क्या बढ़ते एआई के नियमन में भारत को जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, पढ़ें ये रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

भारत को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को नियंत्रित करने के लिए कोई ऐसा ‘‘व्यापक’’ कानून लाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए जिसका महत्व जल्द ही खत्म हो जाए। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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मुंबई: भारत को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) को नियंत्रित करने के लिए कोई ऐसा ‘‘व्यापक’’ कानून लाने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए जिसका महत्व जल्द ही खत्म हो जाए।

एआई को नियंत्रित करने में भारत की स्थिति अनिश्चित है जहां वह एक ओर कोई नियमन न लगाने की बात कहता है तो दूसरी ओर ‘‘जोखिम पर आधारित, कोई नुकसान’’ न पहुंचने के आधार पर नियमन की बात करता है।

भारत सरकार ने इस साल अप्रैल में कहा कि वह नवोन्मेष के अनुकूल माहौल बनाने में मदद करने के लिए एआई को नियंत्रित नहीं करेगी। नवोन्मेष अनुकूल माहौल भारत को एआई संबंधित प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेतृत्व प्रदान कर सकता है।

महज दो महीने बाद ही इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने संकेत दिया कि भारत डिजीटल इंडिया कानून के जरिए एआई को नियंत्रित करेगा।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, कोई नियमन न लगाने के पहले के रुख से पलटी मारते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा, ‘‘एआई नियमन या निश्चित तौर पर किसी भी नियमन के प्रति हमारा रुख यह है कि हम उपयोगकर्ता को नुकसान होने के दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर इसे नियंत्रित करेंगे।’’

भारत जैसी श्रम प्रधान अर्थव्यवस्था में एआई के मानव श्रम की जगह लेने के कारण नौकरियां खोने का मुद्दा अपेक्षाकृत गंभीर है।

बहरहाल, मंत्री ने दावा किया, ‘‘एआई बाधाकारी है लेकिन अभी के लिए नौकरियों को बहुत कम खतरा है। अभी एआई के विकास का मौजूदा चरण कार्य-उन्मुख है, यह तर्क का इस्तेमाल नहीं कर सकता। ज्यादातर नौकरियों में तर्क की जरूरत होती है और अभी कोई एआई ऐसा करने में समक्ष नहीं है। एआई अगले कुछ वर्षों में इसे हासिल कर सकता है लेकिन अभी नहीं।’’

ऐसा आकलन आंशिक रूप से ही सही लगता है क्योंकि कहीं न कहीं एआई कम कौशल वाले ‘‘कार्य’’ कर सकता है। भारत में कम कौशल वाली नौकरियों की प्रधानता को देखते हुए एआई द्वारा उनकी जगह लेने का रोजगार पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

आगामी डिजीटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2023 के मीडिया में लीक हुए मसौदे से पता चलता है कि भारतीय नागरिकों की निजी जानकारी को एआई प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल होने से बचाया जा सकता है।

ऐसा लगता है कि यह अमेरिकी नियामकों के उन सवालों से प्रेरित है कि ओपन एआई कैसे उपयोगकर्ता की सहमति के बिना निजी जानकारियां ले सकता है।

हाल में सरकार ने भारत के एआई कार्यक्रम के तहत सात कार्यकारी समूह गठित किए और उन्हें जून 2023 के मध्य तक अपनी रिपोर्ट देनी थी। हालांकि, अभी ये रिपोर्ट उपलब्ध नहीं हैं।

इस समूह को कई दायित्व सौंपे गए - डेटा-गवर्नेंस रूपरेखा बनाना, भारत डेटा प्रबंधन कार्यालय बनाना, एआई के लिए नियामक मुद्दों की पहचान करना, क्षमता निर्माण के तरीकों का मूल्यांकन करना, एआई स्टार्टअप को बढ़ावा देना, एआई में नवोन्मेषी परियोजनाओं को बढ़ावा देना तथा डेटा प्रयोगशालाएं बनाना।

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भी एआई पर चार समितियों का गठन किया जिन्होंने 2019 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। ये रिपोर्ट एआई पर मंच तथा डेटा, प्रमुख क्षेत्रों में राष्ट्रीय मिशन की पहचान के लिए एआई का लाभ उठाने, विभिन्न क्षेत्रों में आवश्यक अहम नीति, कौशल और पुन: कौशल तथा साइबर सुरक्षा, सुरक्षा, कानूनी और नैतिक मुद्दों पर केंद्रित हैं।

इन सभी बातों को देखते हुए ‘‘जोखिम पर आधारित, कोई नुकसान’’ न पहुंचने के आधार पर नियमन की बात करना ज्यादा सही है।










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