The MTA Speaks: राहुल की बिहार यात्रा का होगा कितना असर? देखे सबसे सटीक विश्लेषण

राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा की, जो 17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई और 1 सितंबर को पटना में एक विशाल रैली और रोड शो के साथ समाप्त हुई। इस यात्रा ने न सिर्फ बिहार की सियासत को गरमा दिया बल्कि आने वाले विधानसभा चुनाव की पृष्ठभूमि को भी पूरी तरह बदल दिया है। The MTA Speaks में देखिये इस यात्रा से जुड़ा सबसे सटीक विश्लेषण वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ।

Post Published By: Rohit Goyal
Updated : 4 September 2025, 11:26 PM IST
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New Delhi: बिहार में राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा की, जो 17 अगस्त को सासाराम से शुरू हुई और 1 सितंबर को पटना में एक विशाल रैली और रोड शो के साथ समाप्त हुई। इस यात्रा ने न सिर्फ बिहार की सियासत को गरमा दिया बल्कि आने वाले विधानसभा चुनाव की पृष्ठभूमि को भी पूरी तरह बदल दिया है। अब सवाल यह उठ रहा है कि इस यात्रा से बिहार में इंडिया गठबंधन को कितना फायदा होगा और भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के लिए यह कितना चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।

The MTA Speaks में देखिये इस यात्रा से जुड़ा सबसे सटीक विश्लेषण वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ।  कांग्रेस और सहयोगी दलों का दावा है कि इस यात्रा का उद्देश्य लोकतंत्र और मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा करना था। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR प्रक्रिया के जरिए गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों के लाखों नाम मतदाता सूची से हटा दिए गए। कांग्रेस ने इसे सीधे-सीधे ‘वोट चोरी’ की साजिश करार दिया और कहा कि यह लोकतंत्र की जड़ों पर प्रहार है। राहुल गांधी ने यात्रा के दौरान कई सभाओं में कहा कि यह सिर्फ चुनावी अभियान नहीं बल्कि संविधान और लोकतंत्र की रक्षा की लड़ाई है।

इस यात्रा में भीड़ के जो नजारे देखने को मिले उन्होंने यह संकेत दिया कि विपक्ष ने जनता को एक मुद्दे पर गोलबंद करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। खासकर महिलाओं और युवाओं की भागीदारी उल्लेखनीय रही। रैलियों और सभाओं में भीड़ उमड़ी, सड़कों पर जनसैलाब दिखा, गांव-कस्बों तक राजनीतिक माहौल गर्माया। महागठबंधन ने इसे अपनी उपलब्धि बताया जबकि भाजपा और एनडीए ने इसे महज एक राजनीतिक नौटंकी करार दिया।

यात्रा कांग्रेस के लिए अहम

राजनीतिक दृष्टिकोण से यह यात्रा कांग्रेस के लिए भी अहम रही। लंबे समय से बिहार की राजनीति में कांग्रेस हाशिए पर रही है। लेकिन इस यात्रा ने उसके कार्यकर्ताओं में नई जान फूंकने का काम किया। राहुल गांधी ने दलित और अल्पसंख्यक वोट बैंक को दोबारा जोड़ने का प्रयास किया, वहीं तेजस्वी यादव ने इसे सामाजिक न्याय और गरीबों की हक की लड़ाई का रूप दिया। इससे राजद के पारंपरिक वोटरों में उत्साह देखने को मिला।

अखिलेश यादव यात्रा में सबसे चर्चित

इस यात्रा में सबसे खास और चर्चित पल रहा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का शामिल होना। अखिलेश यादव लखनऊ से अपने दल-बल के साथ पहुंचे और उनकी मौजूदगी ने यूपी-बिहार की राजनीति को एक सूत्र में पिरोने का संकेत दिया। उन्हें देखने-सुनने भारी भीड़ उमड़ी और यह माहौल विपक्षी एकता का बड़ा संदेश बनकर उभरा। यही नहीं, प्रियंका गांधी वाड्रा, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू जैसे दिग्गज नेता भी यात्रा में शामिल हुए। इसका मकसद साफ था—देशभर में विपक्षी एकजुटता का संदेश देना।

तेजस्वी यादव ने भी लगाया जोर

तेजस्वी यादव की बहन रोहिणी आचार्य, भाकपा माले के दीपांकर भट्टाचार्य, वीआईपी प्रमुख मुकेश साहनी, कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार और सांसद पप्पू यादव की मौजूदगी ने भी यात्रा को स्थानीय स्तर पर मजबूत किया। यह भी कहा गया कि यात्रा के जरिए विपक्ष ने कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया और बूथ स्तर तक एकजुटता का संदेश भेजा।

राहुल गांधी ने पटना के डाकबंगला चौराहे पर एक तीखा बयान देते हुए कहा कि “महादेवपुरा के एटम बम के बाद बिहार में हाइड्रोजन बम आने वाला है।” यह बयान मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरता रहा और भाजपा ने इसे चुनावी जुमला बताया।

चुनावी नतीजों में दिखेगा कितना असर

हालांकि यात्रा का असर चुनावी नतीजों में कितना दिखेगा, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी। लेकिन इतना तय है कि वोटर अधिकार यात्रा ने राज्य में एक बड़ा राजनीतिक विमर्श खड़ा कर दिया है। मतदाता सूची की पारदर्शिता, लोकतंत्र की विश्वसनीयता और विपक्षी एकता जैसे मुद्दों को अब केंद्र में ला दिया गया है। यदि जनता के बीच यह संदेश गहराई तक गया कि उनके अधिकार खतरे में हैं और विपक्ष उनकी रक्षा के लिए खड़ा है, तो इसका असर विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है।

भाजपा और एनडीए इस यात्रा पर हमलावर रहे। भाजपा का कहना है कि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव चुनाव आयोग पर सवाल उठाकर लोकतंत्र को बदनाम कर रहे हैं। भाजपा नेताओं ने याद दिलाया कि 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी विपक्ष ने यह प्रोपेगेंडा फैलाया कि भाजपा संविधान बदल देगी। उसका असर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में दिखा लेकिन देश की जनता ने विपक्ष को हरियाणा, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सबक सिखाया। भाजपा का कहना है कि जनता अब इस तरह के प्रोपेगेंडा से गुमराह नहीं होगी।

जेडीयू ने भी इस यात्रा को फ्लॉप करार दिया। नीतीश कुमार की पार्टी ने कहा कि यह यात्रा हार की आहट से उपजी है और वोट चोरी की बात करना बेबुनियाद है। जेडीयू का कहना है कि उनके शासनकाल में मानव विकास और आधारभूत संरचना पर काम हुआ है, जबकि राजद के समय में ही असली वोट चोरी होती थी।

यात्रा के दौरान विवाद

यात्रा के दौरान विवाद भी सामने आए। दरभंगा में कांग्रेस मंच से प्रधानमंत्री मोदी को लेकर दिए गए कुछ तीखे बयान ने माहौल को और गरमा दिया। भाजपा और एनडीए ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया और अब 4 सितंबर को बिहार बंद का ऐलान किया है। भाजपा ने राहुल गांधी और तेजस्वी यादव से माफी की मांग की है।

वहीं, राजद का कहना है कि यह यात्रा कार्यकर्ताओं के बीच जोश और विश्वास का नया संचार लेकर आई है। उनका कहना है कि पहले महागठबंधन के कार्यकर्ताओं का दिमाग एकजुट था लेकिन अब दिल और दिमाग दोनों मिल गए हैं और यही चुनाव में निर्णायक परिणाम देगा।

बिहार की राजनीति की पृष्ठभूमि देखें तो यहां जातीय समीकरण हमेशा से अहम भूमिका निभाते रहे हैं। राजद का यादव-मुस्लिम समीकरण, कांग्रेस का अल्पसंख्यक आधार और वाम दलों का ग्रामीण समर्थन इस यात्रा से मजबूत हुआ है। वहीं भाजपा और जेडीयू का कोर वोट बैंक यानी सवर्ण और अति पिछड़े वर्ग अब भी उनके साथ खड़े दिख रहे हैं। यही वजह है कि यह चुनावी जंग बेहद कड़ी और रोचक होने जा रही है।

राजनीतिक इतिहास

राजनीतिक इतिहास बताता है कि जब कोई यात्रा या अभियान जनसरोकार के मुद्दों पर केंद्रित होता है और जनता उसमें शामिल होती है, तो उसके परिणाम चुनाव में दिखते हैं। चाहे आंध्र प्रदेश में वाईएसआर की पदयात्रा रही हो या उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की यात्राएं, सभी ने राजनीतिक नतीजों पर असर डाला है। ऐसे में राहुल गांधी की यह वोटर अधिकार यात्रा भी आने वाले समय में बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभा सकती है।

अब देखना होगा कि यह यात्रा विपक्ष के लिए निर्णायक साबित होती है या फिर सिर्फ भीड़ और नारों तक सिमटकर रह जाती है। लेकिन इतना तय है कि महागठबंधन ने इस यात्रा के जरिए बिहार में चुनावी जंग की शुरूआत कर दी है और भाजपा-एनडीए को कड़ी चुनौती दी है।

यहां यह भी जानना जरूरी है कि 5 साल पहले जब बिहार में विधानसभा के चुनाव हुए थे, तब भारत निर्वाचन आयोग ने 25 सितंबर को चुनाव की तारीखों का ऐलान किया था और अक्टूबर में मतदान कराए गए थे। उसके बाद 10 नवंबर को नतीजे आए थे। इस लिहाज से देखें तो अब चुनाव आयोग किसी भी दिन बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है। यही वजह है कि राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा को चुनावी रणनीति के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है। विपक्ष ने इस यात्रा के जरिए पहले ही जनता के बीच संदेश देने की कोशिश की है, ताकि चुनाव की घोषणा के साथ ही उसकी पकड़ बूथ स्तर तक मजबूत हो सके।

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