

आज के समय में भी दहेज के लिए बेटियों को जलाना काफी शर्मनाक… जब हम दावा करते हैं कि हमारा समाज आधुनिक, शिक्षित और समझदार हो रहा है – उसी समय देश के किसी कोने में एक और बेटी दहेज की आग में जला दी जाती है।
दहेज की आग में जल रही बेटियां
Greater Noida Nikki Death Case : जब हम दावा करते हैं कि हमारा समाज आधुनिक, शिक्षित और "समझदार" हो रहा है - उसी समय देश के किसी कोने में एक और बेटी दहेज की आग में जला दी जाती है।
दहेज की मांग
निक्की की हत्या ने एक बार फिर हमारे समाज को कटघरे में खड़ा कर दिया है। आरोप है कि 35 लाख रुपये के दहेज की माँग पूरी न होने पर पति और उसकी माँ ने उसकी पिटाई कर दी। माता-पिता ने अपनी बेटी की शादी में अपना सब कुछ लुटा दिया था। लेकिन यह 'सब कुछ' भी ससुराल वालों का लालच पूरा नहीं कर सका। और नतीजा यह हुआ कि बेटी पर पेट्रोल डालकर उसे जला दिया गया।
समाज और सरकार?
जब हम अपनी बेटियों को स्कूलों में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' का नारा देते हैं, और जब हम सोशल मीडिया पर लड़कियों की सफलता की कहानियाँ पोस्ट करते हैं, तो यही समाज शादी के बाद दहेज के लिए उनकी हत्या कर देता है। क्या यह वही समाज है जो चाँद पर पहुँचने वाली बेटियों पर गर्व करता है, लेकिन दहेज न लाने पर उन्हें आग में झोंक देता है?
दहेज निषेध अधिनियम 1961
देश में दहेज निषेध अधिनियम 1961 से लागू है। लेकिन क्या अब इसका अस्तित्व सिर्फ़ किताबों तक ही सीमित रह गया है? नियम तो बन गया पर इस नियम का समाज में कोई भी अस्तित्व नहीं है। हर साल हज़ारों लड़कियाँ दहेज के कारण अपनी जान गँवा देती हैं। फिर भी समाज मौन है, प्रशासन सुस्त है और न्याय लंबित है।
दहेज मांगने वालों को अपराधी...
गौरतलब है कि यह सिर्फ़ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे समाज की नाकामी है। दहेज मांगने वालों को अपराधी माना जाना चाहिए, लेकिन आज भी ऐसे लोगों को समाज में सम्मान मिलता है। बेटियों को जन्म देने से डरते परिवार और चुपचाप सहती महिलाएँ, क्या यही हमारा "विकसित भारत" है? जब तक समाज और सरकार दोनों मिलकर इस अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर खड़े नहीं होते है, तो ऐसी ही बेटियां इस अपराध दहेज की आग में जलती रहेंगी।