

सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। लेकिन ख़जनी तहसील क्षेत्र के सीएचसी और पीएचसी को अत्याधुनिक मशीनों से लैस कर आधुनिक जांच सुविधाएं उपलब्ध कराने का दावा किया गया।लेकिन जमीनी हकीकत चौंकाने वाली है। पढिए पूरी खबर
गोरखपुर: उत्तर प्रदेश सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। लेकिन ख़जनी तहसील क्षेत्र के सीएचसी और पीएचसी को अत्याधुनिक मशीनों से लैस कर आधुनिक जांच सुविधाएं उपलब्ध कराने का दावा किया गया, लेकिन जमीनी हकीकत चौंकाने वाली है। सरकारी अस्पतालों में लगी करोड़ों की मशीनें धूल फांक रही हैं और मरीजों को इनसे कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
सुविधा मिलने के बजाय निराशा ही हाथ
जानकारी के मुताबिक, ताजा हालात की तस्वीर खजनी क्षेत्र के उसवां बाबू में बने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) से साफ झलकती है। यहां करोड़ों की लागत से अत्याधुनिक मशीनें तो लग गईं, लेकिन महीनों बाद भी इनका संचालन शुरू नहीं हो पाया। मशीनें खामोश हैं और जिम्मेदार मौन। जनता को जांच की सुविधा मिलने के बजाय निराशा ही हाथ लग रही है।
सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ
यही हाल खजनी पीएचसी और हरनहीं सीएचसी का भी है। जहां मशीनें कुछ ही दिनों में खराब होकर कबाड़ जैसी पड़ी रहती हैं। मरीजों को मजबूरन निजी जांच केंद्रों का रुख करना पड़ता है और जेब ढीली करनी पड़ती है। सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ जनता तक नहीं पहुंच पा रहा।
जानबूझकर इन मशीनों को चालू नहीं किया...
चौंकाने वाली बात यह है कि अक्सर नई-नई मशीनें आने के कुछ ही दिनों बाद खराब घोषित कर दी जाती हैं। इससे सवाल उठता है कि आखिर तकनीकी खामियों की आड़ में कहीं निजी जांच केंद्रों से गठजोड़ तो नहीं है? क्या जानबूझकर इन मशीनों को चालू नहीं किया जाता ताकि लोगों को प्राइवेट जांच केंद्रों की ओर धकेला जा सके?
कार्यप्रणाली दोनों पर सवाल
गांव-देहात के गरीब और मध्यमवर्गीय मरीज सरकारी अस्पतालों से बड़ी उम्मीदें लेकर आते हैं। उनका विश्वास होता है कि यहां मुफ्त या सस्ती जांच होगी। लेकिन जब अस्पताल के अंदर मशीनें बंद मिलती हैं, तो वे मजबूरन निजी लैब का सहारा लेते हैं। इससे सरकार की मंशा और स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली दोनों पर सवाल खड़े होते हैं।
सरकारी अस्पतालों में करोड़ों की मशीनें धूल फांक
स्थानीय लोगों का कहना है कि करोड़ों खर्च कर मशीनें लगाने का क्या फायदा, जब मरीजों को सुविधा ही न मिले। "यहां तो मशीनें सिर्फ शोपीस बनकर रह गई हैं," ग्रामीणों का दर्द साफ झलकता है।अब देखना यह होगा कि जांच के बाद हकीकत क्या सामने आती है—मशीनों का खराब होना तकनीकीXV खामी है या इसके पीछे कोई और खेल छुपा है। फिलहाल हालात यही हैं कि सरकारी अस्पतालों में करोड़ों की मशीनें धूल फांक रही हैं और मरीज अपनी जेब काटकर निजी जांच केंद्रों का सहारा ले रहे हैं। उक्त मामले ओर अगर मुख्य चिकित्साधिकारी से फोनिक वर्जन के लिए सम्पर्क किया गया तो फोन नही उठता ,ऐस में खबरे जनता के पीड़ा अनुसार होता अधिकारी जबाब देने से भगाते नजर आते।