न्यायालय का कुकी आदिवासियों के लिए सैन्य सुरक्षा संबंधी याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार
उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर में जातीय हिंसा के बीच अल्पसंख्यक कुकी आदिवासियों के लिए सैन्य सुरक्षा उपलब्ध कराने और इन (आदिवासियों) पर हमले कर रहे सांप्रदायिक समूहों के खिलाफ मुकदमे चलाने के अनुरोध वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई से मंगलवार को इनकार कर दिया।
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मणिपुर में जातीय हिंसा के बीच अल्पसंख्यक कुकी आदिवासियों के लिए सैन्य सुरक्षा उपलब्ध कराने और इन (आदिवासियों) पर हमले कर रहे सांप्रदायिक समूहों के खिलाफ मुकदमे चलाने के अनुरोध वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई से मंगलवार को इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि यह पूरी तरह कानून व्यवस्था से जुड़ी परिस्थिति है और प्रशासन को इससे निपटना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘यह कानून और व्यवस्था का गंभीर मुद्दा है। प्रशासन को इस मुद्दे को देखने दें। क्या सर्वोच्च न्यायालय व्यक्तिगत सुरक्षा का आदेश दे सकता है? हमारे हस्तक्षेप से और समस्या पैदा होगी। यह स्थिति को खराब कर सकता है। हमें उम्मीद है कि अदालतों को ऐसा आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है कि सेना या केंद्रीय बलों को तैनात किया जाना चाहिए।’’
वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘मणिपुर ट्राइबल फोरम’ की ओर से मामले का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह कोरा आश्वसन दिया गया था कि किसी की जान नहीं जाएगी, इसके बावजूद 70 आदिवासी मारे जा चुके हैं।
राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले की तत्काल सुनवाई संबंधी याचिका का विरोध किया और कहा कि सुरक्षा एजेंसियां मौके पर मौजूद हैं।
उन्होंने कहा, 'इसी तरह की अर्जी (ग्रीष्मकालीन) अवकाश से पहले की गई थी, जिस पर विचार नहीं किया गया था। इंतजार किया जा सकता है। जनहित इंतजार कर सकता है।'
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मेहता ने कहा कि मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग संबंधी मूल मामले की सुनवाई 17 जुलाई तक स्थगित की गयी है।
यह दलील देते हुए कि आदिवासियों को छोड़ा नहीं जा सकता, गोंजाल्विस ने कहा कि तब तक 50 और लोग मारे जा चुके होंगे।
पीठ ने गोंजाल्विस से पूछा, ‘‘यह गणना आपने कैसे की है?’’ इसके साथ ही न्यायालय ने मामले की सुनवाई के लिए तीन जुलाई की तारीख तय की।
मणिपुर ट्राइबल फोरम ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार और मणिपुर के मुख्यमंत्री संयुक्त रूप से पूर्वोत्तर राज्य में कुकी आदिवासियों की 'जातीय संहार' के उद्देश्य से एक सांप्रदायिक एजेंडे पर चल रहे हैं।
एनजीओ ने शीर्ष अदालत से केंद्र द्वारा दिए गए 'खोखले आश्वासनों' पर भरोसा न करने का आग्रह किया और कुकी समुदाय के लोगों के लिए सेना की सुरक्षा मांगी।
मणिपुर में करीब डेढ़ महीने पहले मेइती और कुकी समुदायों के बीच शुरू हुई हिंसा में अब तक 100 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।
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गौरतलब है कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद हिंसक झड़पें शुरू हो गई थीं। इस हिंसा में अब तक करीब 100 लोगों की मौत हुई है और 300 से अधिक लोग घायल हुए हैं।
मणिपुर में 53 प्रतिशत आबादी मेइती समुदाय की है और यह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहती है। आदिवासियों-नगा और कुकी समुदाय की आबादी 40 प्रतिशत है और यह मुख्यत: पर्वतीय जिलों में बसती है।
राज्य में शांति बहाली के लिए सेना और असम राइफल्स के लगभग 10,000 जवान तैनात किए गए हैं।
मणिपुर सरकार ने राज्य में अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए 11 जिलों में कर्फ्यू लगाने के साथ इंटरनेट सेवाओं को प्रतिबंधित कर दिया है।