एम्स गोरखपुर ने रचा इतिहास, पहली बार नवजात शिशु की इम्परफोरेट एनस की हुई सफल सर्जरी

एम्स गोरखपुर ने एक दिन के नवजात की दुर्लभ “इम्परफोरेट एनस” सर्जरी कर इतिहास रच दिया है। डॉ. गौरव गुप्ता की अगुवाई में कोलोस्टॉमी सर्जरी सफल रही। यह एम्स की पहली ऐसी सर्जरी है।

Post Published By: Nidhi Kushwaha
Updated : 19 July 2025, 11:38 AM IST
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Gorakhpur: एम्स गोरखपुर ने चिकित्सा क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। एक दिन के नवजात शिशु की दुर्लभ जन्मजात विकृति "इम्परफोरेट एनस" की सफल सर्जरी ने न केवल मेडिकल इतिहास में एक सुनहरा अध्याय जोड़ा, बल्कि एक नन्हे जीवन को नई उम्मीद भी दी। यह सर्जरी एम्स गोरखपुर में इस तरह की पहली सर्जरी है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, यह नन्हा बच्चा एक निजी अस्पताल में जन्मा था, लेकिन जन्म से ही उसे मल त्याग के लिए प्राकृतिक छिद्र नहीं था, जिसे चिकित्सा की भाषा में इम्परफोरेट एनस कहा जाता है।

रात में एम्स लेकर पहुंचे परिजन

इसके साथ ही, उसका मूत्रमार्ग अंडकोष के मध्य खुल रहा था और शिश्न छोटा व नीचे की ओर मुड़ा हुआ था, जिसे स्क्रोटल हाइपोस्पेडियस के नाम से जाना जाता है। इन जटिलताओं के कारण शिशु मल विसर्जन नहीं कर पा रहा था, जिससे उसका पेट फूलने लगा और स्थिति गंभीर हो गई। रात 11 बजे परिजन उसे एम्स की आपातकालीन सेवाओं में लेकर पहुंचे। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की स्थिति को देखते हुए एम्स ने त्वरित कार्रवाई की और शिशु को तुरंत भर्ती किया।

डॉक्टर गौरव गुप्ता के नेतृत्व में हुई सर्जरी

सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. गौरव गुप्ता के कुशल नेतृत्व में शिश⁠-⁠सर्जरी की प्रक्रिया शुरू की गई। नियोनेटल आईसीयू की प्रभारी डॉ. अंचला भारद्वाज ने बाल रोग विभाग के साथ समन्वय कर शिशु को एनआईसीयू में स्थानांतरित किया। मात्र 12 घंटे में सभी जरूरी जांच पूरी कर शिशु को ऑपरेशन थिएटर ले जाया गया। 1500 ग्राम के इस नाजुक शिशु को बेहोश करना बेहद चुनौतीपूर्ण था, लेकिन एनेस्थीसिया विभागाध्यक्ष डॉ. संतोष कुमार शर्मा, डॉ. प्रियंका द्विवेदी, डॉ. भूपेंद्र कुमार, डॉ. विजेता बाजपेयी और डॉ. रविशंकर की टीम ने इसे बखूबी अंजाम दिया।

डॉ. गौरव गुप्ता ने अपनी टीम, जिसमें डॉ. धर्मेंद्र पीपल, डॉ. रजनीश कुमार, डॉ. संदीप कुमार, डॉ. ऐश्वर्या और डॉ. रज़ा शामिल थे, उनके साथ मिलकर कोलोस्टॉमी सर्जरी की, जिसके जरिए शिशु के पेट में मल निष्कासन के लिए एक नया मार्ग बनाया गया। यह सर्जरी शिशु के जीवन को बचाने में महत्वपूर्ण कदम थी। अगले चरण की सर्जरी 3-4 महीने बाद होगी, जब शिशु थोड़ा बड़ा और मजबूत हो जाएगा।

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