

मनरेगा जैसी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना अफसरशाही की जकड़ में फँसती जा रही है। निरंतर तकनीकी प्रयोग और पक्के कार्यों के भुगतान में लंबितता ने इस योजना की जड़ें हिला दी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों का मनरेगा से मोहभंग बढ़ता जा रहा है, वहीं जनप्रतिनिधि लगातार अफसरों की मनमानी से परेशान हैं।
केंद्रीय मंत्री को शिकायती पत्र देते प्रधान संघ
महराजगंज: ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) जिसका उद्देश्य गांवों में रोजगार सृजन और आधारभूत संरचना का विकास था, अब अफसरशाही और तकनीकी जाल में फँसती जा रही है। श्रमिकों से लेकर जनप्रतिनिधि तक इसकी जटिल प्रक्रिया और देरी से भुगतान के चलते परेशान हैं।
अफसरों की मनमानी
जानकारी के मुताबिक, जनपद के कई जनप्रतिनिधियों ने इस समस्या को लेकर केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री कमलेश पासवान को शिकायती पत्र सौंपते हुए कहा कि मनरेगा में अफसरों की मनमानी और निरंतर तकनीकी प्रयोगों के कारण श्रमिक अब इस योजना से दूरी बनाने लगे हैं।
श्रमिकों की हाजिरी दो पालियों में लगाई
जनप्रतिनिधियों ने बताया कि योजना में अब श्रमिकों की हाजिरी दो पालियों में लगाई जाती है। सुबह का काम समय से पूरा करने के बाद भी श्रमिकों को शाम 4 बजे तक रुकना पड़ता है ताकि दूसरी पाली की हाजिरी लग सके। इससे वे अन्य काम नहीं कर पाते, जिससे उनकी आय पर सीधा असर पड़ता है। ग्रामीण इलाकों में मजदूर अब मनरेगा कार्य से कतराने लगे हैं।
हाजिरी दर्ज करने की तैयारी ने श्रमिकों की चिंता
इतना ही नहीं, अब फेस रीडिंग के माध्यम से हाजिरी दर्ज करने की तैयारी ने श्रमिकों की चिंता और बढ़ा दी है। 55 वर्ष से अधिक आयु के श्रमिकों को ई-केवाईसी में भारी कठिनाई आ रही है। कमजोर नेटवर्क और सीमित डिजिटल संसाधनों के बीच यह तकनीकी प्रक्रिया व्यावहारिक रूप से असंभव लगती है।
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मजदूरों को बड़े पैमाने पर रोजगार
वहीं, चकरोड (मिट्टी की सड़कों) जैसे उपयोगी कार्यों की वर्क आईडी जनरेट न होने से पंचायत स्तर पर विकास कार्य ठप पड़ गए हैं। पहले जहां चकरोड निर्माण से गांवों में आवागमन सुगम होता था और मजदूरों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिलता था, अब यह पूरी तरह रुक गया है।
खुली बैठक में कार्यों का चयन
ग्रामीण जनप्रतिनिधियों ने यह भी कहा कि आने वाले वित्तीय वर्ष 2026-27 के कार्यों का चिन्हांकन ऑनलाइन वेबसाइट पर पहले से करना अनिवार्य किया गया है। गांवों में नेटवर्क और तकनीकी साधनों की कमी के चलते यह प्रक्रिया बेहद कठिन है। पहले ग्राम सभा में खुली बैठक में कार्यों का चयन किया जाता था, जो लोकतांत्रिक और पारदर्शी तरीका था।
जनप्रतिनिधियों ने यह भी कहा कि NNMS के तहत श्रमिकों की फोटोग्राफ सार्वजनिक डोमेन में डालना ग्रामीण महिलाओं की गोपनीयता के खिलाफ है। कई बार इन फोटोज का दुरुपयोग कर कार्य में अवरोध पैदा किए जाते हैं। सबसे बड़ी समस्या भुगतान में अत्यधिक विलंब की है। कई पक्के कार्यों का भुगतान एक वर्ष से अधिक समय से लंबित है। वहीं, कच्चे कार्यों का जनवरी 2025 का एफटीओ अब तक जारी नहीं हुआ। श्रम एवं सामग्री मद का बजट समय से न मिलने से योजना की गति थम गई है।