महराजगंज: 686 करोड़ की नकली दवा पकड़े जाने के मामले में बड़ी तहकीकात, दो दर्जन को नोटिस, मचा हड़कंप, दवा माफियाओं को बचाने में जुटे सफेदपोश!

शिवेंद्र चतुर्वेदी

भारत-नेपाल की सीमा पर चल रहे अरबों रुपयों के नकली दवा के सबसे बड़े सिंडिकेट का 4 अगस्त को डीएम और एसपी की सक्रियता से भंड़ाफोड़ तो कर दिया गया लेकिन 5 दिन बाद भी सबसे बड़ा सवाल अभी भी मौजूं है कि आखिर इस मामले के असली सफेदपोश कब पुलिसिया गिरफ्त में होंगे? डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:

नकली दवा के गिरोह का भंडाफोड़ करते डीएम-एसपी (फाइल फोटो)
नकली दवा के गिरोह का भंडाफोड़ करते डीएम-एसपी (फाइल फोटो)


महराजगंज: क्या सत्तारुढ़ सफेदपोशों के दबाव में जांच एजेसियां घुटने टेक देंगीं? क्या पुलिस और स्वास्थ्य विभाग जुटा है असली गुनहगारों को बचाने में? यह सवाल उठ खड़ा हुआ है पांच दिन बाद जांच की दिशा को लेकर।

चार अगस्त को ठूठीबारी के जमुई कला में छापेमारी कर पुलिस ने भारी मात्रा में अवैध नशीली दवाएं, इंजेक्शन, नशीले सीरप तथा मूल्य वृद्धि कर बिक्री करने वाले प्रिंटेड लेवल, रैपर की बरामदगी की तो हर कोई कहने लगा कि एजेंसियों ने बहुत बड़ा काम किया है। वाकई किया भी लेकिन अब दबाव में जिस तरह लोगों को जान लेने पर उतारु दवा माफियाओं को बचाने और जांच की दिशा को भटकाने का खेल शुरु किया गया है वो हैरान करने वाला है।

डाइनामाइट न्यूज़ को भरोसेमंद सूत्रों ने कई चौंकाने वाली जानकारियां दी हैं। पांच दिन बाद भी पुलिस अब तक असली मुजरिमों को पकड़ना तो दूर उसके आसपास के खास और रिश्तेदारों से प्रभावी ढ़ंग से पूछताछ तक नहीं कर पायी है। क्या इसकी आड़ में दवा माफियाओं को बचाने का खेल शुरु कर दिया गया है? चर्चा है कि जिले के एक सफेदपोश नहीं चाहते कि पुलिस असली गुनहगारों को जेल भेजे। 

डाइनामाइट न्यूज़ को सूत्रों ने बताया कि इस मामले में डीएम-एसपी तह तक जाने में लगे हैं लेकिन उनकी राह आसान नहीं है, वजह गुनहगारों के हाथ लंबे हैं और इनकी मदद में कई सफेदपोश पर्दे के पीछे से जाल बुन रहे हैं। इन सफेदपोशों की कोशिश है कि मामले को खोलने वाले अफसरों का किसी भी तरह जिले से बाहर तबादला करा दिया जाय और फिर मामले को लीप-पोत दिया जाय।

सूत्रों ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया कि दो दर्जन दवा की कंपनियों को नोटिस भेजा गया है। इनमें सनफार्मा, इंटास, कुपार, गिलकोंन, लेब्रोटरी, ऐलीकांन समेत दो दर्जन से ज्यादा दवाओं की कंपनियों को नोटिस भेजी गई है लेकिन क्या यह कार्यवाही जांच को भटकाने की कोशिश है?

अब तक एजेंसियों ने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि किन-किन कंपनियों की किस-किस नाम की नकली दवाईयां कितनी मात्रा में बरामद हुई हैं? सिर्फ दवाओं के फार्मूले के नाम उजागर किये गये हैं। जो जांच की दिशा को लेकर संदेह पैदा कर रहा है। 

आखिर क्यों जांच एजेंसियां यह नहीं राज खोल रही हैं कि पकड़ी गयी कंपनियों की दवाइयों के महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया आदि आसपास के जिलों में कौन-कौन फर्में इन कंपनियों की स्टाकिस्ट/डिस्ट्रीब्यूटर्स/सी एंड एफ के रुप में इस इलाके में ये दवाये मुहैया कराती थीं। 

सारे मामले में स्वास्थ्य विभाग के कुछ बड़े अफसरों की भूमिका शुरु से ही संदिग्ध है। इन दागियों के संरक्षण में पले-बढ़े गुनहगारों को बचाने का सिलसिला पर्दे के पीछे से तेज कर दिया गया है। 

सूत्रों के मुताबिक सिसवा इलाके के जिन दो सगे भाईयों के नाम चर्चा के केन्द्र में हैं, उनसे कायदे से इंट्रोगेशन तक नहीं किया गया है, ये जांच एजेंसियों की नजरों से ओझल हैं। 

हैरानी की बात यह है कि नकली दवा मामले में जिन बड़ी मछलियों को पुलिस अब तक गिरफ्तार नहीं कर पायी है उनकी कुंडली को लेकर लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। आखिर क्या वजह है कि पुलिस असली गुनहगारों को पकड़ नहीं पा रही है। पुलिस सिर्फ टाल-मटोल और बहानेबाजी कर रही है कि आरोपी फरार हो गये हैं, खोजा जा रहा है और इसकी आड़ में आरोपियों को बचने और सबूत मिटाने का खुला अवसर दिया जा रहा है। 

आम चर्चा है कि सिसवा-निचलौल-ठूठीबारी के इलाके से नकली दवाओं को भेजने का धंधा बिहार से लेकर नेपाल और कई अन्य राज्यों तक में फैला है। यहीं से बिहार के बेतिया के एक बदनाम मेडिकल स्टोर में नकली दवा की सप्लाई की गयी थी, चंद दिन पहले रेड डाल पांच ट्राली नारकोटिक्स का माल बेतिया के इस मेडिकल स्टोर से पकड़ा गया था। 

हैरान करने वाली बात यह है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में जब-जब नकली और नशे की दवाईयां पकड़ी जाती हैं तो सिसवा का नाम जरूर आता है। 

बड़ा सवाल आखिर सिसवा में इस नशीली और नकली दवाओं बड़ा मास्टरमाइंड कौन है और अब तक पुलिस की जांच कहां तक पहुंची है? क्या दवा माफियाओं को असली केन्द्र सिसवा बाजार है?










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