NCST अध्यक्ष हर्ष चौहान ने दिया पद से इस्तीफा, कांग्रेस ने लगाया जबरन हटाने का आरोप
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने अपना कार्यकाल पूरा होने से आठ महीने पहले पद से इस्तीफा दे दिया।
नई दिल्ली: राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने अपना कार्यकाल पूरा होने से आठ महीने पहले पद से इस्तीफा दे दिया।
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने मंगलवार को आरोप लगाया कि चौहान को वन और आदिवासी अधिकारों के मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से भिड़ने की कीमत चुकानी पड़ी है।
सूत्रों ने कहा कि चौहान का इस्तीफा सरकार के वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन पर आधारित है।
एक आधिकारिक सूत्र ने डाइनामाइट न्यूज़ से कहा, ‘‘वह स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे थे और केवल दो सुनवाई में ही शामिल हो सके थे। बाकी का संचालन आयोग के सदस्य (अनंत नायक) ने किया।’’
यह भी पढ़ें |
राहुल गांधी बोले - 'मैं अब कांग्रेस अध्यक्ष नहीं', ट्वीटर से भी हटाया पदनाम
एनसीएसटी के नियमानुसार, आयोग में सुनवाई की अध्यक्षता करने की जिम्मेदारी अध्यक्ष की है। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष को सुनवाई करनी चाहिए।
एनसीएसटी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘चौहान ने 26 जून को इस्तीफा दे दिया था और हमें राष्ट्रपति द्वारा उनका इस्तीफा स्वीकार करने की जानकारी 27 जून को मिली।’’
कांग्रेस ने चौहान के इस्तीफे को नये वन सरंक्षण नियम, 2022 पर उनके रुख से जोड़ा है। इस नये नियमों को आदिवासियों के अधिकारों में कथित तौर पर हस्तक्षेप माना जा रहा है।
रमेश ने ट्वीट कर आरोप लगाया कि चौहान को उनका कार्यकाल पूरा होने से आठ महीने पहले ही ‘‘जबरन हटाया’’ गया है।
यह भी पढ़ें |
CBI मुख्यालय का घेराव करने पहुंचे राहुल गांधी समेत कई कार्यकर्ता गिरफ्तार
उन्होंने कहा, ‘‘फरवरी 2021 में, हर्ष चौहान को एक संवैधानिक निकाय ‘राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग’ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। जिस तरह से पिछले दो वर्षों में वन कानूनों को कमजोर किया गया है और जिस तरीके से आदिवासियों के हितों को नुकसान पहुंचाया गया है, उसे लेकर मेरे और कई कार्यकर्ताओं की तरह वह (चौहान) भी कड़ी आपत्तियां उठाते रहे हैं। वह बहादुरी के साथ पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से भिड़ गए थे।’’
कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘अब उन्होंने (चौहान) अपनी प्रतिबद्धता और साहस की कीमत चुकाई है। उन्हें अपना कार्यकाल समाप्त होने से आठ महीने पहले इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया।’’
पिछले साल सितंबर में चौहान ने पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर नये नियमों को निलंबित करने की मांग की थी।
उन्होंने मंत्रालय से 2017 के वन संरक्षण नियमों के कुछ प्रावधानों के अनुपालन को ‘‘बहाल करने, मजबूत करने और सख्ती से निगरानी करने’’ का भी आग्रह किया था, जिसमें किसी भी परियोजना के लिए वन भूमि का अधिग्रहण करने से पहले ग्राम सभा से सहमति प्राप्त करना शामिल है।