भारत की ‘मोबाइल क्लीनिक’ पहल ने दुनिया को परिवहन बाधाओं से उबरना सिखाया : यूनिसेफ अधिकारी

डीएन ब्यूरो

यूनिसेफ के एक शीर्ष अधिकारी ने सुदूर क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए भारत द्वारा डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं और नवीन तरीकों को अपनाए जाने की सराहना की। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

यूनिसेफ-न्यूयॉर्क में वरिष्ठ स्वास्थ्य सलाहकार डॉ. लक्ष्मी नरसिम्हन बालाजी
यूनिसेफ-न्यूयॉर्क में वरिष्ठ स्वास्थ्य सलाहकार डॉ. लक्ष्मी नरसिम्हन बालाजी


पणजी: यूनिसेफ के एक शीर्ष अधिकारी ने सुदूर क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए भारत द्वारा डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं और नवीन तरीकों को अपनाए जाने की सराहना की।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार यूनिसेफ-न्यूयॉर्क में वरिष्ठ स्वास्थ्य सलाहकार डॉ. लक्ष्मी नरसिम्हन बालाजी ने कहा कि मोबाइल क्लीनिकों पर देश से सीखे गए सबक को परिवहन बाधाएं कम करने के लिए उग्रवाद-प्रभावित क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि भारत ने बच्चों के नियमित टीकाकरण सहित विभिन्न सचल स्वास्थ्य पहलों को सफलतापूर्वक लागू किया है।

उन्होंने भारत की जी20 अध्यक्षता के तहत सोमवार को यहां गोवा में शुरू हुए दूसरे स्वास्थ्य कार्य समूह की बैठक से इतर कहा कि डिजिटल स्वास्थ्य उपायों ने महामारी के दौरान जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे कि दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना और ऑनलाइन शैक्षिक पहुंच के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

बालाजी ने कहा कि महामारी के दौरान, टीकाकरण, ऑनलाइन परामर्श, कोविड-19 टीकाकरण, परीक्षण और कोविड अनुकूल आचरण (सीएबी) के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए सचल (मोबाइल) सेवाओं को तैनात किया गया था।

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उदाहरण के लिए, भारत ने सुनिश्चित किया है कि प्रत्येक नागरिक को ‘कोविन पोर्टल’ के माध्यम से एक टीका प्रमाणपत्र प्राप्त हो और इससे प्रगति की निगरानी में मदद मिलती है।

उन्होंने कहा, “ये मोबाइल क्लीनिक उन क्षेत्रों में पारंपरिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक थे जहां भौगोलिक, जलवायु, या अक्सर आने वाली प्राकृतिक आपदाओं की चुनौतियों के कारण स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच कम है।”

बालाजी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिक भी कई समुदायों में परिवहन बाधाओं को कम करने का एक प्रभावी तरीका है।”

उदाहरण के लिए, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में चिकित्सा कर्मियों को टीकाकरण सेवाएं देने के लिए एक नाव से ले जाया जा सकता है।

बालाजी ने कहा, “परिवहन बाधाएं कम करने के लिए मोबाइल क्लीनिक विकल्पों पर भारत से सीखे गए सबक को अफगानिस्तान जैसे उग्रवाद-प्रभावित क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है, जहां एक ‘मॉडिफाइड’ (परिवर्तित) स्कूटर या ऑटो रिक्शा (जिसे जरंज कहा जाता है) एक आपातकालीन एम्बुलेंस के रूप में कार्य कर सकता है, जो गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए निकटतम अस्पताल ले जा सकता है।”

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उन्होंने हालांकि इस बात को रेखांकित किया कि स्वास्थ्य सेवा में डिजिटल हस्तक्षेप के जरिये डिजिटल विभाजन (डिजिटल साधनों तक पहुंच में अंतर) के मुद्दे को हल करना चाहिए जो महिलाओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि वे वैश्विक स्वास्थ्य कार्यबल का 67 प्रतिशत हिस्सा हैं।

बालाजी ने कहा, “हमें एक डिजिटल विभाजन के अस्तित्व को स्वीकार करना चाहिए, जहां समुदाय के केवल कुछ सदस्य ही मोबाइल फोन और इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं। यह विभाजन उन महिलाओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण है जिनकी अक्सर परिवार के पुरुष सदस्यों या समुदाय के सदस्यों की तुलना में कम पहुंच होती है।”

उन्होंने कहा कि यह देखते हुए कि विश्व में सभी स्तरों पर 67 प्रतिशत स्वास्थ्य कार्यबल महिलाएं हैं, डिजिटल हस्तक्षेप से इस मुद्दे को हल किया जाना चाहिए।










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