Manipur Violence: शांत मणिपुर क्यों जल रहा हिंसा की आग में, क्यों बेपटरी हुआ जनजीवन? जानिये सभी सवालों के जवाब
भारत के पूर्वोत्तर में स्थित मणिपुर की शांत वादियां इन दिनों हिंसा की आग में जल रही है। कई लोग दर्द से छटपटा रहे है। पिछले कुछ दिनों से मणिपुर में जो कुछ हो रहा है, उसकी कल्पना यहां के लोगों ने कभी नहीं की होगी। डाइनामाइट न्यूज़ की इस रिपोर्ट में जानिये मणिपुर हिंसा की बड़ी वजह
नई दिल्ली: उत्तर में नागालैंड, दक्षिण में मिज़ोरम, पश्चिम में असम और पूर्व में म्यांमार की सीमा से घिरे मणिपुर की कई पहचान है। भारत के पूर्वोत्तर में स्थित मणिपुर अपने नैसर्गिक सौंदर्य, शांत माहौल, महान विरासत और संस्कृति के लिये भी जाना जाता है। लेकिन मणिपुर की शांति और सुंदरता को न जाने की किसकी नजर लग गई है। मणिपुर की शांत वादियां इन दिनों हिंसा की आग में जल रही हैं। हिंसाग्रस्त मणिपुर में अब तक लगभग पांच दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है। हर दिन यह आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। कई लोग घायल और प्रभावित है। डाइनामाइट न्यूज़ की इस रिपोर्ट में जानिये आखिर क्यों हिंसा की चपेट में आया मणिपुर।
मणिपुर हाईकोर्ट का फैसला
दरअसल, मणिपुर हिंसा की पहली चिंगारी एक कानूनी फैसले के बाद उठी। पिछले माह 14 अप्रैल को मणिपुर हाईकोर्ट ने यहां के मेइती समुदाय के आरक्षण की मांग वाली याचिका पर अपना फैसला सुनाया। इसमें मेइती समुदाय को आरक्षण देने की बात कही गई। हाई कोर्ट ने इस फैसले में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वो केंद्र सरकार से इसकी सिफारिश करे।
मेइती समुदाय को एसटी का दर्जा
मेइती समुदाय ने हाईकोर्ट में कहा था कि उनकी परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाने के लिए मेइती समुदाय को एसटी दर्जा दिया जाना चाहिए। मेइती समुदाय के पक्ष में आये इस फैसले की कई वजहें है, जिसमे उनकी जनसंख्या, भूभाग, बसावट जैसे कई तथ्य शामिल हैं।
कुल आबादी में मेइती समुदाय करीब 53 प्रतिशत हैं और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। आदिवासियों में नगा और कुकी शामिल हैं और आबादी में इनकी संख्या करीब 40 प्रतिशत है और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं।
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जब विरोध में उतरने लगे लोग
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद से ही तमाम आदिवासी समूह, कुकी और नागा जनजाति के लोग इस फैसले के विरोध में उतर आए। इन लोगों का कहना था कि मेइती समुदाय को एसटी का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए। कुकी और नागा जनजाति के लोगों ने विरोध की शुरुआत की। उनके इस विरोध में अन्य तमाम जनजातियां भी जुड़ने लगी। धीरे-धीरे विरोध बढ़ता गया और लोगों के बीच यह एक जातिगत मामला भी बनने लगा।
आदिवासी एकजुटता मार्च में हिसा
इस विरोध के तहत मणिपुर में बहुसंख्यक मेइती समुदाय द्वारा उसे अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में ‘ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर’ (एटीएसयूएम) की ओर से गत बुधवार को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजन किया गया। इसी मार्च के दौरान अचानक चुराचांदपुर जिले के तोरबंग क्षेत्र में हिंसा भड़क गई थी।
मेइती समुदाय के सदस्यों पर हमला
पुलिस के अनुसार, तोरबंग में मार्च के दौरान हथियारबंद लोगों की भीड़ ने कथित तौर पर मेइती समुदाय के सदस्यों पर हमला किया। मेइती समुदाय के लोगों ने भी जवाबी हमले किए, जिससे पूरे राज्य में हिंसा फैल गई। हिंसा अब भी जारी है। हिंसा के मद्देनजर मणिपुर जाने वाली ट्रेनों को शुक्रवार को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया गया।
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54 मौतें, 150 घायल, 13,000 लोग प्रभावित
मणिपुर में हुई हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 54 हो गई है। यह भी दावा किया जा रहा है कि सरकारी आंकड़ों से उलट हिंसा में बड़ी संख्या में लोग मारे गए हैं और 150 से अधिक घायल हुए हैं। कुल 13,000 लोगों को प्रभावित क्षेत्रों से निकाला गया।
आम जनजीवन के पटरी पर लौटने का इंतजार
हिंसाग्रस्त मणिपुर में प्रभावित लोगों को सुरक्षित आश्रयों में स्थानांतरित किया जा रहा है। कुछ को सेना के शिविरों में भेज दिया गया है। क्योंकि सेना ने चुराचांदपुर, मोरेह, काकचिंग और कांगपोकपी जिलों को अपने 'नियंत्रण' में ले लिया है। यहां पुलिस और सुरक्षा बलों की बड़ी संख्या में तैनाती की गई है। केंद्र सरकार और तमाम एजेंसियां भी मणिपुर पर नजर बनाये हुए हैं। हिंसा रोकने के प्रय़ास जारी हैं। अब सभी लोग इस इंतजार में है कि जल्द से जल्द मणिपुर में भड़की हिंसा समाप्त हो और आम जनजीवन पटरी पर लौटे आये।