राजा व महाराजाओं से जुड़ी है महराजगंज जनपद के कई शिवमंदिरों की कहानी, डाइनामाइट न्यूज पर जाने इनका क्या है महत्व
महराजगंज जिले के कई शिवमंदिरों की कहानी राजाओं से जुड़ी है। जहां महाभारत काल से खड़खोड़ा के सैकड़ों शिवलिंग के होने की मान्यता है। वहीं निचलौल क्षेत्र के पंचमुखी ईटहिया का शिवलिंग का भी इतिहास काफी पुराना है। कटहरा, कांक्षेश्वरनाथ व बहुरहवा बाबा शिवमंदिर भी चमत्कारों से भरा है। डाइनामाइट न्यूज़ पर जानिए इन शिवमंदिरों के इतिहास की कहानी।
महराजगंजः जनपद में स्थित शिवलिंग व शिवमंदिरों की कहानी राजाओं से जुड़ी है। जहां पूर्वांचल के मिनी बाबाधाम के रूप में विख्यात इटहिया का पंचमुखी शिवलिंग का प्रादुर्भाव राजा वृषभसेन के समय में हुआ है। वहीं कटहरा शिवलिंग की कथा गौतमबुद्ध के ननिहाल से जुड़ा बताया जाता है। धानी क्षेत्र के कांक्षेश्वरनाथ शिवमंदिर चमत्कारों से भरा है। वहीं बृजमनगंज ब्लाक के खड़खोड़ा स्थित शिवलिंग महाभारत काल से विख्यात है। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां भव्य मेला का आयोजन होता है। भारत के नहीं बल्कि नेपाल के भी श्रद्धालु यहां पहुंचकर भगवान की शिव के दरबार में हाजिरी लगाते हैं।
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नंदनी गाय की दूध से हुआ था शिवलिंग का प्रादुर्भाव
पूर्वांचल के मिनी बाबाधाम के रूप में प्रसिद्ध इटहिया का पंचमुखी शिवलिंग भक्तों की आस्था का केंद्र है। शिवमंदिर प्रादुर्भाव की कहानी निचलौल इस्टेट के राजा रहे बृषभसेन से जुड़ी है। उनकी गौशाला में नन्दिनी नाम की गाय भी थी। जिससे राजा का विशेष लगाव भी था। राजा सुबह शाम गाय की सेवा करना और दूध का सेवन करना नहीं भूलते थे।नन्दिनी गाय भी अन्य गायों के साथ जंगल में प्रतिदिन चरने जाती थी। इसी बीच गाय ने दूध देना बंद कर दिया और अपना दूध जंगल की घनी झाड़ियों में चढ़ाने लगी। इसी बीच राजा को भी इसकी जानकारी हुई। वे इस जगह की खुदाई कराए। जहां से शिवलिंग मिला। राजा प्रतिदिन शिवलिंग की पूजा करने लगे। राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जिसका नाम उन्होंने रत्नसेन रखा। राजा बृषभसेन की मृत्यु के पश्चात निचलौल इस्टेट के राजा रतनसेन ने गद्दी संभाली। रतनसेन भी अपने पिता की तरह पत्नी स्वर्णरेखा के साथ प्रतिदिन शिवलिंग का पूजन करते थे।
महाभारत काल से जुड़ी है खड़खोड़ा शिवलिंग की कहानी
बृजमनगंज ब्लाक के खड़खोड़ा स्थित शिवलिंग महाभारत काल से जुड़ी है। गांव से सटे एक टीला है। यहां पांच शिर्व लिंग है। टीले के पास ही एक मन्दिर है। इसमें जमीन से निकला शिवलिंग है। मन्दिर के पुजारी ने बताया कि पांडवों के अज्ञातवास के दौरान खड़खोड़ा के टीले पर स्थित पांचो शिर्वंलग की पूजा.अर्चन होती थी। यह भी माना जाता है कि धर्मराज युधिष्ठिर विशालकाय शिर्वंलग का पूजन.अर्चन करते किया करते थे। पहले यह पूरा क्षेत्र जंगलों से घिरा था। जनश्रुतियों के अनुसार एक कहारिन द्वारा पत्ता बीनने के दौरान भगवान शिव का की मूर्ति दिखी। फिर मंदिर की खुदाई गई। भगवान शिव की अद्भुत शिवलिंग देखकर ग्रामीण खुशी से भावविह्वल हो गए। तभी से मान्यता है कि जिसने भी इस शिवलिंग की पूजा की। उनकी हर मनोरथ पूरी हुई है।
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गौतम बुद्ध की माता करती थी शिवलिंग की पूजा
सदर क्षेत्र के बागापार स्थित कटहरा प्राचीन शिवमंदिर की कहानी गौतम बुद्ध के ननिहाल स जुड़ी है। उस दौरान गौतम बुद्ध की माता शिवलिंग की पूजा किया करती थी। पहले यह क्षेत्र घनघोर जंगलों से घिरा था। मंदिर से कुछ ही दूरी पर राजा का दरबार से एक सुरंग की भी बात बताई जा रही है। जहां से रानी पहुंचकर शिवमंदिर में भगवान शिव की पूजा अर्चना करती थी। स्थानीय लोगों का कहना है कि 1948 में कुछ लोग यहां आकर बस गए। उस समय मंदिर खंडहर था। लेकिन प्राचीन शिवलिंग मौजूद रहा। 1950 में कुशीनगर जिला के सेमरहिया गांव निवासी बाबा कमल दास यहां आए और झोपड़ी बनाकर रहने लगे। इसके बाद शिवमंदिर से कई चमत्कार हुए।
चमत्कारों से भरा है कांक्षेश्वरनाथ का मंदिर
स्थानीय क्षेत्र के कांक्षेश्वरनाथ शिवमंदिर चमत्कारों से भरा पड़ा है। यहां जिसने भी सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा की है। उसकी हर मुरादें पूरी हुई है। यह मंदिर राप्ती नदी के किनारे स्थित है। मंदिर के पुजारी अबस्त मिश्र ने बताया कि एक बार एक सेठ यहां जुआ खेल रहा था। जुए में कफी धन हार गया। क्रोधित होकर सेठ ने फावड़े से शिवमंदिर पर प्रहार किया। उस शिवलिंग से खून की धारा बह निकली। पुजारियों के काफी मन्नतें के बाद खून की धारा बंद हुई। तभी से श्रद्धालुओं की भीड़ यहां जुटने लगी। खासकर महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां मेला लगता है। लोग भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।