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अयोध्या राम मंदिर में विवाह पंचमी पर पीएम मोदी केसरिया ध्वज फहराएंगे। जानें राम मंदिर में पुजारी बनने की योग्यता, चयन प्रक्रिया और कितनी मिलती है सैलरी। ट्रस्ट ने हाल ही में पुजारियों और स्टाफ के वेतन में बड़ा बदलाव किया है।
राम मंदिर के पुजारी कैसे बनते हैं (Img source: Google)
Ayodhya: अयोध्या में रामलला के भव्य मंदिर में आज का दिन बेहद खास होने जा रहा है। विवाह पंचमी के पावन अवसर पर मंदिर के शिखर पर केसरिया ध्वज फहराया जाएगा। परंपरा के अनुसार माना जाता है कि इसी तिथि पर त्रेतायुग में भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था। इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने के लिए देशभर की निगाहें अयोध्या पर टिकी हैं, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं रामलला मंदिर के शिखर पर ध्वज आरोहण करेंगे।
मंदिर निर्माण पूरा होने के बाद यहां पूजा-पाठ का दायित्व पूरी गंभीरता से निभाया जा रहा है। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल भी उठता है कि राम मंदिर में पुजारी बनने की प्रक्रिया क्या है? श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ही पुजारियों की नियुक्ति करता है। इसके लिए कुछ विशेष योग्यताओं का होना जरूरी है:
उम्मीदवार को संस्कृत, वेद, पुराण और शास्त्रों का गहरा ज्ञान होना चाहिए
अयोध्या राम मंदिर में पुजारी बनने की प्रक्रिया (Img source: Google)
चयन प्रक्रिया के दौरान उम्मीदवार का इंटरव्यू और प्रैक्टिकल टेस्ट भी लिया जाता है। पूजा विधि की समझ, व्यवहार और परंपराओं के पालन को विशेष महत्व दिया जाता है।
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श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने हाल ही में पुजारियों और मंदिर कर्मियों की सैलरी में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार:
इसके अतिरिक्त ट्रस्ट ने फैसला किया है कि अब पूजा व्यवस्था से जुड़े स्टाफ के वेतन से एक निश्चित फंड राशि कटौती की जाएगी, जिससे मंदिर की प्रशासनिक और व्यवस्थापन प्रणाली और अधिक मजबूत की जा सके।
ट्रस्ट ने वार्षिक वेतन वृद्धि की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। इसका मतलब है कि आने वाले वर्षों में पुजारियों और कर्मियों का वेतन नियमित रूप से बढ़ेगा।
विवाह पंचमी का पर्व हिंदू संस्कृति में भगवान राम और माता सीता के दिव्य विवाह की स्मृति को समर्पित है। अयोध्या में हर वर्ष इस दिन विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं, लेकिन इस बार मंदिर निर्माण पूर्ण होने के बाद यह आयोजन और भी विशेष हो गया है।
अयोध्या में केसरिया ध्वज का आरोहण न सिर्फ एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, मर्यादा और आस्था की निरंतरता का प्रतीक भी है।