गाजियाबाद में स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल: 20 मिनट तक दर्द से तड़पती रही महिला, फिर मां के साथ जुड़वां बच्चे…

यह घटना मोदीनगर के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

Post Published By: Mayank Tawer
Updated : 24 June 2025, 3:27 PM IST
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गाजियाबाद: जन स्वास्थ्य तंत्र की लापरवाही का एक और चौंकाने वाला मामला गाजियाबाद के मोदीनगर क्षेत्र में सामने आया है, जहां एक महिला को अस्पताल के मुख्य गेट पर ऑटो में ही जुड़वा बच्चों को जन्म देना पड़ा। समय पर एंबुलेंस न मिलने और आशा कार्यकर्ता की घंटों देरी ने न केवल महिला की जान को जोखिम में डाला, बल्कि एक बार फिर ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोर कड़ी को उजागर कर दिया है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, यह घटना मोदीनगर के डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की है। मानवता पुरी कॉलोनी निवासी श्रमिक सुदर्शन की पत्नी वैंजन देवी को अचानक तेज प्रसव पीड़ा हुई। परिजनों ने तुरंत स्थानीय आशा कार्यकर्ता को फोन कर सूचना दी, लेकिन वह तीन घंटे तक नहीं पहुंची।

20 मिनट तक दर्द से तड़पती रही महिला

वहीं, सरकारी एंबुलेंस के लिए कई बार कॉल करने के बावजूद मदद नहीं मिली। मजबूरी में परिजन महिला को एक ऑटो रिक्शा में लेकर अस्पताल की ओर रवाना हुए। लेकिन जब वे अस्पताल के मुख्य गेट पर पहुंचे, तभी महिला की स्थिति बिगड़ने लगी। तेज गर्मी और ऑटो की तंग जगह में वैंजन देवी करीब 20 मिनट तक दर्द से तड़पती रही।

ऑटो में ही करानी पड़ी डिलीवरी

स्थिति बिगड़ते देख अस्पताल के स्टाफ ने तुरंत हस्तक्षेप किया और ऑटो के अंदर ही डिलीवरी करवाई। महिला ने जुड़वा बच्चों एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। मौके पर मौजूद डॉक्टरों और कर्मचारियों की सतर्कता से डिलीवरी सुरक्षित रही, लेकिन इस प्रक्रिया ने स्वास्थ्य विभाग की तैयारियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

बच्चों का वजन औसत से कम, मां-बच्चे भर्ती

अस्पताल के प्रभारी डॉ. दिनेश कुमार ने बताया कि नवजात जुड़वा बच्चों का वजन औसत से कम है, लेकिन फिलहाल उनकी स्थिति स्थिर है। मां और दोनों शिशुओं को अस्पताल में भर्ती कर उपचार दिया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि आशा कार्यकर्ता की देरी के आरोपों की जांच की जा रही है।

सवालों के घेरे में स्वास्थ्य सेवाएं

हालांकि डॉ. दिनेश कुमार ने किसी प्रकार की लापरवाही से इनकार किया, लेकिन तीन घंटे तक आशा वर्कर का न पहुंचना और समय पर एंबुलेंस उपलब्ध न हो पाना ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की असलियत को बयां करता है। ग्रीष्मकाल में जहां तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के पार जा रहा है, वहां एक प्रसूता का इस प्रकार सड़कों पर प्रसव करवाना न केवल अमानवीय है, बल्कि जिम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता का प्रतीक भी है।

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