इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र करेंगे अब प्रवासी भारतीयों पर शोध

डीएन ब्यूरो

पूरब का आक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र प्रवासी भारतीयों पर शोध करेंगे कि उन्होंने कैसे अन्य देशों को अपना ठौर बनाया।

फाइल फोटो
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प्रयागराज: पूरब का आक्सफोर्ड कहे जाने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र प्रवासी भारतीयों पर शोध करेंगे कि उन्होने कैसे अन्य देशों को अपना ठौर बनाया। मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रो. योगेश्वर तिवारी ने रविवार को बताया कि बड़ी संख्या में भारतीय मॉरिशस, सूरीनाम, कनाड़ा, अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, मलेशिया, आदि अनेक देशों में जाकर बस गए हैं। शोध छात्र इनके बारे में जानकारी एकत्र करेंगे कि वह कब, कहां, क्यों गए। वहां जाने के बाद कैसे खुद को स्थापित किया और साथ ही भारतीय परंपराओं को आत्मसात किए रखा।

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उन्होने बताया कि प्रवासी भारतीयों के बारे में जानकारी देने के लिए कुलपति प्रो.आरएल हांगलू की पहल पर सेंटर ऑफ डायस्पोरा स्टडीज खोला गया है जिसका उन्हें कोआर्डिनेटर बनाया गया है। हांगलू ने प्रवासी भारतीयों पर इंडियन डायस्पोरा इन द कैरेबियन नाम से पुस्तक लिखी है। कई और विद्वानों की प्रवासी भारतीयों पर लिखी किताबों को भी छात्र अपने शोध का आधार बना सकेंगे।

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प्रो. तिवारी ने कहा कि प्रवासियों को अपने देश के प्रति स्नेह इसी बात से परिलक्षित होता है कि वह प्रत्येक वर्ष संस्कृति एवं आस्था देखने विदेश से आते हैं। यह सभी बातें छात्रों के शोध का हिस्सा बनेंगी। उन्होने कहा कि मारीशस के प्रधानमंत्री जगन्‍नाथ के नेतृत्‍व में वहां का एक दल कुंभ मेले में आकर पतित पावनी में आस्था की डुबकी लगाया और मेले में स्वच्छता और भव्यता देख आत्मविभोर हो गये।

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विभागाध्यक्ष ने कहा कि यही प्रवासी अपने-अपने देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहां की आर्थिक एवं राजनीतिक दशा तथा दिशा को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहां उनकी आर्थिक, शैक्षणिक व व्यावसायिक दक्षता का आधार काफी मजबूत है। वे विभिन्न देशों में रहते हैं, अलग भाषा बोलते हैं परन्तु वहां के विभिन्न क्रियाकलापों में अपनी महती भूमिका निभाते हैं। प्रवासी भारतीयों को अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखने के कारण ही साझा पहचान मिली है और यही कारण है जो उन्हें भारत से गहरे जोड़ता है।

प्रो. तिवारी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कश्मीर से अधिनियम 370 समाप्त करना साहसिक कदम रहा है। कश्मीर में अधिनियम 370 और 35-ए बने रहने से एक ही देश में हमें प्रवासी की तरह रहना पडता था।

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कोआर्डिनेटर ने कहा कि जहां-जहां प्रवासी भारतीय बसे वहां उन्होंने आर्थिक तंत्र को मजबूती प्रदान की और बहुत कम समय में अपना स्थान बना लिया। वे मजदूर, व्यापारी, शिक्षक अनुसंधानकर्ता, खोजकर्ता, डाक्टर, वकील, इंजीनियर, प्रबंधक, प्रशासक आदि के रूप में दुनियाभर में स्वीकार किए गए। कई देशों में वहां के मूल निवासियों की अपेक्षा भारतवंशियों की प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है।

वैश्विक स्तर पर सूचना तकनीक के क्षेत्र में क्रांति में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिसके कारण भारत की विदेशों में छवि निखरी है। प्रवासी भारतीयों की सफलता के कारण भी आज भारत आर्थिक विश्व में आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है। उन्होने कहा कि कई प्रवासी भारतीय अब भी विदेशों में भारतीय संस्कृति को संरक्षित एवं संवर्धित कर रहे हैं। प्रो. तिवारी ने बताया कि कुलपति ने इस शैक्षिक सत्र में पीएचडी की चार सीटों पर प्रवेश होगा। एकेडमिक काउंसिल की बैठक में शोध के लिए शैक्षिक सत्र 2019-20 में चार सीटों पर शोध कार्य शुरू करने की मंजूरी मिल गयी है। उन्होंने बताया कि सेंटर ऑफ डायस्पोरा स्टडीज की मंजूरी 2016 में मिल गई थी। फैकल्टी न होने के कारण सेंटर में कोर्स का संचालन नहीं शुरू हो सका है। अगले सत्र से फैकल्टी की नियुक्ति होने पर परास्नातक की कक्षाएं शुरू की जाएगी। (वार्ता)










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