित की जाए। जिससे इस मामले को शीर्ष स्तर पर संज्ञान में लिया जा सके और भविष्य में ऐसी लापरवाही दोहराई न जाए।