Mann Ki Baat: जानिये, पीएम मोदी के मन की बात कार्यक्रम की कुछ खास और बड़ी बातें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात के जरिये देश की जनता के साथ फिर एक बार संवाद किया। जानिये, मन की बात में आज क्या बोले पीएम मोदी
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम मन की बात के जरिये देश की जनता के साथ फिर एक बार रूबरु हुए। पीएम मोदी ने अपने मन की बात में सबसे पहले आज देश की जनता से पानी के संरक्षण की अपील करते हुए कहा कि वर्षा ऋतु आने से पहले ही हमें जल संरक्षण के लिए प्रयास शुरू कर देने चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जल हमारे लिये जीवन भी है, आस्था भी है और विकास की धारा भी है। जानिये पीएम मोदी के मन की बात की कुछ खास बातें।
भारत में कोई ऐसा दिन नहीं होगा जब देश के किसी-न-किसी कोने में पानी से जुड़ा कोई उत्सव न हो। माघ के दिनों में तो लोग अपना घर-परिवार, सुख-सुविधा छोड़कर पूरे महीने नदियों के किनारे कल्पवास करने जाते हैं। इस बार हरिद्वार में कुंभ भी हो रहा है।
जल हमारे लिये जीवन भी है, आस्था भी है और विकास की धारा भी है।
पानी एक तरह से पारस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। कहा जाता है पारस के स्पर्श से लोहा, सोने में परिवर्तित हो जाता है। वैसे ही पानी का स्पर्श, जीवन के लिये जरुरी है, विकास के लिये जरुरी है।
वर्षा ऋतु आने से पहले ही हमें जल संरक्षण के लिए प्रयास शुरू कर देने चाहिए। पानी के संकट को हल करने के लिये एक बहुत ही अच्छा संदेश पश्चिम बंगाल के ‘उत्तर दीनाजपुर’ से सुजीत जी ने भेजा है।
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सुजीत जी ने कहा कि ये बात सही है कि जैसे सामूहिक उपहार है, वैसे ही सामूहिक उत्तरदायित्व भी है। सुजीत जी की बात बिलकुल सही है। नदी, तालाब, झील, वर्षा या जमीन का पानी, ये सब, हर किसी के लिये हैं।
कल माघ पूर्णिमा का पर्व था, माघ का महीना विशेष रूप से नदियों, सरोवरों और जलस्त्रोतों से जुड़ा हुआ माना जाता है।
हमारे शास्त्रों में कहा गया है, “माघे निमग्ना: सलिले सुशीते, विमुक्तपापा: त्रिदिवम् प्रयान्ति। अर्थात, माघ महीने में किसी भी पवित्र जलाशय में स्नान को पवित्र माना जाता है।
दुनिया के हर समाज में नदी के साथ जुड़ी हुई कोई-न-कोई परम्परा होती ही है। नदी तट पर अनेक सभ्यताएं भी विकसित हुई हैं। हमारी संस्कृति क्योंकि हजारों वर्ष पुरानी है, इसलिए, इसका विस्तार हमारे यहां और ज्यादा मिलता है।
कभी-कभी बहुत छोटा और साधारण सा सवाल भी मन को झकझोर जाता है। ये सवाल लंबे नहीं होते हैं, बहुत simple होते हैं, फिर भी वे हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं।
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मैंने इस सवाल पर विचार किया और खुद से कहा मेरी एक कमी ये रही कि मैं दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा – तमिल सीखने के लिए बहुत प्रयास नहीं कर पाया, मैं तमिल नहीं सीख पाया।
यह एक ऐसी सुंदर भाषा है, जो दुनिया भर में लोकप्रिय है। बहुत से लोगों ने मुझे तमिल literature की quality और इसमें लिखी गई कविताओं की गहराई के बारे में बहुत कुछ बताया है।
कुछ दिन पहले हैदराबाद की अपर्णा रेड्डी जी ने मुझसे ऐसा ही एक सवाल पूछा। उन्होंने कहा कि- आप इतने साल से पी.एम. हैं, इतने साल सी.एम. रहे, क्या आपको कभी लगता है कि कुछ कमी रह गई। अपर्णा जी का सवाल बहुत सहज है, लेकिन उतना ही मुश्किल भी।
ये मेरा सौभाग्य है कि मैं संत रविदास जी की जन्मस्थली वाराणसी से जुड़ा हुआ हूँ। संत रविदास जी के जीवन की आध्यात्मिक ऊंचाई को और उनकी ऊर्जा को मैंने उस तीर्थ स्थल में अनुभव किया है।
जब भी माघ महीने और इसके आध्यात्मिक सामाजिक महत्त्व की चर्चा होती है तो ये चर्चा संत रविदास जी के बिना पूरी नहीं होती। माघ पूर्णिमा के दिन ही संत रविदास जी की जयंती होती है। आज भी, संत रविदास जी के शब्द, उनका ज्ञान, हमारा पथप्रदर्शन करता है।