

एक्सिओम मिशन 4 एक ऐतिहासिक मिशन है, जिसने न केवल तकनीक बल्कि भारत की संभावनाओं को भी वैश्विक अंतरिक्ष नक्शे पर फिर से रेखांकित कर दिया। देखिये वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ सटीक विश्लेषण
अंतरिक्ष में नये इतिहास का सटीक विश्लेषण
नई दिल्ली: एक ऐसा सवेरा, जिसने इतिहास के पन्नों में भारत की तकनीकी और वैज्ञानिक क्षमता को सुनहरे अक्षरों में दर्ज कर दिया। इस दिन भारत के एक और बेटे ने अंतरिक्ष की ओर उड़ान भरी। यह उड़ान थी एक्सिओम मिशन 4 की—एक निजी लेकिन ऐतिहासिक मिशन, जिसने न केवल तकनीक बल्कि भारत की संभावनाओं को भी वैश्विक अंतरिक्ष नक्शे पर फिर से रेखांकित कर दिया।
नासा और स्पेसX के सहयोग से लॉन्च किया एक्सिओम मिशन 4
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने शो The MTA Speaks में बताया एक्सिओम मिशन 4 को अमेरिका की निजी कंपनी Axiom Space ने नासा और स्पेसX के सहयोग से लॉन्च किया। यह मिशन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यह न केवल तकनीकी प्रगति का प्रतीक है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग और विज्ञान के साझा हितों को भी आगे बढ़ाता है। इस मिशन में भाग ले रहे चार अंतरिक्ष यात्रियों में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं—ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला, जो इस मिशन में पायलट की भूमिका निभा रहे हैं।
भारतीय समयानुसार दोपहर 12:01 बजे, अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित केनेडी स्पेस सेंटर से स्पेसX के Falcon-9 रॉकेट द्वारा एक्सिओम मिशन 4 की ऐतिहासिक लॉन्चिंग हुई। इसमें भारत के अलावा अमेरिका, हंगरी और पोलैंड के अनुभवी अंतरिक्ष यात्री शामिल हैं। इनमें अमेरिका की अनुभवी अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन कमांडर के रूप में, हंगरी के टिबोर कपू और पोलैंड के स्लावोज विस्नीव्स्की मिशन विशेषज्ञ के रूप में शामिल हैं। पायलट की सबसे अहम जिम्मेदारी शुभांशु शुक्ला के कंधों पर है—यानि उड़ान की कमान एक भारतीय के हाथ में है।
14 दिनों तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर रहेंगे
एक्सिओम मिशन 4 के तहत ये अंतरिक्ष यात्री कुल 14 दिनों तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर रहेंगे, जहां वे माइक्रोग्रैविटी में लगभग 60 वैज्ञानिक और तकनीकी प्रयोग करेंगे। इन प्रयोगों में मानव शरीर पर अंतरिक्ष का प्रभाव, जैविक प्रणालियों का व्यवहार, नई तकनीकों का परीक्षण, दवाओं का विकास और अंतरिक्ष में दीर्घकालिक जीवन की संभावनाओं का विश्लेषण शामिल है। यह मिशन अब तक Axiom Space द्वारा आयोजित सबसे अधिक वैज्ञानिक गतिविधियों वाला मिशन है।
इस मिशन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य भविष्य के वाणिज्यिक अंतरिक्ष स्टेशनों की संभावनाओं का पता लगाना है। साथ ही यह अंतरिक्ष अनुसंधान में निजी क्षेत्र की भूमिका को और अधिक सशक्त करता है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना और अंतरिक्ष को व्यवसायिक तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अधिक सुलभ बनाना भी इसके लक्ष्यों में शामिल है।
एक्सिओम मिशन 4 के पीछे की कहानी
एक्सिओम मिशन 4 की उड़ान आसान नहीं रही। इसे मूल रूप से 29 मई 2025 को लॉन्च किया जाना था, लेकिन तकनीकी खामियों के चलते इसे कई बार स्थगित करना पड़ा। सबसे पहले Falcon-9 के बूस्टर में तरल ऑक्सीजन के रिसाव की समस्या सामने आई। इसके बाद ISS के रूसी मॉड्यूल में तकनीकी गड़बड़ी ने मिशन को और विलंबित कर दिया। 8, 10 और 11 जून को तकनीकी समस्याएं आने के बाद अंततः 19 जून को सभी खामियां दूर की गईं। 22 जून को जब सभी परिस्थितियां अनुकूल मिलीं, तब जाकर इस बहुप्रतीक्षित मिशन को हरी झंडी दी गई।
डॉकिंग के बाद 14 दिनों तक लगातार वैज्ञानिक गतिविधियां चलेंगी
ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट, जिसमें चारों अंतरिक्ष यात्री सवार हैं, लगभग 28 घंटे की यात्रा के बाद अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक पहुंचेगा। यह डॉकिंग भारतीय समयानुसार 26 जून की शाम 4:30 बजे होगी। “डॉकिंग” अंतरिक्ष विज्ञान की एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष स्टेशन से जोड़ना होता है। डॉकिंग के बाद 14 दिनों तक लगातार वैज्ञानिक गतिविधियां चलेंगी, जिनके परिणाम भविष्य में मानवता को अनेक नई दिशाएं प्रदान कर सकते हैं।
कौन है शुभांशु शुक्ला
अब बात करते हैं भारत के गौरव—ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की, जिन्होंने इस मिशन में पायलट की जिम्मेदारी संभालकर इतिहास रच दिया। शुभांशु का जन्म 10 अक्टूबर 1985 को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ के सिटी मॉन्टेसरी स्कूल, अलीगंज से हुई। बचपन से ही उनका सपना था आकाश को छूना, और इसी लक्ष्य को पाने के लिए उन्होंने सेना को चुना। बीएससी कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई के बाद उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एमटेक किया।
इसके बाद उन्होंने NDA की परीक्षा पास कर भारतीय वायुसेना में वर्ष 2006 में कमीशन प्राप्त किया। वायुसेना के एक कर्मठ अधिकारी के रूप में उन्होंने मिग-21, मिग-29, सुखोई-30 MKI, जैगुआर, हॉक, डॉर्नियर जैसे विमानों को उड़ाया। शुभांशु के पास 2000 से अधिक उड़ान घंटे का अनुभव है। उनकी यह क्षमता ही उन्हें अंतरिक्ष यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार बनाती है।
शुभांशु ने बढ़ाया देश का मान
शुभांशु ने न केवल भारतीय वायुसेना में उत्कृष्टता हासिल की, बल्कि उन्होंने ISRO और NASA से भी प्रशिक्षण लिया। वर्ष 2019 में उन्हें ISRO और भारतीय वायुसेना की साझा व्योमनॉट चयन प्रक्रिया में चुना गया। इसके बाद उन्होंने रूस के यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर और बेंगलुरु स्थित ISRO Astronaut Training Centre में कठिन प्रशिक्षण लिया। 27 फरवरी 2024 को उन्हें भारत के गगनयान मिशन के चार संभावित अंतरिक्ष यात्रियों में शामिल किया गया।
एक्सिओम मिशन 4 के माध्यम से शुभांशु शुक्ला ने न केवल भारत का प्रतिनिधित्व किया, बल्कि पहली बार किसी निजी अंतरिक्ष मिशन में भारतीय नागरिक ने पायलट की जिम्मेदारी संभालकर नई मिसाल कायम की है। इससे पहले कल्पना चावला और सुनिता विलियम्स जैसी महान विभूतियों ने अंतरिक्ष में भारत का नाम रोशन किया है, लेकिन शुभांशु इस मायने में विशेष हैं कि वे एक पूरी कमर्शियल स्पेसफ्लाइट के चालक हैं।
उनकी यह उपलब्धि लाखों भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा है। यह दिखाता है कि यदि सपना बड़ा हो, और उसे पूरा करने की जिद भी उतनी ही प्रबल हो, तो सीमाएं खुद-ब-खुद मिट जाती हैं—चाहे वो धरती की हों या अंतरिक्ष की। शुभांशु की यह उड़ान न केवल वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि यह एक विचार, एक दृष्टिकोण और एक राष्ट्रीय आत्मबल की प्रतीक है।
अंतरिक्ष में नया इतिहास
एक्सिओम मिशन 4 वैश्विक सहयोग का भी परिचायक है। इसमें चार अलग-अलग देशों के अंतरिक्ष यात्री एक साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं। यह अंतरिक्ष में साझी विरासत और साझा मानवता की अवधारणा को आगे बढ़ाता है। यह बताता है कि विज्ञान की कोई सीमा नहीं होती, और जब दुनिया एक साथ मिलकर काम करती है, तो असंभव भी संभव हो जाता है।
यह मिशन अंतरिक्ष कूटनीति (Space Diplomacy) की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। चार देशों के नागरिकों द्वारा मिलकर अंतरिक्ष प्रयोग करना एकजुटता, शांति और सहयोग का प्रतीक बन जाता है।
आज का दिन भारतीय विज्ञान, युवाओं की आकांक्षा और राष्ट्र के सामर्थ्य की जीत का दिन है। एक्सिओम मिशन 4 केवल एक टेक्नोलॉजिकल मिशन नहीं, बल्कि यह भारत की अंतरिक्ष नीति, उसकी वैज्ञानिक प्रगति और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उसके सम्मान का प्रतीक है।