टिकाऊ भविष्य के लिए भारत में कृषि पद्धतियों को बदलने की जरूरत, जानिये किसने कही ये बातें

डीएन ब्यूरो

भारत को खेती की वैकल्पिक पद्धतियों को अपनाने के बारे में सोचने की जरूरत है, ताकि देश में भूजल की कमी उत्पन्न न हो और मिट्टी की गुणवत्ता में भी कमी न आए। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के निदेशक (दक्षिण एशिया) शाहिदुर राशिद ने यह सुझाव दिया। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

आईएफपीआरआई के निदेशक शाहिदुर रशीद
आईएफपीआरआई के निदेशक शाहिदुर रशीद


काठमांडू: भारत को खेती की वैकल्पिक पद्धतियों को अपनाने के बारे में सोचने की जरूरत है, ताकि देश में भूजल की कमी उत्पन्न न हो और मिट्टी की गुणवत्ता में भी कमी न आए। अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) के निदेशक (दक्षिण एशिया) शाहिदुर राशिद ने यह सुझाव दिया।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार काठमांडू में ग्लोबल फूड पॉलिसी रिपोर्ट (जीएफपीआर) के लॉन्च कार्यक्रम से इतर  राशिद ने भीषण गर्मी को सहने में सक्षम फसलें विकसित करने और टिकाऊ सिंचाई पद्धतियां अपनाने की अहमियत पर जोर दिया।

उन्होंने कहा, “धान की खेती में प्रचलित बाढ़ सिंचाई से पानी की बर्बादी होती है और पानी के उपयोग की क्षमता भी घट जाती है। नवीन सिंचाई पद्धतियां अपनाने और सिंचाई के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने से कार्बन उत्सर्जन में तो कमी लाई ही जा सकती है, साथ ही पानी की कमी के मुद्दे को भी संबोधित किया जा सकता है।”

राशिद ने जोर देकर कहा कि हालांकि, भारत में मौजूदा समय में उसकी आबादी का पेट भरने के लिए पर्याप्त खाद्य उत्पादन हो रहा है, लेकिन लोगों तक पहुंच, पोषक तत्वों की उपलब्धता और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के संबंध में चुनौतियां बरकरार हैं।

उन्होंने कहा कि भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हरित क्रांति के दौर में जो पद्धति विकसित हुई थी, वह भूजल का अत्यधिक दोहन करती है और बड़ी मात्रा में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करती है, जिसके चलते इसे लंबे समय तक बरकरार नहीं रखा जा सकेगा।

राशिद ने कहा, “हमें वास्तव में खेती के वैकल्पिक तरीकों के बारे में सोचने की जरूरत है, ताकि हमारे पास भूजल संसाधनों की कमी न हो और हम अपनी मिट्टी को भी बर्बाद न करें। मुझे लगता है कि यह भविष्य में भारत और दक्षिण एशिया के लिए मुख्य चुनौती होगा।”

उन्होंने पोषण की कमी की समस्या से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए पोषक तत्वों को सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम में शामिल करने के महत्व पर प्रकाश डाला।

जीएफपीआर दक्षिण एशिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 से 2021 के बीच भारत में अल्पपोषण की दर 16 प्रतिशत थी।

राशिद ने कहा, “स्वस्थ जीवन के लिए केवल चावल और गेहूं जैसी मुख्य फसलों का सेवन पर्याप्त नहीं है, क्योंकि देश में लोगों के आहार में माइक्रोन्यूट्रिएंट (सूक्ष्म पोषक तत्वों) की कमी एक बड़ा मुद्दा है, जिसे छिपी हुई ‘भुखमरी’ भी कहा जाता है।”










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