सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या वह विधायिका को धर्म एवं लैंगिक रूप से तटस्थ समान कानून बनाने का निर्देश दे सकता है
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सवाल किया कि क्या वह विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गुजारा भत्ता जैसे विषयों पर धर्म एवं लैंगिक रूप से तटस्थ समान कानून बनाने के लिए केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर सकता है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को सवाल किया कि क्या वह विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गुजारा भत्ता जैसे विषयों पर धर्म एवं लैंगिक रूप से तटस्थ समान कानून बनाने के लिए केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर सकता है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने विधायिका के दायरे में आने वाले मुद्दों के सिलसिले में न्यायिक शक्तियों की गुंजाइश के बारे में यह टिप्पणी की और कई जनहित याचिकाओं सहित करीब 17 याचिकाओं पर सुनवाई चार हफ्तों के लिए स्थगित कर दी।
पीठ में न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला भी शामिल हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘सवाल यह है कि किस हद तक न्यायालय इन विषयों में हस्तक्षेप कर सकता है क्योंकि ये मुद्दे विधायिका के दायरे में आते हैं।’’
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘‘जहां तक मेरा मानना है, सैद्धांतिक रूप से, सभी पर समान रूप से लागू होने वाले लैंगिक रूप से तटस्थ समान कानून पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती। यह न्यायालय को विचार करना है कि उसकी ओर से क्या किया जा सकता है।’’
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सुनवाई की शुरूआत में एक पक्ष की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर प्रारंभिक आपत्ति है।
सिब्बल ने कहा, ‘‘अनुरोधों पर गौर करें। क्या इस तरह के अनुरोध इस न्यायालय में किये जा सकते हैं। यह सरकार को निर्णय करना है कि वह (धर्म एवं लैंगिक रूप से तटस्थ समान कानून बनाने के लिए) क्या करना चाहती है।’’
उन्होंने कहा कि इस न्यायालय को विषय में एक प्रथम दृष्टया आदेश तक जारी नहीं करना चाहिए क्योंकि यह पूरी तरह से सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने उपाध्याय की ओर से पेश होते हुए सिब्बल की दलीलों का विरोध किया और कहा कि व्यक्तिगत याचिकाएं भी हैं और उनमें से एक में एक मुस्लिम महिला ने कहा है कि वह अपने लिए ‘पर्सनल लॉ’ चाहती है, जो लैंगिक रूप से तटस्थ हो।
शंकरनारायणन ने कहा, ‘‘इसे एक हद तक न्यायापालिका द्वारा किया जा सकता है।’’
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पीठ ने वकीलों को जनहित याचिकाओं में किये गये अनुरोधों की एक सूची उपलब्ध कराने को कहा तथा चार हफ्तों के बाद उन पर सुनवाई करने का फैसला किया।
न्यायालय ने कहा कि वह इस बारे में निर्णय करेगा कि क्या वह याचिकाओं की सुनवाई कर सकता है।
पीठ कई मुद्दों पर धर्म एवं लैंगिक रूप से तटस्थ कानून बनाने के लिए सरकार को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
अधिवक्ता एवं याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने पांच अलग-अलग याचिकाएं दायर कर तलाक, दत्तक अधिकार, अभिभावक बनने का अधिकार प्राप्त करने, उत्तराधिकार, गुजारा भत्ता, विवाह की उम्र के लिए धर्म एवं लैंगिक रूप से तटस्थ समान कानून बनाने के लिए केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया है।